Friday, 1 April 2016

सातवी सखी – श्रीतुङ्गविद्या जी

सातवी सखी – श्रीतुङ्गविद्या जी
श्री तुङ्गविद्या सखी श्री राधाकुंड के पश्चिम-दिशावर्ती दल पर अरुण वर्ण की अति सुन्दर तुंग विद्या नन्दन नामक कुंज विख्यात है समुत्सुका श्री तुंगविद्या जी नित्य उस में विराजती है
इनकी सदा श्री कृष्ण में विप्रलम्भ भावनात्मक रति है इनकी अंग कांति प्रचुर कपूर-चन्दन-मिश्रित केसर की भांति है और पीले रंग के वस्त्र धारण करती है यह प्रखर –दक्षिण स्वभाव की नायिका है.
इनकी माता का नाम – “मेघा”, पिता का नाम – “पुष्कर” और पति का नाम – “बालिश” है यह नृत्य –गीतादि की सेवा में रहती है और इनका घर यावट में है.
इनकी वयस् १४ वर्ष २ मास २२ दिन की है कलियुग में श्री गौर लीला में ये “श्री वक्रेश्वर–पंडित” नाम से विख्यात हुई है.
श्री तुङ्गविद्या सखी-मंत्र – “श्रीतुंगविद्यायै स्वाहा”
श्री तुङ्गविद्या सखी ध्यान –
चंद्राढयेsरपि चन्दनै: सुलालितां श्रीकुंकुमाभाधूतिं |
सदरत्नाचितभूषणाचिततारां शोणाम्बरोल्लासिताम |
सद्गीतावलि संयुतां बहुगुणां डम्फस्यशब्देन वै
नृत्यन्तीं पुरतो हरे रसवतीं श्रीतुंगविद्यां भजे ||

जो कर्पुरयुक्त चन्दन से चर्चित होकर अति सुशोभित हो रही है जिनकी अंग-कांति सुन्दर केसर तुल्य है जो सुन्दर रत्न भूषणों से अलंकृत है और जो लाल रंग के वस्त्र धारण कर उल्लसित होती है सद् गीतावली संयुक्ता है बहुगुण शालिनी है जो डफली-वाध्य के साथ श्री कृष्ण के सामने नृत्य करती है इन रसवती श्री तुङ्गविद्या जी का मै ध्यान करती हूँ
श्री तुङ्गविद्या सखी प्रणाम –
जो कर्पूर –चन्दन मिश्रित मनोरम केसर की अंगकान्ति से सुशोभिता है पीत-छवि के वस्त्र धारण करने से जिनकी प्रचुर कांति फ़ैल रही है हे स्वामिनि ! जो आपके समान बुद्धिमती होकर सर्वत्र आहात होती है आपकी उन प्रिय सखी श्री तुङ्गविद्या को मै प्रणाम करती हूँ.
श्री तुङ्गविद्या सखी-यूथ :
मंजुमेधा, सुमधुरा, सुमध्या, मधुराक्षी, तनुमध्या, मधुस्यन्दा, गुणचूड़ा और वरांगदा. ये आठ सखियाँ श्री तुङ्गविद्या जी के यूथ में प्रधान है.

राधारानी जी की छठी सखी – श्री रङ्गदेवी जी


श्री राधाकुंड के दक्षिण–पश्चिम कोणवर्ती दल पर श्यामवर्ण की “सुखदा –नामक कुंज” है जिसमे श्री कृष्ण वल्लभा श्री रङ्गदेवी जी नित्य निवास करती है .इनकी कमल केसर वर्ण सदृश अंग कांति है और जावा पुष्प कांति के वस्त्र धारण करती है श्री कृष्ण में उत्कंठिता –नायिका भावानात्मका रति है.
वस्त्र सज्जा – जो जवा पुष्प की भांति वस्त्र धारण करती है. इनका घर भी यावट में है इनकी वयस् १४ वर्ष २ मास ४ १/२ दिन की है इनकी माता का नाम “करुणा”, पिता का नाम “रंग सागर” और पति का नाम “वक्रेक्षण” कहा गया है.
कलियुग में श्री गौर लीला में
यह “श्री गोविंदानंद घोष” नाम से आविभूर्त हुई है
राधा माधव की सेवा
यह “चन्दन सेवा” करने में लगी रहती है वाम मध्या है
श्री रङ्गदेवी सखी का मंत्र
“श्री रां रंगदेव्यै स्वाहा”
श्री रङ्गदेवी सखी का ध्यान
“राजीव-किंजल्क-समानवर्ण, जवाप्रसुनोपम–वाससाढयाम |
श्रीखंडसेवा सहितां वृजेन्दसूनोर्भजे रासग रंग्देवीम” ||

