Friday, 1 April 2016

राधा जी की तीसरी सखी है – “चित्रा जी”



राधा जी की तीसरी सखी है वो “चित्रा जी” है. इनके रहने का स्थान राधा जी के पूर्व में “पदमकुंज” नाम का कुंड है वे इसी में रहती है. और उनकी सेवा राधा माधव के प्रति “लौवंग माला” बनाकर सेवा करती है. इनकी अंग क्रांति केसर के वर्ण की है. और “वस्त्र काच वर्ण” के है.
इनकी भी आयु चौदह वर्ष है. इनके माता-पिता “चतुर और “चर्चिका” इनके पति “पीठरक” है. और ये गौरलीला में चित्रा सखी “गोविंदानंद” के रूप में विख्यात हुई.
चित्रा जी को जो मंत्र है .- “श्री चित्राय स्वाहा”
प्रसंग १ – इनके जीवन का प्रसंग है कि ये कैसे राधा जी की अष्ट सखियों में शामिल हुई है. चित्रा जी को बचपन से ही मोहनी विद्या आती थी. साथ ही बहुत अच्छी चित्रकारी करती थी किसी को एक बार देख लिया तो उसका वैसा ही चित्र बना देंती थी.
एक बार की बात है कृष्ण के मित्र श्रीदामा जी ने कहा – कि मित्र! मुझे आपका चित्र चाहिए तो कृष्ण जी ने कहा – कि मै तुम्हें कल लाकर दे दूगाँ.
वे घर जाकर मैया से बोले – कि मेरा चित्र बनवा दो, मुझे मित्र को देना है.
तो मैया ने कहा कि ठीक है बनवा दूगी. और काम में लग गई. तो वो समझ गए कि यहा बात नहीं बनेगी, तो नंद बाबा सें जाकर बोले – कि बाबा ! मेरा चित्र बनवाओ तो नंद बाबा ने अपने मित्र से कहा कि जाओ कोई चित्र बनाने वाले को ढूढ कर लाओ.
तो वो गया चित्रा जी की तो सब में ख्याति थी तो वो उनके पास पहॅच गए, और बोले – कि मुझे नंद बाबा ने भेजा है. उनके लाला का चित्र बनवाना है. आप बना देगी ?
वे बोली – मै किसी के घर नहीं जाती.
तो उनके मित्र बोले- कि मै आपको धन दिलवा दूगाँ.
तो वो बोली – कि यहीं लाला को लेके आओ, तो वो बोले – कि वो यहाँ नहीं आ सकते. फिर ठाकुर जी की प्रेरणा से वो चलने को तैयार हो गई. फिर जब वो नंदबाबा के घर पहुची और जब कृष्ण जी को देखा तो देखती ही रह गई. बाल रूप को देखती ही रह गई. उनको योग ध्यान में नहीं रहा उनको देखकर तृप्ति नहीं होती. वो मोहित हो गई. उनको रूप ही ऐसा है. उनके नयनों से अगर नयना मिल गए तो फिर वो बाँके बिहारी का हो गया. वहीं बात
“मोर का मुकट मेरे चितचोर का मुकुट, दो नयना कटीले है. सरकार के, दो नयना नहीं है. वो कटारें है जो साधक एक बार देख ले, उस पर कटार चला देते है. “कमर लजाए तेरी सूरत को देखकर, भूली घटाए तेरे कजरे की रेख पर, देखकर काली सावन भी फीका है. ये मुखडा निहार के, दो चाँद गए हार के. नयन सरकार के कटीले है, कटार से” चाँद भी लजा जाए.
“मोहन नयना आपके नौका के आकार, जो जन इन में बस गए, हो गए भव से पार”
जैसे बिहारी जी चंचल है. ऐसे ही उनके नयन है. ऐसा ही चित्रा जी के साथ हुआ और बोली कि हम कल बना देगे और घर आ गई तो जब चित्रा जी कहती है नारद जी से कि मेरा योग जा रहा है और मै बालकृष्ण की चित्र नहीं बना पा रही हूँ.
तो नारद जी ने कहा – कि आपको श्री राधा जी की आराधना करनी पडेगी. क्योंकि उनकी कृपा के बिना कोई भी बाँके बिहारी जी तक नहीं पहुँच सकता है . पहले उनकी आराधना करो और वो प्रसन्न हो जाएगीं तब तुम चित्र बनाने की अधिकारी बन जाउगी. और वो आराधना करने लगी तो वो प्रसन्न हुई तब वो चित्र बना सकीं. और राधा जी ने उन्हें अष्ट सखियों में शामिल कर लिया तो राधा माधव से मिलता है, तो गोपीयों की आराधना करनी होगी.
संत जन ने इनकी ध्यान की विधि बताई “केसर युक्त काँच के वस्त्र धारण करने सुदंर मुस्कान युक्त मुख वाली और श्री कृष्ण जी की लौवाग और माला प्रदान करके सेवा करने वाली चित्रा जी का हम ध्यान करते है.”
इनकी भी आठ सखियाँ है – रसालिका, दूसरी तिलकनी, शौरसेनी, सुगंधिका, वामिनी, बामनयना, नागरी नागवल्लिका ये यूथ में प्रधान है .

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