Sunday 31 January 2016

मगर किसी की तो बहन हो.."

बाजार से घर लौटते वक्त कुछ खाने का मन किया तो, वह रास्ते में खड़े ठेले वाले के पास भेलपूरी लेने के लिए रूक गयी।
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उसे अकेली खड़ी देख, पास ही बनी पान की दुकान पर खड़े कुछ मनचले भी वहाँ आ गये।
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घूरती आँखे लड़की को असहज कर रही थी, पर वह ठेले वाले को पहले पैसे दे चुकी थी, इसलिए मन कड़ा करके खड़ी रही। द्विअर्थी गानों के बोल के साथ साथ आँखो में लगी अदृश्य दूरबीन से सब लड़के उसकी शारीरीक सरंचना का निरिक्षण कर रहे थे।
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उकताकर वह कभी दुपट्टे को सही करती तो कभी ठेले वाले से और जल्दी करने को कहती। मनचलों की जुगलबंदी चल ही रही थी कि कबाब में हड्डी की तरह एक बाईक सवार युवक वँहा आकर रूका।
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"अरे पूनम...तू यहाँ क्या कर रही है ? हम्म..! अपने भाई से छुपकर पेट पूजा हो रही है।" बाईक सवार युवक ने लड़की से कहा।
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संभावित खतरे को भाँपकर मनचले तुरंत इधर उधर खिसक लिये।
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समस्या से मिले अनपेक्षित समाधान से लड़की ने राहत की साँस ली फिर असमंजस भरे भाव के साथ युवक से कहा " माफ किजिए, मेरा नाम एकता है। आपको शायद गलतफहमी हुई है, मैं आपकी बहन नही हूँ।"
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"मैं जानता हूँ...! मगर किसी की तो बहन हो.." कहकर युवक ने मुस्कुराते हुए हेलमेट पहना ओर अपने रास्ते चल दिया।

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