“जिनकी अंगकांति कमल केसर के वर्ण समान है जो जवा पुष्प की भांति वस्त्र धारण करती है जो श्री कृष्ण की चन्दन सेवा में निरता है उन रास गति शिला (नृत्यमय गति युक्ता) श्री रङ्गदेवी जी का मै ध्यान करती हूँ.”
श्री रङ्गदेवी सखी-यूथ
“कल्कंठी, शशिकला, कमला, प्रेममंजरी
माधवी, मधुरा, कम्लता, कन्दर्पसुंदरी”
कलकंठी,शशिकला,कमला प्रेम मंजरी माधवी मधुरा काम लता और कन्दर्प सुंदरी ये आठ सखियाँ श्री रंग देवी के यूथ में प्रधान है.

चंपकलता जी

चंपकलता जी
इसी तरह फिर “चंपकलता जी” का वर्णन आता है. जो पाँचवी सखी है. क्योकि जितनी भी अष्टसखी है और उनकी भी जो सेविकाएँ है. सब का उद्देश्य क्या है ? राधा माधव की सुख सामग्री को एकत्रित करना है. ब्रज में माधुर्य भाव की प्रधानता है. और गोपियाँ भगवान को “कांतभाव” से ही भजती है. उन सब में डाह या जलन नहीं है.
जब एक सखी कृष्ण विरह में डूबी हुई होती है. तो दूसरी उसे दिलासा देती है. कि कृष्ण कहीं नहीं गए है वो हमारे पास ही है . सब एक दूसरे को समझाती है. जब वह दूसरी सखी स्वयं ही विरह में आ जाती है तो पहली सही उसे दिलासा देती है. सब एक दूसरे के भावों को समझती है.उनमें जलन नहीं है, कि कृष्ण हमारे है. ये नहीं है .गोपी भाव इतना उच्च है कि उसमें इन सब की जगह ही नहीं है.
प्रेम से परिपूर्ण वो ब्रज है, प्रेम से ही भगवान बने है , वो प्रेम ही खाते है, पीते है, वो प्रेमावतार है. राधा जी और सखिया भागवान को प्रेम ही देती है. जहाँ सब ओर प्रेम ही प्रेम बसा है –
“प्रेम की परीक्षा होती, प्रेम का ही प्रश्न पत्र,
उद्धव जैसे ज्ञानी आए, यहाँ प्रेम पढने को, वृदावंन प्रेम की पवित्र पाठशाला है”
भगवान चाहते तो उद्धव को खुद ही प्रेम की शिक्षा दे देते, पर प्रत्यक्ष देखने के लिए उन्हेांनें उनको भेजा वृदांवन. क्योंकि वहीं उन्हें प्रेम का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता, जहाँ पर सखियाँ प्रोफेसर है, जो प्रेम पढाती है और उस पाठशाला की हेड कौन है ?
वो ”श्री राधा जी” है. जिनके अनुसार सारी चीजें होती है. ब्रज में राधा जी की कृपा के बिना कोई प्रवेश नही कर सकता,क्योकि वहाँ कर्म की प्रधानता नहीं है. वहाँ कृपा साध्य है. व्यक्ति चाहे कि अपने पुरूषार्थ से वहाँ प्रवेश पा ले, तो ऐसा नहीं हो सकता, वहाँ कर्म सारे खत्म हो जाते है. वहाँ तो कृपा ही सब कुछ है. जिस पर राधा जी की कृपा हो जाए कितनी सारी निकुंज में लीलाएँ होती है.
प्रसंग १. – जैसे काम्यक वन में ललिता कुडं है जिसमें वो स्नान किया करती है. और जब स्नान करती थी तो राधा और कृष्ण को मिलाने की चेष्टा करती थी तो एक दिन वो बैठे-बैठे हार बनाती, और तोड देती, हर बार यही करती फिर बनाती और फिर तोड़ देती. तो नारद जी उपर से ये देखते है. तो आकर ललिता से पूछते है – कि आप ये क्या कर रही हो ?
तो वो कहती है. कि मै कृष्ण के लिए हार बनाती हूँ. और मुझे लगता है कि ये हार छोटा होगा कृष्ण को तो मै तोड कर दूसरा बनाती हूँ, पर फिर लगता है कि ये बडा ना हो तो उसे भी तोड देती हूँ. इसी में बार-बार बनाकर तोडती हूँ।
तो नारद जी कहते है – कि भगवान को बुला लो और उनके सामने बना दो तो नारद जी जाकर बालकृष्ण को ले आते है. तो ललिता जी उनके नाप का हार बनाकर पहना देती है. नारद जी तो पहले ही भगवान से कहकर आते है कि आज मुझे ललिता कृष्ण की लीला देखनी है कृष्ण और ललिता जी को नायक-नायिका के रूप में देखना है.
