भारतवर्ष में प्रचलित प्रायः समस्त सम्प्रदायोंने भगवान् के ज्ञानावतार वेदव्यासजीको वेदोंका विभागकरता स्वीकार किया है । किन्तु आधुनिक समयमें स्वघोषित आर्योंने पुराणोंकी निन्दा करने में कोई कमी नहीं छोड़ी और पुराणोंके वचन का सर्वदा विरोध ही किया कि व्यासजीने वेदोंका विभाग कैसे किया ? जबकि वेदोंके अनुसार तो परमात्माने ही "ऋक्०,यजु०,साम० आदि वेद ऋषियोंको प्रदान किये ?
अब इसका समाधान करना भी आवश्यक है ,यद्यपि परमात्मा ने "ऋक्,यजु,साम " आदि वेद ऋषियोंको प्रदान किये तथापि वेदोंको चार भागोंमें व्यासजी ने किया । भगवान् ने ब्रह्माजीको "ऋक्,यजु,साम" वेद मन्त्र प्रदान किये थे । अर्थात् - पद्य में अक्षर-संख्या तथा पाद एवं विरामका निश्चित नियम रहता है । अतः निश्चित अक्षर संख्या और पाद एवं विराम वाले वेद-मन्त्रोंकी संज्ञा "ऋक् " है जो कि पद्यात्मक है । जिन मन्त्रोंमें छंदके नियमानुसार अक्षर-संख्या और पाद एवं विराम ऋषिदृष्ट नहीं हैं ,वे गद्य हैं उन मन्त्रोंकी संज्ञा "यजु:" है जो कि पद्यात्मक है , और जितने मन्त्र गानात्मक हैं वे मन्त्र "साम"कहलाते हैं जो कि गीत हैं । ऋग्वेद "ऋक्" मन्त्रोंके कारण ऋग्वेदमें मात्र पद्यात्मक ही मन्त्र होते जबकि ऋग्वेदमें पद्यात्मक मन्त्रों का बाहुल्य तो ,किन्तु ऋग्वेद में गद्यात्मक मन्त्र और साममन्त्र भी हैं । इसीप्रकार यजुर्वेदमें केवल गद्यात्मक मन्त्र ही होने चाहिये थे जबकि यजुर्वेदमें पद्यात्मक मन्त्र भी हैं , यजुर्वेद में ऋग्वेद और अथर्ववेदके मन्त्र भी हैं इसीप्रकार सामवेदमें सम्पूर्ण मन्त्र ऋग्वेदके ही मन्त्र हैं , सामवेदके १८७५ मन्त्रोंमें १८०० मन्त्र ऋग्वेदकी शाकल शाखा में पाये जाते हैं और बाकी ७५ मन्त्र शांखायन शाखाके हैं । अथर्ववेद में तीनों मन्त्र "ऋक्,यजु:,साम" पाये जाते हैं इसलिए अथर्ववेद का नाम मन्त्रोके कारण न होकर प्रतिपाद्यविषयके कारण है । भगवान् वेदव्यासजीने "ऋक्,यजु:,साम" मन्त्रों का अलग अलग विभाग करके ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद को अपने शिष्य पैल ,वैशम्पायन,जैमिनी और सुमन्तु को पढ़ाया । जिन मन्त्रोंमें पद्य अधिक हैं उन्हें ऋग्वेद ,जिन मन्त्रोंमें गद्य अधिक हैं उन्हें यजुर्वेद,जिन मन्त्रोंमें साम अधिक हैं उन मन्त्रोंको सामवेद और जिन "ऋक्,यजु:,साम " तीनों मन्त्रों का अथर्ववेद का विभाग किया । अब गुरुमुख श्रवणकी स्वस्थ्य परम्परा का लोप होने से ज्ञान कहाँ से होगा ?
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