Saturday, 9 April 2016

प्रभु श्रीराम का प्रलयंकारी धनुष "कोदंड":-


भगवान राम के धनुष का नाम कोदंड था इसीलिए प्रभु श्रीराम को कोदंड कहा जाता था। 'कोदंड' का अर्थ होता है बांस से निर्मित। कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता था। कोदंड नाम से भिलाई में एक राम मंदिर भी है जिसे 'कोदंड रामालयम मंदिर' कहा जाता है। भगवान श्रीराम दंडकारण्य में 10 वर्ष तक भील और आदिवासियों के बीच रहे थे।
एक बार समुद्र पार करने का जब कोई मार्ग नहीं समझ में आया तो भगवान श्रीराम ने समुद्र को अपने तीर से सुखाने की सोची और उन्होंने तरकश से अपना तीर निकाला ही था और प्रत्यंचा पर चढ़ाया ही था कि समुद्र के देवता प्रकट हो गए और उनसे प्रार्थना करने लगे थे। भगवान श्रीराम को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता है। हालांकि उन्होंने अपने धनुष और बाण का उपयोग बहुत ‍मुश्किल वक्त में ही किया।
देखि राम रिपु दल चलि आवा। बिहसी कठिन कोदण्ड चढ़ावा।।
अर्थात शत्रुओं की सेना को निकट आते देखकर श्रीरामचंद्रजी ने हंसकर कठिन धनुष कोदंड को चढ़ाया।
कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।
मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥
कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।
चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै॥
भावार्थ:-कठिन धनुष चढ़ाकर सिर पर जटा का जू़ड़ा बाँधते हुए प्रभु कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे मरकतमणि (पन्ने) के पर्वत पर करोड़ों बिजलियों से दो साँप लड़ रहे हों। कमर में तरकस कसकर, विशाल भुजाओं में धनुष लेकर और बाण सुधारकर प्रभु श्री रामचंद्रजी राक्षसों की ओर देख रहे हैं। मानों मतवाले हाथियों के समूह को (आता) देखकर सिंह (उनकी ओर) ताक रहा हो।
प्रभु कीन्हि धनुष टकोर प्रथम कठोर घोर भयावहा।
भए बधिर ब्याकुल जातुधान न ग्यान तेहि अवसर रहा॥
प्रभु श्री रामजी ने पहले धनुष का बड़ा कठोर, घोर और भयानक टंकार किया, जिसे सुनकर राक्षस बहरे और व्याकुल हो गए। उस समय उन्हें कुछ भी होश न रहा।
प्राचीन समय में सैन्य विज्ञान का नाम ही धनुर्वेद था, जिससे सिद्ध होता है कि उन दिनों युद्ध में धनुष बाण का कितना महत्व था।
नीतिप्रकाशिका में मुक्तवर्ग के अंतर्गत 12 प्रकार के शस्त्रों का वर्णन है, जिनमें धनुष का स्थान प्रमुख है।

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