तो भगवान ललिता जी से कहते है – आओ झूले पर बैठो, तो ललिता जी कहती है- . कि अभी राधा जी आती होगीं, पर भगवान के जिद करने पर वो बैठ जाती है. क्योंकि गोपियों का उद्देश्य भगवान का सुख है. तो नारद जी दोंनों झूले में देखकर बडे प्रसन्न होते है.
वैसा ही छोडकर वो राधा जी के पास आकर उनको भडकाने लगते है. और गाने लगते है. कि कृष्ण ललिता की जय हो, कृष्ण ललिता की जय हो, तो राधा जी कहती है क्या बात है नारद ? आज ललिता जी का नाम ले रहो, तो नारदजी कहती क्या प्यारी जोडी है झूले में ललिता और कृष्ण की.
तो राधा जी को रोष आ जाता है. और नारद जी वहाँ से चले जाते है. और वो झट ललिता कुडं में आकर देखती है कि यहाँ पर तो सारी सखियाँ झूला झुला रही है. तो वहाँ से चुपचाप चली जाती है. तो भवगान को लगता कि राधा जी अभी तक नहीं आई तो वो ढूढने जाते है. देखते है. तो राधा जी अपने निकुंज मे मान करते हुए बैठी है. तो वो मनाते है और राधा जी मान जाती है. फिर वो आकर माधव के साथ झूला झूलती है. और ललिता विषाखा जी सारी सखिया झूलाती है.
ये मान लीला है. राधा जी की. कोई साधारण नहीं है. राधा जी को लगता है. कि भगवान मेरे साथ-साथ ललिता जी को भी बिठाए झूले पर, राधा जी का इशारा पाकर भगवान ललिता जी को बिठा लेते है. तो फिर कुछ देर बाद फिर राधा रानी की इच्छा होती है कि अब मै झूले से उतर जाऊ और अब दूसरी ओर भगवान ललिता जी को बैठाए और वे वैसा ही करते है.
कहने का अभिप्राय कि ये वास्तव में लीला मात्र है. जो भगवान कृष्ण चाहते है. कि राधा जी मान करें राधा जी के अंदर मान, लेश मात्र नहीं है वो उच्च भाव में है. तो ऐसी निकुंज लीलाएँ है.
तो पाँचवी सखी है “चपंकलता सखी” है.
जो राधाकुडं के दक्षिण दिशा वाले दल पर “कामलता” नामक कुंज में निवास करती है. जो कि अतिशय सुख प्रदायनी है .शुद्ध स्वर्ण की तरह कांतिमय है. श्री चम्पकलता जी उसमे निकुज में विराजती है. ये कृष्ण की “वासक सज्जा” नायिका भाव से सेवा करती है.
यह वाम मध्या नायिका है चम्पक के समान इनकी देह कांति है ओर चातक छटा कि भांति श्वेत वस्त्र धारण करती है रत्नमाला पहराना और चामर झुलाने की सेवा है इनकी वयस १४ वर्ष २ मास १३ १/२ दिन की है माता का नाम- “वाटिका”, पिता का नाम – “आराम” और पति का नाम – “चंद्राक्ष” है.
राधा माधव सेवा –
निकुंज में “वासक सज्जा” और “चामर सेवा ” करती है .
श्री गौर लीला में –
कलियुग में श्री गौरलीला में यह “श्री शिवानंद” नाम से विख्यात हुई है.
चम्पकलता जी का मंत्र है –
“चम्पकलतायै स्वाहा “संत जन इसी मंत्र का उच्चारण करके ध्यान करते है –
चम्पकलता जी की ध्यान विधि –
चम्पकावलिसमान-कांतिकां चातकाभ-वासना सुभूषणाम् |
रत्नमाल्ययुत चामरोघातां चारुचम्पकलतां सदा भजे ||
इनकी वस्त्र सज्जा कैसी है – जैसे चास होता है, अर्थात नीलकंठ पक्षी के पंख के जैसे वस्त्र है. जिनकी अति श्रेष्ठ चंपक के जैसे अंग क्रांति है, जो सुन्दर रत्न जडित स्वर्ण चामर हाथ में धारण किये रहती है. जो नील के परों की भांति वस्त्र धारण करती है. जो गुणों मे विषाखा जी के समान है.हे राधे ! आपकी सखी की मै शरण ग्रहण करता हूँ.
वास्तव में राधा माधव से मिलने के लिए हमें गोपियों के चरण पकडने है. गोपीभाव उच्च है. जहाँ संतजन तपस्या के बाद भी नहीं पहुँच पाते है.
इनके यूथ में भी “आठ सखियाँ” है – कोरंगाक्षी, सुचरिता, मंडली, मणि कुण्डला, चंडिका, चन्दलतिका, कंदुकाक्षी, सुमंदरा ये आठ सखिया चम्पकलता के यूथ में सबसे प्रधान है, सारी सखियाँ इनकी सेवा में है.

