Saturday, 14 May 2016

वामन अवतार और बलि :-



अगली कथा प्रहलाद के पौत्र बलि की है। बलि ने शुक्राचार्य आदि भृगुवंशियों की सेवा कर एवं विश्‍वजित यज्ञ कर सोने की चादर से मढ़ा दिव्‍य रथ तथा धनुष, दो अक्षय तूणीर और कवच प्राप्‍त किए थे। इनसे युक्‍त होकर बलि ने इंद्र की नगरी अमरावती और सारे विश्‍व को जीत लिया। तब उसने सौ अश्‍वमेध यज्ञ किए।

अंतिम यज्ञ के समय एक नन्‍हें ब्रम्‍हचारी ने यज्ञ- मंडप में प्रवेश किया। बलि ने अवसर के अनुसार स्‍वागत कर जो चाहे माँगने को कहा। वामन ने कुल परम्परा एवं धर्माचरण की प्रशंसा करते हुए और उसकी दानवीरता की दुहाई देकर केवल तीन पग पृथ्‍वी माँगी। बलि ने पूरा द्वीप माँगने को कहा। पर वामन अपने आग्रह पर डटा रहा,

‘चक्रवर्ती नरेश भी धन और भोग की सामग्री प्राप्‍त होने पर तृष्‍णा का पार न पा सके। संतोषी, इंद्रियोंको वश में रखने वाला व्‍यक्ति ही सुखी रहता है। इसलिए जितने से मेरा काम बने, वह तीन पग माँगता हूँ।‘ बलि हँस पड़ा, ‘जितनी इच्‍छा हो, ले लो।‘
कहकर संकल्‍प को उद्यत हुआ। इस पर शुक्राचार्य ने मना किया

‘यह तीन पग में सारे लोक नाप लेगा। जब तुम सर्वस्‍व दे दोगे तब निर्वाह कैसे होगा? अपनी जीविका की रक्षा के लिए, प्राण संकट पर या किसी को मृत्‍यु से बचाने के लिए असत्‍य भाषण उतना निंदनीय नहीं है।‘
पर बलि न माना और पत्‍नी से जल ले संकल्‍प किया।

तब एक अद्भुत घटना घटी । वामन का रूप बढ़कर संसार-व्‍यापी हो गया। दो पगों में ही उसने तीनों लोकों को नाप लिया। तब बलि से कहा,

‘तुमने मुझे तीन पग पृथ्‍वी देने का दंभ किया था। अब तीसरे पग का स्‍थान कहाँ?’

इस पर बलि ने अपना सिर दिखा दिया। वामन ने उसे पाताल लोक में राज्‍य करने भेज दिया। कहा,

‘जो तुम्‍हारा असुर भाव होगा वह मेरे संसर्ग से नष्‍ट हो जाएगा।‘

इस प्रकार वामन ने बलि से पृथ्‍वी की भिक्षा मांग कर देवताओं को स्‍वर्ग लौटा दिया। बाद में बलि इंद्र बना।

इसी कथा से प्रेरित होकर जयंत विष्णु नार्लीकर ने एक विज्ञान कहानी द रिटर्न ऑफ वामन (The Return of Vaman) लिखी

यह समाज की अगली सभ्‍य अवस्‍था का चित्र है। वामन शिशु रूप समाज है। तब हिंसा अथवा ‘जंगल के नियम’ की आवश्‍यकता नहीं पड़ी। यह शिशु रूपी समाज सब जगह फैल गया। इसके माँगने मात्र से अधिकार मिल गए।

इस कथा से स्‍पष्‍ट है कि असुर को भी आसुरी भाव नष्‍ट होने पर देवताओं का राज्‍य एवं इंद्र पद मिल सकता है।

No comments:

Post a Comment