Friday 1 April 2016

ललिता जी का प्राकट्य –


एक बार राधा जी प्रसन्न हुई तो सोचने लगी कि मेरे जैसी कोई सखी तो मे उसके साथ खेलती तो इतना सोचते ही उनके तो उनके अंग से एक सखी प्रकट किया जो ललिता जी बन गई वो उनकी अंतरंगा सखी है । राधा कृष्ण का जो विस्तार है उसमे ये सखिया दो रूपां से आती है । पहली होती है — खंडिता दशा.
जब राधा माधव निकुंज में जो लीला करते है । तो ये राधा जी का पक्ष लेती है । और जो दूसरी प्रकार की है वो भगवान कृष्ण का पक्ष लेती है । राधा जी की आलोचना करती है । पर ये सब लीला है । उनकी दृष्टिी में राधा कृष्ण एक है । उनके मन में जलन नहीं होती, क्योंकि राधा जी ही सब की आराध्या है । वो कृष्ण का संग कभी नहीं चाहती है । उन्हें राधा कृष्ण को संग देख कर ही सुख मिलता है । ऐसी त्यागमयी गोपियाँ है । ऐसे ही हर गोपी का वर्णन आता है ।
तो ललिता जी सबसे प्रधान सखी है । जो कि सर्वश्रेष्ठ है । राधा जी से २७ (सत्ताइस) दिन बडी है । इनकी आयु “चौदह वर्ष आठ माह” है । और राधा जी से बडी है । इनका एक नाम “अनुराधा” है. हर सखी का अलग परिधान है । ये कोई सामान्य नहीं है । संत गोपी भाव को पाने के लिए तपस्या करते है.
ललिता जी की आज्ञा बिना रास में प्रवेश नहीं
जब रास लीला शुरू हुई तो करोंडों सखियाँ थी, ये पूर्व जन्म के संत, वेदों की ऋचाए थी, जिन्हेांनें भगवान से उनका साथ विहार मागा था तो जब रास शुरू होता है । उसमें हर एक का प्रवेष नहीं था पुरूषों का प्रवेश नहीं था, ललिता जी द्वार पर खडी थी,ललिता जी की आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता था. जब भगवान शिव आए तो ललिता जी ने मना कर दिया.
तो भगवान शिव ने कहा – कि कृष्ण हमारे आराध्य है ।
तो ललिता जी ने कहा – कि यहा ब्रज में कृष्ण के अलावा और कोई प्रवेश नहीं पा सकता.
तो शिव जी ने कहा – मै क्या करू ?
तो ललिता जी ने उन्हें गोपी का श्रृगांर करवाया, चोली पहनाया कानों में कर्ण फूल, और घूघट डाला. कानों में युगल मंत्र दिया. तब प्रवेश हुआ.
तो कहने का अभिप्राय ललिता जी शिव जी की गुरू हो गई, क्योकि युगल मंत्र का उपदेश दिया. तो सखी कोई साधारण नहीं है । बड़े-बड़े ऋषि, मुनि जिनकी आराधना करते है ।ऐसी वे दिव्य और अलौकिक गोपियाँ है. तो गोप भाव अति उच्च है.
ललिता जी की अंग – क्राति “गौरोचन” के समान है,
वर्ण – लालिमा युक्त “पीले रंग” का वर्ण है.
वस्त्र – ललिता जी “मोर पंख वाले” क्रांति वस्त्रों केा धारण करती है ।
उनके माता-पिता का नाम – पिता विशोक, और माता शारदा है ।
और भैरव नाम के गोप के साथ उनका विवाह हुआ.
निकुंज में इनकी सेवा –
“कपूर मिश्रत तममूल फल” राधा माधव को देती है ।ये नित्यप्रति की सेवा है. और हर गोपी अपनी सेवा बडी तन्मयता से करती है । गोपी जीवन का उद्देश्य ही एक है । राधा माधव की सुख सामग्राी को जुटाना
