Wednesday, 21 September 2016

भगवान गणेश के 8 अति प्राचीन मंदिर


अष्टविनायक से अभिप्राय है- “आठ गणपति”। यह आठ अति प्राचीन मंदिर भगवान गणेश के आठ शक्तिपीठ भी कहलाते है । महाराष्ट्र में गणपति के आठ प्राचीन मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों में विराजित गणेश जी की प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है। इन गणेश मंदिर के दर्शन करने से प्रत्येक व्यक्ति की मन्नतें पूर्ण हो जाती हैं। विघ्नहर्ता श्रीगणेश अपने भक्तों से सभी विघ्नों को हर लेते हैं। उनके दर्शन मात्र से ही सभी चिंताओं बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानें गणपति के चमत्कारी मंदिरों के बारे में-
सिद्धिविनायक मंदिर
पुणे से लगभग 200 कि.मी. दूर भीम नदी के किनारे सिद्धिविनायक मंदिर स्थित है। यह मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है। माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और गणेश जी ने उन्हें दर्शन देकर सिद्धियां प्रदान की थी। भगवान विष्णु ने यहां श्रीगणेश के मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। यहां गणेशजी की प्रतिमा 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। माना जाता है कि श्रीगणेश यहां आने वाले अपने भक्तों को रिद्धि- सिद्धि देते हैं। कहा जाता है कि समीप में बहने वाली भीमा नदी का प्रवाह तीव्र होने पर भी उसका शोर नहीं है।
श्री मयूरेश्वर मंदिर
महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 80 कि.मी. दूर मोरे गांव में विनायक मयूरेश्वर मंदिर स्थित है। मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के सूचक हैं। मंदिर के द्वार पर नंदी बैल की प्रतिमा है। इसका मुख गणेश जी की प्रतिमा का ओर है। कहा जाता है कि भोलेनाथ और नंदी इस मंदिर में आराम करने के लिए रूके थे। नंदी को ये स्थान इतना भा गया कि उन्होंने यहां से जाने से मना कर दिया। उस समय से ही नंदी यहां स्थित हैं। मंदिर में गणेश जी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं। माना जाता है कि श्रीगणेश ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध करके उसका वध किया था। इसलिए गणेशजी को मयूरेश्वर कहा जाता है।
श्री वरदविनायक
महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड़ गांव में वरद विेनायक मंदिर स्थित है। श्रीगणेश यहां आने वाले भक्तों की प्रत्येक इच्छाएं पूर्ण करते हैं। मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है। कहा जाता है कि यह दीपक कई वर्षों से प्रज्वलित है। वरदविनायक का नाम लेने मात्र से संपूर्ण इच्छाओं को पूरा करने का वरदान मिलता है।
बल्लालेश्वर विरनायक
मुंबई पुणे राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाली में बल्लालेश्वर विमनायक विराजमान हैं। कहा जाता है कि श्रीगणेश के भक्त बल्लाल ने उनकी पूजा का आयोजन किया। गांव के बहुत से बच्चे वहां आकर पूजा में इतने मग्न हो गए कि उन्हें जाने का याद ही नहीं रहा। जब बच्चे काफी समय बाद भी घर न आए तो उनके माता-पिता को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेश जी की प्रतिमा और बल्लाल को वन में फेंक दिया। बल्लाल बेहोशी की हालत में भी श्रीगणेश का स्मरण करते रहे। श्रीगणेश ने अपने भक्त को दर्शन दिए। गणेश जी के दर्शन करने के बाद बल्लाल ने कहा कि वह उनके साथ यहीं रहे। अपने भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए इसी स्थान पर विराजमान हो गए।
चिंतामणि गणपति
पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में चिंतामणि गणपति है। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए श्रीगणेश की आराधना की थी। इसलिए गणेश जी चिंतामणि कहलाए। यहां पर चिंतामणि गणपति के दर्शन मात्र से ही सारी चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है।
श्री गिरजात्मज गणपति
पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से लगभग 90 कि.मी. दूर एक गुफा में श्री गिरजात्मज गणपति विराजमान हैं। यहां गणेश जी का पूजन माता गिरिजा अर्थात देवी पार्वती के पुत्र के रुप में की जाती है। एक बड़े पत्थर को काट कर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। इस गुफा को गणेश गुफा भी कहा जाता है।
विघ्नेश्वर गणपति मंदिर
पुणे के ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में विघ्नेश्वर गणपति विराजमान हैं। कहा जाता है कि विघ्नासुर दैत्य ने साधु-संतों को तंग कर रखा था। साधु-संतों ने श्रीगणेश की आराधना की। तब गणेश जी ने प्रकट होकर विघ्नासुर का वध कर सभी को दैत्य के अत्याचार से मुक्ति दिलवाई। गणपति के विघ्नेश्वर स्वरूप के दर्शन से सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।
महागणपति मंदिर
महाराष्ट्र के राजनांद गांव में विरनायक महागणपति मंदिर स्थित है। यह मंदिर पुणे- अहमदनगर राजमार्ग पर 50 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां श्रीगणेश की प्रतिमा को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां त्रिपुरों का वध करने से पूर्व भगवान शिव ने गणेश जी का पूजन किया था।

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