सातवी सखी – श्रीतुङ्गविद्या जी
श्री तुङ्गविद्या सखी श्री राधाकुंड के पश्चिम-दिशावर्ती दल पर अरुण वर्ण की अति सुन्दर तुंग विद्या नन्दन नामक कुंज विख्यात है समुत्सुका श्री तुंगविद्या जी नित्य उस में विराजती है
इनकी सदा श्री कृष्ण में विप्रलम्भ भावनात्मक रति है इनकी अंग कांति प्रचुर कपूर-चन्दन-मिश्रित केसर की भांति है और पीले रंग के वस्त्र धारण करती है यह प्रखर –दक्षिण स्वभाव की नायिका है.
इनकी माता का नाम – “मेघा”, पिता का नाम – “पुष्कर” और पति का नाम – “बालिश” है यह नृत्य –गीतादि की सेवा में रहती है और इनका घर यावट में है.
इनकी वयस् १४ वर्ष २ मास २२ दिन की है कलियुग में श्री गौर लीला में ये “श्री वक्रेश्वर–पंडित” नाम से विख्यात हुई है.
श्री तुङ्गविद्या सखी-मंत्र – “श्रीतुंगविद्यायै स्वाहा”
श्री तुङ्गविद्या सखी ध्यान –
चंद्राढयेsरपि चन्दनै: सुलालितां श्रीकुंकुमाभाधूतिं |
सदरत्नाचितभूषणाचिततारां शोणाम्बरोल्लासिताम |
सद्गीतावलि संयुतां बहुगुणां डम्फस्यशब्देन वै
नृत्यन्तीं पुरतो हरे रसवतीं श्रीतुंगविद्यां भजे ||
जो कर्पुरयुक्त चन्दन से चर्चित होकर अति सुशोभित हो रही है जिनकी अंग-कांति सुन्दर केसर तुल्य है जो सुन्दर रत्न भूषणों से अलंकृत है और जो लाल रंग के वस्त्र धारण कर उल्लसित होती है सद् गीतावली संयुक्ता है बहुगुण शालिनी है जो डफली-वाध्य के साथ श्री कृष्ण के सामने नृत्य करती है इन रसवती श्री तुङ्गविद्या जी का मै ध्यान करती हूँ
श्री तुङ्गविद्या सखी प्रणाम –
जो कर्पूर –चन्दन मिश्रित मनोरम केसर की अंगकान्ति से सुशोभिता है पीत-छवि के वस्त्र धारण करने से जिनकी प्रचुर कांति फ़ैल रही है हे स्वामिनि ! जो आपके समान बुद्धिमती होकर सर्वत्र आहात होती है आपकी उन प्रिय सखी श्री तुङ्गविद्या को मै प्रणाम करती हूँ.
श्री तुङ्गविद्या सखी-यूथ :
मंजुमेधा, सुमधुरा, सुमध्या, मधुराक्षी, तनुमध्या, मधुस्यन्दा, गुणचूड़ा और वरांगदा. ये आठ सखियाँ श्री तुङ्गविद्या जी के यूथ में प्रधान है.
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