Sunday, 14 August 2016

एक ऐसे बालक की कथा जिसकी पितृभक्ति और आत्म ज्ञान की जिज्ञासा के आगे मृत्यु के देवता यमराज को भी झुकना पड़ा


नचिकेता एक पितृभक्त बालक था। जब उनके पिता वाजश्रवस विश्वजीत यज्ञ के बाद बूढ़ी एवं बीमार गायों को दान कर रहे थे तो यह देखकर नचिकेता को बहुत ग्लानी हुई। अर्थात जो उनके काम की गायें नहीं थी उसे वे दान कर रहे थे। तब नचिकेता ने अपने पिता से पूछा कि आप मुझे दान में किसे देंगे?
तब नचिकेता के पिता क्रोध से भरकर बोले कि मैं तुम्हें यमराज को दान में दूंगा। नचिकेता आज्ञाकारी बालक था। उसने निश्चय किया कि मुझे यमराज के पास जाकर अपने पिता के वचन को सत्य करना है। अगर मैं ऐसा नहीं करूँगा तो भविष्य में मेरे पिता जी का सम्मान नहीं होगा।
चूंकि ये शब्द यज्ञ के समय कहे गए थे, अतः नचिकेता को यमराज के पास जाना ही पड़ा। यमराज अपने महल से बाहर थे, इस कारण नचिकेता ने तीन दिन एवं तीन रातों तक यमराज के महल के बाहर प्रतीक्षा की।
तीन दिन बाद जब यमराज आए तो उन्होंने इस धीरज भरी प्रतीक्षा से प्रसन्न होकर नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा। नचिकेता ने पहले वरदान में कहा कि जब वह घर वापस पहुंचे तो उसके पिता उसे स्वीकार करें एवं उसके पिता का क्रोध शांत हो। दूसरे वरदान में नचिकेता ने जानना चाहा कि क्या देवी-देवता स्वर्ग में अजर एवं अमर रहते हैं और निर्भय होकर विचरण करते हैं! तब यमराज ने नचिकेता को अग्नि ज्ञान दिया, जिसे नचिकेताग्नि भी कहते हैं।
तीसरे वरदान में नचिकेता ने पूछा कि हे यमराज, सुना है कि आत्मा अजर-अमर है। मृत्यु एवं जीवन का चक्र चलता रहता है। लेकिन आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। नचिकेता ने पूछा कि इस मृत्यु एवं जन्म का रहस्य क्या है?
नचिकेता की दृढ़ता और लगन को देखकर यमराज को झुकना पड़ा।
उन्होंने नचिकेता को बताया की मृत्यु क्या है ? उसका असली रूप क्या है ? यह विषय कठिन है इसलिए यहाँ पर समझाया नहीं जा सकता है किन्तु कहा जा सकता है कि जिसने पाप नहीं किया, दूसरो को पीड़ा नहीं पहुँचाई, जो सच्चाई के राह पर चला उसे मृत्यु की पीड़ा नही होती। कोई कष्ट नहीं होता है।
इस प्रकार नचिकेता ने छोटी उम्र में ही अपनी पितृभक्ति, दृढ़ता और सच्चाई के बल पर ऐसे ज्ञान को प्राप्त कर लिया जो आज तक बड़े - बड़े पंडित, ज्ञानी और विद्वान् भी न जान सके।

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