Friday, 5 August 2016

मनुष्य अपने कर्मों से स्वर्ग नरक यहीं पा सकता है


एक बार एक दार्शनिक एक हाथ में मसाल और दूसरे हाथ में पानी की बाल्टी थामे नगर की सड़को से गुजर रहा था। नगर में उसका काफी सम्मान था। अत : उसे इस रूप में देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ इसी में किसी ने पूछ ही लिया। आप एक हाथ में मशाल और दूसरे हाथ में बाल्टी उठाकर क्यों चल रहे है। इसके पीछे आपका क्या उद्देश्य है।
दार्शनिक ने कहा- इसके पीछे मेरा बहुत बड़ा उद्देश्य है। मै मशाल की आग से स्वर्ग के सुखो को जला देना चाहता हूं, ताकि आदमी स्वर्ग की रंगीन कल्पनाओं और नरक के भयानक दृश्यों से प्रभावित हुए बिना कर्म के पथ पर आगे बढ़े और कर्तव्यनिष्ठ बनें। किसी को उसकी बात पूरी तरह समझ नहीं आई। तभी किसी ने पूछा- आपको ऐसा क्यों लगता है कि व्यक्ति के कर्म स्वर्ग की सुखद कल्पना और नरक की भयानकता से प्रभावित होते है। क्या स्वर्ग और नरक के दृश्यों को देखकर ही व्यक्ति कर्म करता है।
दार्शनिक ने कहा - हां स्वर्ग और नरक के दृश्यों को देखकर ही व्यक्ति अपना कर्म करते है। इस संसार में अधिकांश के दिमाग में स्वर्ग की सुखद कल्पनाओं और नरक के भयानक भूत सवार होते है। वे जो भी करते है इसी से प्रभावित होकर करते है और मै इन दोनों को मिटा देना चाहता हूं।
किसी ने पूछा- इससे क्या होगा?
दार्शनिक ने कहा- जब व्यक्ति स्वर्ग के लालच और नरक के भय से मुक्त होगा, तभी वो अपने कर्तव्यों का सही पालन करेगा। इस प्रकार जीने से ही व्यक्ति के चेहरे पर जीवन की असली मुस्कान प्रकट होगी। ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग भी इसी दुनिया में होगा। वह अपने कर्मो से स्वर्ग नरक इसी दुनिया में पा लेगा।

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