इन्दुलेखा जी” “अष्ट सखियों में चतुर्थ सखी” है.

इन्दुलेखा जी”
“अष्ट सखियों में चतुर्थ सखी” है. इनकी निकुंज की स्थिति बताई गई,
कि राधा कुण्ड के अग्निकोण में, अर्थात पूर्व-दक्षिण कोण में
जो “पूर्वेंन्द्र कुज” है. जो स्वर्ण की तरह कांतिमय है. और हरिताल, जो पूर्णन्नेद्र कुंज है. उसमें इन्दुलेखा जी का निवास है
उनकी अंग क्राति स्वर्ण की तरह है. हरिताल मतलब पीत वर्ण अंगों वाली है.
“उनके उनके वस्त्र की सज्जा” – अनार के फल की तरह वस्त्र पहनती है. श्री कृष्ण जी की वल्लभा है. श्री कृष्ण में प्रोशिंत भार्तिका भाव का पोषण है इस प्रीति भाव से भगवान को भजती हैं और सेवा क्या है – नंदनंदन के ये अमृत भोजन बनाने की सेवा करती है राधा माधव को नित्य नए व्यंजन बनाकर सेवा करती है.
शास्त्रों में इनकी आयु वयस् “चौदह वर्ष, तीन माह १०१/२ दिन” बताई गई है. और ये “वामप्रखर नायिका” है. और भगवान की “चामर सेवा” भी करती है. प्रेम से कहिए श्री राधे.
सब सखियों की अलग-अलग सेवाएँ और निंकुज लीलाएँ है. इन्दुलेखा जी “यावट गाँव” की है इनकी माता का नाम – बेला और पिता का नाम – सागर है. और पति का नाम – दुर्बल है.
और ये जब चैतन्य महाप्रभु का प्रादुर्भाव हुआ है. तो उनकी गौर लीला में ये “रामानंद बसु” के रूप में प्रकट हुई है. और चैतन्य महाप्रभु की, गौर लीला में भी गोपियों की अलग-अलग सेवाए है,महाप्रभु के प्रति, महाप्रभु साक्षात राधा रानी जी का स्वरूप माने गए है.
और जो इन्दुलेखा जी है इनका मंत्र –
“ओम इन्दुलेखाय: स्वाहा”
जो योगी जन है वो इसी मंत्र का जाप करते है, . और सत ने इनकी ध्यान विधि बताई है. –
“जिनकी श्री अंग की कांति हरिताल के समान है, जो खिले हुए अनार के पुष्प के समान है शोभायमान वस्त्र को धारण करती है , और श्री कृष्ण को जो अमृत के समान,पाक व्यंजनों का आस्वादन करती है उन इन्दुलेखा जी का हम ध्यान करते है. तो ये राधा जी की चतुर्थ सखी है. राधा माधव की नित्य नए नए व्यजंन बनाकर सेवा करती है”. प्रेम से कहिये श्री राधे

राधा जी की तीसरी सखी है – “चित्रा जी”