राधा जी की जन्म स्थली है । रावल गाँव और ललिता जी “यावट” गाँव की है । और कलियुग में ललिता जी का अवतार स्वामी हरिदास जी को माना जाता है । वो ही ललिता जी का अवतार है तो आज से पाच सौ साल पूर्व वृदांवन के पास के गाँव में हरिदास जी का जन्म हुआ. तो उन्होंने अपनी संगीत साधना भगवान के विग्रह को प्रकट किया.
प्रसंग – बचपन का एक प्रसंग है । कि एक बार वो अपने पिता के साथ मंदिर में दर्शन करने गए और उनके पिता ने जल चढाने को कहा. तो वो भगवान शिव को जल चढाने लगे तो भगवान शिव उनके पिता से बोले – कि ये आप क्या कर रहे हो ?
ये तो मेरे गुरू और भला कोई गुरू से सेवा लेता है । रास लीला में इन्होंनें मुझे मंत्र दिया था तो ये कोई सामान्य सखी नहीं है ।
ललिता जी को शिव जी अपना गुरू मानते है । तो स्वामी हरिदास जी को ललिता जी कर अवतार माना जाता है ।
यहाँ तक की मीरा बाई को भी किसी सखी का अवतार माना गया है । ललिता जी का जन्म यावट गाँव मे हुआ उनका निवास स्थान “ऊचा गाँव” है, इनके प्रयत्नों से ही राधा माधव का मिलन हुआ. जब उन्हें पता चलता है भगवान गोवर्धन पर आते है । तो वो राधा जी को वृदांवन से मिलाने के लिए वहाँ लेकर आती है । हर प्रयास करती है । ऐसी दिव्य और अलौकिक महिमा है.
ललिता जी राधा रानी की सहचरी के अतिरिक्त इनका खंडिका नायिका के रूप में भी चित्रंण होता मतलब सेविका के रूप मे राधा माधव के साथ आती है । और कभी-कभी नायिका बनकर कृष्ण जी के साथ विहार करती है । ललिता जी एक सफल दुति के अनुरूप, मान रूप, तीक्ष बुद्वि वाली, वाकचातुर्य, आत्मीयता, नायक को रिझाने वाली व्यक्तित्व सौन्दर्य वाली है । बिलकुल राधा रानी के जैसी ही है.
संत जन इनके ध्यान की विधि बताई है यदि हमें राधा माधव तक पहुचना है तो हमें इनकी आराधना करनी चाहिये, क्योंकि इनकी कृपा के बिना राधा माधव तक हम नहीं पहुँच सकते है.संत जिन इनका ही ध्यान करते है.
गोपियां का इनके बिना राधा माधव से नहीं मिल सकती है.
ललिता जी की ध्यान विधि
जिनकी अंग कांति गौरोचन कांति को भी पराभूत करती है, सुन्दर बेलयुक्ता है, मोरपंख वस्त्र धारण करती है, उज्जवल आभूषण पहनती है, और जो राधा माधव की ताममूल फल से सेवा करती है,जो राधा जी की प्रिय सखी है. ऐसी ललिता जी का मै ध्यान करता हूँ”.
इनका मंत्र है –
“श्री लाम ललिताय स्वाहा”
ये इनका “बीज मंत्र” है.
संत जन इसी मंत्र का निरंतर जप करते है.
ये राधा जी कायव्यूहरूपा है.
इन ललिता जी की भी आठ प्रधान सखी कही गई है – रत्नप्रभा, रतिकला,
सुभद्रा, चंद्र्रेखिका, भद्र्रेखिका, सुमुखी, घनिष्ठा, कल्हासी, कलाप्नी.
ये तो एक सखी है राधा रानी जी की इसी तरह और भी प्रधान सखिया है. …!!!
!!!! जय जय श्री राधे !!

No comments:

Post a Comment