Friday, 5 August 2016

द्रौपदी- स्वयंवर की कथा


राजा द्रुपद के मन में यह लालसा थी कि मेरी पुत्री का विवाह किसी-न- किसी प्रकार अर्जुन के साथ हो जाये। परन्तु उन्होनें यह विचार किसी से प्रकट नहीं किया। अर्जुन को पहचानने के लिये उन्होनें एक धनुष बनवाया, जो किसी दूसरे से झुक न सके। इसके अतिरिक्त्त आकाश में ऐसा कृत्रिम यन्त्र टँगवा दिया, जो चक्कर काटता रहता था। उसीके ऊपर वेधने का लक्ष्य रखवा कर यह घोषणा करा दी कि जो वीर इस धनुष पर डोरी चढ़ाकर इन घूमने वाले यन्त्र के छिद्र के भीतर से लक्ष्य वेध करेगा , वही मेरी पुत्री द्रौपदी को प्राप्त कर सकेगा। सब ओर चहार दीवार थी, उसके भीतर रंगमण्डप के चारो तरफ ऊँचे और श्वेत रंग के गगन चुम्बी महल बने हुए थे। विचित्र चँदोवे से उस सभाभवन को सब ओर से सजाया गया था। फर्श तथा दीवारों पर मणि और रत्न जड़े थे। सुखपूर्वक चढ़ने हेतु सीढ़ियाँ लगी थीं। बड़े-बड़े आसन तथा बिछावन आदि बिछाये गये थे। बहु मूल्य अगरु-धूप की सुगन्ध चारों ओर फैल रही थी।
उत्सव के सोलहवें दिन ऋषि-मुनि, देश-देश के राजा, राजकुमार, ब्राह्मण तथा प्रजा जनों से सभा मण्डप खचाखचा भर गया। कौरवों के षड़यन्त्र के कारण पाण्डव भी ब्राह्मण वेष में ब्राह्मण मण्डली में जा बैठे। द्रुपदकुमारी कृष्णा अपनी कुछ प्रमुख सखियों सहित सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से सज –धजकर हाथ में सोने की वरमाला लिये मन्द गति से रंगमण्डप में आकर खड़ी हो गयी। इसी बीच द्रौपदी का भाई धृष्टघुम्न अपनी बहन के पास खड़े होकर मधुर एवं प्रिय वाणी से यह कहकर- जो इस धनुष बाण से लक्ष्य का भेदन करेगा उसे द्रौपदी वरमाला पहनायेगी-जाकर अपने स्थान पर बैठ गया।
सभामण्डप में बैठे वीरों में उत्साह बढ़ गया। हर कोई अपने को बलवान, रुपवान तथा लक्ष्यवेध करने में समर्थ समझने लगा। किंतु आश्चर्य और भय का वातावरण तब उपस्थित हो गया जब बहुत से लोग धनुष उठाने के प्रयास में ही गिर गये , कुछ से धनुष उठा तो, पर ड़ोरी खींचते समय ही गिरकर घायल हो गये- इस तरह वीर नतमस्तक होकर बैठते गये। सबको निराश और उदास देखकर कर्ण ने आकर धनुष पर डोरी चढ़ाकर ज्योंही लक्ष्य वेध करना चाहा , त्योंही द्रौपदी जोर से बोल उठी –मैं सुत पुत्र को नहीं वरुँगी। कर्ण ने यह सुनकर ईर्ष्या भरी हँसी के साथ सूर्य को देखकर धनुष नीचे रख दिया। इस प्रकार बड़े-बड़े प्रभावशाली वीर लक्ष्यवेद न कर सके, सारा समाज सहम गया। उसी समय ब्राह्मणों के समाज में अर्जुन खड़े हो गये। अब तो सभी आश्चर्य तथा विस्मय से अर्जुन को देखने लगे। कोई सोचने लगा कि जिस धनुष को बड़े-बड़े राजा न उठा सके, भला उसे यह ब्राह्मण कैसे उठायेगा ? कहीं यह ब्राह्मणों की हँसी तो नहीं करायेगा ?कहीं इसके कारण राजा लोग ब्राह्मणों से द्वेष न करने लगें।
जिस समय ब्राह्मणों मे नाना प्रकार की बाते हो रही थी, उसी समय अर्जुन धनुष के पास पहुँच गये। अभी लोगो की आँखे अर्जुन पर पूरी तरह जम भी नहीं पायी थी कि उन्होनें बड़ी आसानी से धनुष पर डोरी चढ़ा दी तथा बाण से लक्ष्य को वेधकर जमीन पर गिरा दिया। लक्ष्य वेध होते ही सभामण्डप में महान आनन्द –कोलाहल छा गया। अर्जुन के सिर पर दिव्य पुष्पों की वर्षा होने लगी, ब्राह्मण (हर्ष में भरकर) अपने दुपट्टे हिलाने लगे। द्रौपदी ने प्रसन्नता पूर्वक अर्जुन के गले में वर माला डाल दी। ब्राह्मणों ने अर्जुन का स्वागत किया और द्रौपदी के साथ रंगभूमि से बाहर प्रस्थान किया।

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