सावन का महीना चल रहा है, भक्त इस पूरे महीने में भगवान शिव की पूरे मन से पूजा करते हैं ताकि वह उन्हें खुश कर सके। माना जाता है की भगवान शिव इस महीने में अपने भक्तो की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं क्योंकि भगवान शिव अद्भुत व अविनाशी हैं। भगवान शिव को भस्मधारी भी कहा जाता है। शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंग हैं उनमें से एक उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर है। यह एक मात्र शिव लिंग है जहां शिवजी की भस्म आरती होती है। भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्माओं से जोड़ते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के बाद बची हुई राख( भस्म) में जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ऐसे में ना दुख, ना सुख, ना बुराई और ना ही कोई अच्छाई बचती है।
इसलिए वह भस्म पवित्र मानी जाती है। भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि, 'एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख (भस्म) में बदल जाएगी है। इसका यही अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन हो जाएगी।'
शिवपुराण में वर्णित है कि भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकडिय़ों को एक साथ जलाया जाता है। इस दौरान उचित मंत्रोच्चार किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छान लिया जाता है। इस प्रकार तैयार की गई भस्म शिवजी को अर्पित की जाती है।
शिवजी को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाना चाहिए। जिस प्रकार भस्म यानी राख से कई प्रकार की वस्तुएं शुद्ध और साफ की जाती हैं।
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