राधा जी की तीसरी सखी है वो “चित्रा जी” है. इनके रहने का स्थान राधा जी के पूर्व में “पदमकुंज” नाम का कुंड है वे इसी में रहती है. और उनकी सेवा राधा माधव के प्रति “लौवंग माला” बनाकर सेवा करती है. इनकी अंग क्रांति केसर के वर्ण की है. और “वस्त्र काच वर्ण” के है.
इनकी भी आयु चौदह वर्ष है. इनके माता-पिता “चतुर और “चर्चिका” इनके पति “पीठरक” है. और ये गौरलीला में चित्रा सखी “गोविंदानंद” के रूप में विख्यात हुई.
चित्रा जी को जो मंत्र है .- “श्री चित्राय स्वाहा”
प्रसंग १ – इनके जीवन का प्रसंग है कि ये कैसे राधा जी की अष्ट सखियों में शामिल हुई है. चित्रा जी को बचपन से ही मोहनी विद्या आती थी. साथ ही बहुत अच्छी चित्रकारी करती थी किसी को एक बार देख लिया तो उसका वैसा ही चित्र बना देंती थी.
एक बार की बात है कृष्ण के मित्र श्रीदामा जी ने कहा – कि मित्र! मुझे आपका चित्र चाहिए तो कृष्ण जी ने कहा – कि मै तुम्हें कल लाकर दे दूगाँ.
वे घर जाकर मैया से बोले – कि मेरा चित्र बनवा दो, मुझे मित्र को देना है.
तो मैया ने कहा कि ठीक है बनवा दूगी. और काम में लग गई. तो वो समझ गए कि यहा बात नहीं बनेगी, तो नंद बाबा सें जाकर बोले – कि बाबा ! मेरा चित्र बनवाओ तो नंद बाबा ने अपने मित्र से कहा कि जाओ कोई चित्र बनाने वाले को ढूढ कर लाओ.
तो वो गया चित्रा जी की तो सब में ख्याति थी तो वो उनके पास पहॅच गए, और बोले – कि मुझे नंद बाबा ने भेजा है. उनके लाला का चित्र बनवाना है. आप बना देगी ?
वे बोली – मै किसी के घर नहीं जाती.
तो उनके मित्र बोले- कि मै आपको धन दिलवा दूगाँ.
तो वो बोली – कि यहीं लाला को लेके आओ, तो वो बोले – कि वो यहाँ नहीं आ सकते. फिर ठाकुर जी की प्रेरणा से वो चलने को तैयार हो गई. फिर जब वो नंदबाबा के घर पहुची और जब कृष्ण जी को देखा तो देखती ही रह गई. बाल रूप को देखती ही रह गई. उनको योग ध्यान में नहीं रहा उनको देखकर तृप्ति नहीं होती. वो मोहित हो गई. उनको रूप ही ऐसा है. उनके नयनों से अगर नयना मिल गए तो फिर वो बाँके बिहारी का हो गया. वहीं बात
“मोर का मुकट मेरे चितचोर का मुकुट, दो नयना कटीले है. सरकार के, दो नयना नहीं है. वो कटारें है जो साधक एक बार देख ले, उस पर कटार चला देते है. “कमर लजाए तेरी सूरत को देखकर, भूली घटाए तेरे कजरे की रेख पर, देखकर काली सावन भी फीका है. ये मुखडा निहार के, दो चाँद गए हार के. नयन सरकार के कटीले है, कटार से” चाँद भी लजा जाए.
“मोहन नयना आपके नौका के आकार, जो जन इन में बस गए, हो गए भव से पार”
जैसे बिहारी जी चंचल है. ऐसे ही उनके नयन है. ऐसा ही चित्रा जी के साथ हुआ और बोली कि हम कल बना देगे और घर आ गई तो जब चित्रा जी कहती है नारद जी से कि मेरा योग जा रहा है और मै बालकृष्ण की चित्र नहीं बना पा रही हूँ.
तो नारद जी ने कहा – कि आपको श्री राधा जी की आराधना करनी पडेगी. क्योंकि उनकी कृपा के बिना कोई भी बाँके बिहारी जी तक नहीं पहुँच सकता है . पहले उनकी आराधना करो और वो प्रसन्न हो जाएगीं तब तुम चित्र बनाने की अधिकारी बन जाउगी. और वो आराधना करने लगी तो वो प्रसन्न हुई तब वो चित्र बना सकीं. और राधा जी ने उन्हें अष्ट सखियों में शामिल कर लिया तो राधा माधव से मिलता है, तो गोपीयों की आराधना करनी होगी.
संत जन ने इनकी ध्यान की विधि बताई “केसर युक्त काँच के वस्त्र धारण करने सुदंर मुस्कान युक्त मुख वाली और श्री कृष्ण जी की लौवाग और माला प्रदान करके सेवा करने वाली चित्रा जी का हम ध्यान करते है.”
इनकी भी आठ सखियाँ है – रसालिका, दूसरी तिलकनी, शौरसेनी, सुगंधिका, वामिनी, बामनयना, नागरी नागवल्लिका ये यूथ में प्रधान है .

