Tuesday, 26 July 2016

जीव-जंतु भी दया और ममता के पात्र होते हैं।


अल्बर्ट श्वाइट्जर मानव मात्र को ही नहीं, बल्कि सभी जीवों को समान रुप से प्रेम करने के हिमायती थे। एक बार वे अपने एक मित्र के साथ कहीं जा रहे थे।घर से रेलवे स्टेशन जाने के लिए उन्होंने सवारी खोजी,किंतु रात का समय होने कारण उन्हें कोई साधन नही मिला। अतः दोनों ने पैदल ही स्टेशन जाने का निश्चय किया। सामान अधिक होने की वजह से एक लाठी पर उसे लटका लिया और दोनों मित्र लाठी के एक-एक सिरे को अपने कंधे पर रख चलने लगे। चूंकि रेलगाड़ी आने में कम समय रह गया था, इसलिए दोनों ही मित्र तेजी से चल रहे थे। आगे अल्बर्ट के मित्रऔर पीछे वे स्वयं। जब स्टेशन थोड़ी देर रह गया, तो उन लोगों ने चलने की गति और तीव्र की। अचानक मित्र को बड़े जोर का धक्का लगा और पूरा सामान, जो लाठी के बीच में रखा था,खिसकर उनके सिर पर आ गया । वे गिरते-गिरते बचे। उन्होनें घबराकर अल्बर्ट से पूछा- क्यों भाई, क्या बात है? अल्बर्ट बोले- मुझे क्षमा करे, लेकिन यह देखिए मार्ग में एक कीड़ा पड़ा है। किसी के पैर के नीचे दबकर मर सकता है। इसी को बचाने के लिए मैं एक ओर हुआ, तो संतुलन बिगड़ गया और सारा बोझ आप पर आ गया। आप तनिक रुक जाएं तो मैं इस कीड़े को उठाकर एक ओर रख देता हूं।
ऐसा कह कर उन्होंने एक लकड़ी लेकर कीड़े को उस पर चढ़ाया और अत्यंत ममत्व भाव से उठा कर ऐसे स्थान पर रख दिया, जहां किसी का पैर उस पर न पड़ सकता था। उनकी जाव दया देख कर उनके मित्र उनके प्रति श्रद्धावनत हो गए।श्वाइट्जर का यह जीवन प्रसंग उन मूक और निरीह जीव-जंतुओं के प्रति दया व प्रेम को प्रोतसाहित करता है, जो इंसान से भी बढ़कर हमारी ममता के पात्र होने चाहिए क्योंकि वे अपनी आवश्यकताओं,विवशताओं और कष्टों को अभिव्यक्त नही कर सकते।
‪#‎शिक्षा‬- जीव-जंतुओं के प्रति स्नेह भाव रखकर हम एक ऐसीकृति का आदर करते हैं जो उसी परमपिता परमेश्वर ने बनाई है, जिसने हमें हनाया है 

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