Wednesday, 21 September 2016

मर्यादा पालन क्यों ?


आहार निद्रा भय मैथुन आदि क्रियाएं समस्त जीवों की समान होते हुए भी जो विशेषता मनुष्य को इन सभी से अलग करती है, वह तत्ततकार्य कलाप को विधिवत् सम्पादन करने की मर्यादा ही है, जिसे शब्दान्तर में ज्ञान या धर्म भी कहा जाता है।
मर्यादा उस रहन सहन की रीति को कहते है जिसे की मर्य- मरणाधर्मा प्राणी मृत्यु से भयभीत हुआ अपने परित्राण के लिए आदान- स्वीकार करता है।
पशु, शारीरिक संघटन में मनुष्यों से चाहे कहीं अधिक हो परंतु उनका आयुष्य स्तर मनुष्यों की तुलना में बहुत हीन होता है। यह बात विस्तारपूर्वक हम पूर्वाद्ध में लिख चुके हैं। साधारण बुद्धि का तो यही तकाजा हो सकता है कि जो जीव अधिक दृढ़ांग हो उसे जीना भी अधिक चाहिए, परंतु यह व्याप्ति मनुष्य और पशुओं के आयुष्य स्तर का संतुलन करते हुए बाधित हो जाती है। इसका एक मात्र कारण जीवनचर्या की मर्यादा का तारतम्य ही कहा जा सकता है। पशु मर्यादा नहीं जानते है, परंतु मनुष्य कुछ ना कुछ नियम पालते है इसलिए जो जितने नियमों का पालन करता है उतना ही दीर्धजीवी हो सकता है। यह मर्यादा पालन का प्रत्यक्ष लाभ है।

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