राधा रानी जी की अष्टसखियाँ – विषाखा जी”


ललिता जिसमें सबसे प्रधान है। दूसरी है- विषाखा जी, तीसरी है चित्राजी, चौथी है चंपकलता, उसके बाद सुदेवीजी, तुंगविद्या, इंदुलिखा,रंगदेवी है. इनकी भी फिर सेविकाए है.
आज हम “विषाखा जी” के बारें में चर्चा करेंगे. तो विशाखा जी भाव में राधा जी की तरह ही है. उन्हीं के जैसे है जिस समय राधा जी का प्रादुर्भाव हुआ उसी समय विशाखा जी का जन्म हुआ है ,मतलब राधा जी के समान वे भी “चौदह वर्ष दो माही पद्रंह दिन” की है.
अष्ट सखियों में सबकी अलग ध्यान विधि है – वस्त्र सज्जा है. सबके अलग अलग मंत्र है. और इसके बाद इन सब की आठ-आठ सेविकाए है. जो उनकी सेवा करती है. वों “मंजरी सखी” कहलाती है. संतों ने इनका बडा प्यारा परिचय बताया है. क्योंकि राधा माधव को प्राप्त करने के लिए इनसे होकर जाना पडता है तो गेापी भाव प्राप्त करने के लिए इन्हीं सखियों का ध्यान करते है. चिंतन करते है. क्योंकि उनकी कृपा होनें पर राधा माधव अपने आप ही मिल जाएगें. तो हमें भक्त के पैर पकडनें है.
जैसे गज के पैर उस ग्राह ने पकडे थे डूबने लगा तो भगवान को पुकारा तो भगवान ने आकर उसको मारा, तो गज ने कहा – कि प्रभु पुकारा मैने आपको पुकारा मेरे से पहले उस ग्राह का क्यों उद्धार किया?
तो भगवान ने कहा – कि मै क्या करूँ ? जो मेरे भक्त के पैर पकड लेता है. मै पहले उसका उद्धार पहले करता हूँ.
“विषाखा” जी राधा जी की दूसरी सखी है. पहली ललिता जी तो विषाखा जी की वस्त्रावली कैसी है .- “वो तारावली वस्त्र पहनती है. अर्थात नील वस्त्र धारण करती है. जैसे तारें चमकेते है. इनकी विघुत के समान क्रातिं है, गौर वर्ण की है. “यावट गाँव” की है. इनके माता-पिता भी वहीं के है. इनके माता-पिता का नाम “दक्षिणा” और “पावन” है . इनका विवाह “वाहिक” नामक गेाप के साथ हुआ .
श्री राधा कुण्ड के उत्तर-पूर्व कोणवर्ती दल पर “आनन्द” (विषाखानन्द ) नामक कुंज है, वह मेघ कांति से युक्त है.कृष्ण वल्लभा श्री विशाखा जी वहाँ विराजती है.यह स्वाधीन भर्तृका नायिका के भाव से श्री कृष्ण में सदा प्रीति करती है . इनका वर्ण गौर है वे भी “१४ वर्ष २ मास १५ दिन” की है.
गौर लीला में –
विषाखा जी गौर लीला में “श्री रायरामानंद” करके विख्यात हुई.
निकुजं में इनकी सेवा –
ये भगवान श्री कृष्ण की सेवा “वस्त्र आभूषण” है.
श्री विषाखा जी का मंत्र –
“ऐं सौ विषाखायै स्वाहा” है . संत जन इसी का जप करते है .
श्री विषाखा जी ध्यान विधि
सच्चम्पकावलिविडामि्ब –तनुं सुशीलां
ताराम्बरां विविध भूषणशोभमानाम्
श्रीनन्दनन्दनपुरो वसनादीभूषा दाने रतां
सुकुतुकांच भजे विशाखाम्
अर्थात – “जिनकी अंगकांति चंपकपुष्पावली की कांति को पराजित करने वाली है . अति सुशीला है , जो तारावली के सदृष्य मनोहर वस्त्र को धारण करती है . जो श्री नन्दनन्दन को वस्त्रभूषादि नित्य देने की सेवा करती है .ऐसी विषाखा जी के चरणों मे हमारा प्रणाम है.”
इनकी भी अष्टसखियों का यूथ है . – मालती, माधुरी, चंद्रलेखा, सुभानना, कुजंरी, हरिणी, सुरभि, चपला, है. ये आठ सखियाँ है.
चैतन्य महाप्रभु कौन है. एक बार जब भगवान को राधा जी का वियोग बहुत ज्यादा हुआ तो राधा जी ने भगवान से कहा – कि आप मेरा विरह कभी नहीं समझ सकते. आप राधा होते तो जानते ?
भगवान ने कहा – कि जब कलियुग में मेरा अवतार होगा तो शरीर तो राधा का होगा, पर आत्मा कृष्ण की रहेगी. तब मै तुम्हारी विरह वेदना को समझ सकूगाँ. तो कहते चैतन्य महाप्रभु के चरणों में वहीं चिन्ह थे जो राधा जी के चरणों में थे. इसलिए उनकी आत्मा कृष्ण और शरीर राधा जी का था. तो उसी विरह में पेड से लिपट जाते थे.
जो रायमानंद जी है. गोविंद जी है. ये जो चैतन्य महाप्रभु के साथ भक्त है वो गेापियाँ ही है. तो विशाखा जी जो उनके साथ “रायरामानंद” करके विख्यात हुई. सखियाँ कैसे पीछे हो सकती है. तो चैतन्य महाप्रभु के साथ बहुत भक्त थे.
प्रत्येक सखी का अपना-अपना कुजं है. वे वहीं रहती है. तो विशाखा जी “आनन्द” नामक कुडं में निवास करती है.
इनकी सेवा क्या है.- जैसे ललिता जी की तामूल फल की है . वैसे ही इनकी सेवा “वस्त्र आभूषण” है.
इनका जो “मंत्र” है – “ऐं सौ विषाखायै स्वाहा” है . संत जन इसी का जप करते है .
संत कहते है. . हमें अगर ध्यान करना है – विषाखा जी का तो “जिनकी अंग क्रांति चंपक पुष्प को पराजित करने वाली है . जो तारावली के सदृष्य मनोहर वस्त्र को धारण करती है . जो श्यामनंदन को वस्त्र नित्य देके सेवा करती है .ऐसी विषाखा जी के चरणों मे हमारा प्रणाम है.”

