Tuesday, 26 July 2016

सरस्वती

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सरस्वती तु ‘धी’ देवी च प्रजापतिः ।।
‘ऐं’ बीजं कश्यपश्चषिर्यर्न्त्रं चाऽपि सरस्वती॥
कथितान्यस्य भूती तु हषार् च प्रभवा पुनः ।।
कलात्मता स उल्लासो द्वयं प्रतिफलं मतम्॥
अर्थात् — ‘धी’ अक्षर की देवी — ‘सरस्वती’, देवता- ‘प्रजापति’, बीज — ‘ऐं’, ऋषि- ‘कश्यप’, यन्त्र — ‘सरस्वती यंत्रम्’, विभूति- ‘हर्षा एवं प्रभवा’, तथा प्रतिफल- ‘उल्लास एवं कलात्मकता’ हैं ।।
ज्ञान चेतना के दो पक्ष हैं ।। एक प्रज्ञा और दूसरा बुद्धि ।। प्रज्ञा आत्मिक समाधान एवं उत्कर्ष का पथ प्रशस्त करती है ।। बुद्धि को लोक व्यवहार एवं निर्वाह की गुत्थियाँ सुलझाने एवं उपलब्धियाँ पाने के लिए प्रयोग किया जाता है ।।
बुद्धि का स्वरूप मस्तिष्क है और प्रज्ञा का अन्तःकरण है ।। प्रज्ञा की अधिष्ठात्री गायत्री है और बुद्धि की संचारिणी सरस्वती ।। आवश्यकतानुसार दोनों में से जिसका आश्रय लिया जाता है, उसी का प्रतिफल प्राप्त होता है ।।
सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है ।। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है ।। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है ।।
लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है ।। शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है ।। पशु को मनुष्य बनाने का — अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है ।। मनन से मनुष्य बनता है ।। मनन बुद्धि का विषय है ।।
भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि- वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है ।। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर- वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है ।। शिक्षा की गरिमा- बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन- जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परम्परा है ।। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए ।।
कहते हैं कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान् बने थे ।। इसका सामान्य तात्पर्य तो इतना ही है कि ये लोग अधिक मनोयोग एवं उत्साह के साथ अध्ययन में रुचिपूर्वक संलग्न हो गए और अनुत्साह की मनःस्थिति में प्रसुप्त पड़े रहने वाली मस्तिष्कीय क्षमता को सुविकसित कर सकने में सफल हुए होंगे ।।
इसका एक रहस्य यह भी हो सकता है कि कारणवश दुर्बलता की स्थिति में रह रहे बुद्धि- संस्थान को सजग- सक्षम बनाने के लिए वे उपाय- उपचार किए गए जिन्हें ‘सरस्वती आराधना’ कहा जाता है ।। उपासना की प्रक्रिया भाव- विज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग है ।।
श्रद्धा और तन्मयता के समन्वय से की जाने वाली साधना- प्रक्रिया एक विशिष्ट शक्ति है ।। मनःशास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम, अध्ययन, कला, अभ्यास की तरह साधना भी एक समर्थ प्रक्रिया है, जो चेतना क्षेत्र की अनेकानेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूर्णतया समर्थ है ।।
सरस्वती उपासना के संबंध में भी यही बात है ।। उसे शास्त्रीय विधि से किया जाय तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना में बौद्धिक क्षमता विकसित करने में कम नहीं, अधिक ही सफल होती है ।।
मंदबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्ध होता है ।। बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है ।।
मस्तिष्क- तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द , तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश- सरस्वती साधना का लाभ मिलता है ।। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निर्णय न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीर्घसूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है ।। उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है ।।
शिक्षा के प्रति जन- जन के मन- मन में अधिक उत्साह भरने- लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूर्वक समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है ।। बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और उसके लिए धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाय ।। इस लोकोपयोगी प्रेरणा को गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है और उससे लाभान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया है ।।
सरस्वती के स्वरूप एवं आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस तरह है-
सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं ।। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा- भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है ।। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा- सात्त्विकता का बोध होता है ।। वाहन मयूर- सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है ।।

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