Friday, 5 August 2016

प्राचीन जहाज

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प्राचीन समय से ही भारत मैं जहाज बनाये जाते थे. इसका प्रमाण एक युक्तिकल्पतरु नामक हस्तलेख द्वारा प्राप्त हुआ है.यह हस्तलेख महाराजा भोज ने लिखा था.महाराजा भोज मध्य भारत के मालवा प्रदेश मैं ११वीं शताब्दी मैं राज करते थे.युक्तिकल्पतरु लेख अभी कलकता के संस्कृत पुस्तकालय मैं है.युक्तिकल्पतरु लेख मैं प्राचीन भारत में जहाज निर्माण की कला का समावेश है.
यह लेख मैं वृक्ष-आयुर्वेद ("वनस्पति विज्ञान") के अनुसार लकड़ी के चार अलग अलग प्रकार का वर्णन है.प्रथम प्रकार का लकड़ा हल्का और नरम जो दुसरे किसी भी प्रकार के लकड़े से जुड़ सकता है, दूसरा प्रकार का लकड़ा हल्का और ठोस जो दुसरे किसी भी प्रकार के लकड़े से जुड़ नहीं सकता.तीसरे प्रकार का लकड़ा नरम और भारी और चौथे प्रकार का लकड़ा ठोस और भारी बताया गया है.
महाराजा भोज के अनुसार जहाज दुसरे प्रकार के लकड़े से बनता है.इस प्रकार के जहाजों को सुरक्षित रूप से महासागरों को पार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.जहाज के निचले हिस्से मैं लकड़े को जोड़ ने के लिए कभी लोहे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि उसकी वजह से जहाज चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित होता है और जहाज डूबने की स्थिति निर्माण होने का खतरा बढ सकता है.
महाराजा भोज ने जहाज को सामान्य (नदी मैं रहेने वाले) और विशेष(सागर मैं रहेने वाले) इस प्रकार विभाजित किया है.सामान्य प्रकार के जहाज मैं दीर्घिका, तारनी, लोटा, गतवारा, गामिनी, तारी, जंगला, प्लाविनी, धर्निनी, बिजिनी का समावेश होता है.और विशेष जहाज मैं ऊर्ध्व, अनुर्ध्व, घर्भिनी, मंथरा का समावेश होता है.

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