ललिता जी का प्राकट्य –


एक बार राधा जी प्रसन्न हुई तो सोचने लगी कि मेरे जैसी कोई सखी तो मे उसके साथ खेलती तो इतना सोचते ही उनके तो उनके अंग से एक सखी प्रकट किया जो ललिता जी बन गई वो उनकी अंतरंगा सखी है । राधा कृष्ण का जो विस्तार है उसमे ये सखिया दो रूपां से आती है । पहली होती है — खंडिता दशा.
जब राधा माधव निकुंज में जो लीला करते है । तो ये राधा जी का पक्ष लेती है । और जो दूसरी प्रकार की है वो भगवान कृष्ण का पक्ष लेती है । राधा जी की आलोचना करती है । पर ये सब लीला है । उनकी दृष्टिी में राधा कृष्ण एक है । उनके मन में जलन नहीं होती, क्योंकि राधा जी ही सब की आराध्या है । वो कृष्ण का संग कभी नहीं चाहती है । उन्हें राधा कृष्ण को संग देख कर ही सुख मिलता है । ऐसी त्यागमयी गोपियाँ है । ऐसे ही हर गोपी का वर्णन आता है ।
तो ललिता जी सबसे प्रधान सखी है । जो कि सर्वश्रेष्ठ है । राधा जी से २७ (सत्ताइस) दिन बडी है । इनकी आयु “चौदह वर्ष आठ माह” है । और राधा जी से बडी है । इनका एक नाम “अनुराधा” है. हर सखी का अलग परिधान है । ये कोई सामान्य नहीं है । संत गोपी भाव को पाने के लिए तपस्या करते है.
ललिता जी की आज्ञा बिना रास में प्रवेश नहीं
जब रास लीला शुरू हुई तो करोंडों सखियाँ थी, ये पूर्व जन्म के संत, वेदों की ऋचाए थी, जिन्हेांनें भगवान से उनका साथ विहार मागा था तो जब रास शुरू होता है । उसमें हर एक का प्रवेष नहीं था पुरूषों का प्रवेश नहीं था, ललिता जी द्वार पर खडी थी,ललिता जी की आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता था. जब भगवान शिव आए तो ललिता जी ने मना कर दिया.
तो भगवान शिव ने कहा – कि कृष्ण हमारे आराध्य है ।
तो ललिता जी ने कहा – कि यहा ब्रज में कृष्ण के अलावा और कोई प्रवेश नहीं पा सकता.
तो शिव जी ने कहा – मै क्या करू ?
तो ललिता जी ने उन्हें गोपी का श्रृगांर करवाया, चोली पहनाया कानों में कर्ण फूल, और घूघट डाला. कानों में युगल मंत्र दिया. तब प्रवेश हुआ.
तो कहने का अभिप्राय ललिता जी शिव जी की गुरू हो गई, क्योकि युगल मंत्र का उपदेश दिया. तो सखी कोई साधारण नहीं है । बड़े-बड़े ऋषि, मुनि जिनकी आराधना करते है ।ऐसी वे दिव्य और अलौकिक गोपियाँ है. तो गोप भाव अति उच्च है.
ललिता जी की अंग – क्राति “गौरोचन” के समान है,
वर्ण – लालिमा युक्त “पीले रंग” का वर्ण है.
वस्त्र – ललिता जी “मोर पंख वाले” क्रांति वस्त्रों केा धारण करती है ।
उनके माता-पिता का नाम – पिता विशोक, और माता शारदा है ।
और भैरव नाम के गोप के साथ उनका विवाह हुआ.
निकुंज में इनकी सेवा –
“कपूर मिश्रत तममूल फल” राधा माधव को देती है ।ये नित्यप्रति की सेवा है. और हर गोपी अपनी सेवा बडी तन्मयता से करती है । गोपी जीवन का उद्देश्य ही एक है । राधा माधव की सुख सामग्राी को जुटाना
राधा जी की जन्म स्थली है । रावल गाँव और ललिता जी “यावट” गाँव की है । और कलियुग में ललिता जी का अवतार स्वामी हरिदास जी को माना जाता है । वो ही ललिता जी का अवतार है तो आज से पाच सौ साल पूर्व वृदांवन के पास के गाँव में हरिदास जी का जन्म हुआ. तो उन्होंने अपनी संगीत साधना भगवान के विग्रह को प्रकट किया.
प्रसंग – बचपन का एक प्रसंग है । कि एक बार वो अपने पिता के साथ मंदिर में दर्शन करने गए और उनके पिता ने जल चढाने को कहा. तो वो भगवान शिव को जल चढाने लगे तो भगवान शिव उनके पिता से बोले – कि ये आप क्या कर रहे हो ?
ये तो मेरे गुरू और भला कोई गुरू से सेवा लेता है । रास लीला में इन्होंनें मुझे मंत्र दिया था तो ये कोई सामान्य सखी नहीं है ।
ललिता जी को शिव जी अपना गुरू मानते है । तो स्वामी हरिदास जी को ललिता जी कर अवतार माना जाता है ।
यहाँ तक की मीरा बाई को भी किसी सखी का अवतार माना गया है । ललिता जी का जन्म यावट गाँव मे हुआ उनका निवास स्थान “ऊचा गाँव” है, इनके प्रयत्नों से ही राधा माधव का मिलन हुआ. जब उन्हें पता चलता है भगवान गोवर्धन पर आते है । तो वो राधा जी को वृदांवन से मिलाने के लिए वहाँ लेकर आती है । हर प्रयास करती है । ऐसी दिव्य और अलौकिक महिमा है.
ललिता जी राधा रानी की सहचरी के अतिरिक्त इनका खंडिका नायिका के रूप में भी चित्रंण होता मतलब सेविका के रूप मे राधा माधव के साथ आती है । और कभी-कभी नायिका बनकर कृष्ण जी के साथ विहार करती है । ललिता जी एक सफल दुति के अनुरूप, मान रूप, तीक्ष बुद्वि वाली, वाकचातुर्य, आत्मीयता, नायक को रिझाने वाली व्यक्तित्व सौन्दर्य वाली है । बिलकुल राधा रानी के जैसी ही है.
संत जन इनके ध्यान की विधि बताई है यदि हमें राधा माधव तक पहुचना है तो हमें इनकी आराधना करनी चाहिये, क्योंकि इनकी कृपा के बिना राधा माधव तक हम नहीं पहुँच सकते है.संत जिन इनका ही ध्यान करते है.
गोपियां का इनके बिना राधा माधव से नहीं मिल सकती है.
ललिता जी की ध्यान विधि
जिनकी अंग कांति गौरोचन कांति को भी पराभूत करती है, सुन्दर बेलयुक्ता है, मोरपंख वस्त्र धारण करती है, उज्जवल आभूषण पहनती है, और जो राधा माधव की ताममूल फल से सेवा करती है,जो राधा जी की प्रिय सखी है. ऐसी ललिता जी का मै ध्यान करता हूँ”.
इनका मंत्र है –
“श्री लाम ललिताय स्वाहा”
ये इनका “बीज मंत्र” है.
संत जन इसी मंत्र का निरंतर जप करते है.
ये राधा जी कायव्यूहरूपा है.
इन ललिता जी की भी आठ प्रधान सखी कही गई है – रत्नप्रभा, रतिकला,
सुभद्रा, चंद्र्रेखिका, भद्र्रेखिका, सुमुखी, घनिष्ठा, कल्हासी, कलाप्नी.
ये तो एक सखी है राधा रानी जी की इसी तरह और भी प्रधान सखिया है. …!!!
!!!! जय जय श्री राधे !!