भगवान् को किसी पर्वत या गुफा में छिपे रहकर अपना सन्देश देने की जरूरत नहीं होती है। भगवान् कृष्ण हज़ारों लोगों के सामने गीता का उपदेश दिया था। उन्हें किसी पैगम्बर या messenger की जरूरत नहीं। क्योंकि वो खुद बोल सकते हैं। कृष्ण ने स्वयं ही अर्जुन को गीता सुनाई थी।
भगवान् अपना सन्देश केवल एक बार या फिर टुकड़ों में नहीं भेजते हैं। भगवान् कृष्ण ने वर्तमान पृथ्वी पर 18000 बार आकर यहाँ गीता का उपदेश दिया है। इसके अलावा कृष्ण एक ही लोक(पृथ्वीलोक) पर उपदेश नहीं देते हैं। उन्होंने असंख्य ब्रह्माण्डों की असंख्य पृथ्वीयों पर असंख्य बार गीता कही है। लगभग दो अरब साल पहले उन्होंने हमारे ब्रह्माण्ड के दुसरे गृह पर विवस्वान को गीता का उपदेश दिया था। एक परार्ध पहले उन्होंने सत्यलोक पर ब्रह्मा से गीता कही थी।
भगवान् सबसे शक्तिशाली है। उसे कोई सूली पर नहीं चढ़ा सकता और न उसे कोई पराजित कर सकता है। 5000 साल पहले जब कृष्ण आये थे तब उन्हें कई असुरों के चुनौती दी थी लेकिन उन्होंने सबको पराजित किया था। अब तक के इतिहास में कृष्ण अकेले अविजित विजेता हैं।
कृष्ण बहुत दयालु हैं। आप यकीन न करोगे, पर एक न एक दिन इस संसार के हर प्राणी को मोक्ष प्राप्त होगा। अल्लाह या गॉड की तरह वो अनंत काल के लिए नर्क में नहीं जलाये जायेंगे बल्कि कृष्ण के अनुग्रह से एक न एक दिन मुक्त होंगे। कृष्ण से युद्ध करने वाले असुरों को भी कृष्ण ने मोक्ष दिया था।
कृष्ण अपने भक्तों को किसी से घृणा या द्वेष करने को नहीं कहते हैं। वैष्णव जन प्रेम से भरे होते हैं इसीलिए वैष्णव शाकाहारी होते हैं और हिंसा से दूर रहते हैं।
भगवान् जिद्दी नहीं है। कृष्ण किसी को कुछ करने के लिए विवश नहीं करते।उन्होंने संसार को कर्म के नियमों में बाँधा है। जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है इसमें संदेह नहीं। अगर कोई आज किसी मूक जीव को खाता है तो कल कर्मफल से वो भी मूक जीव बनेगा और उसे भी खाया जायेगा। इस संसार में 84 लाख योनियाँ हैं। सब अपने कर्मों से इन योनियों में भटक रहे हैं।
भगवान् कोई असुर नहीं है जो अपना समय काफिरों या पापियों को दोजख या नर्क में जलाने में व्यतीत करे। भगवान् एक दयालु और सौम्य सत्ता है। कृष्ण अपना समय बाँसुरी बजाते हुए और गायों के बीच बिताते हैं।
भगवान् सर्वव्यापक, सर्वसमर्थ और सर्वज्ञ है। परमात्मा रूप से कृष्ण सबके हृदय में हैं। वो एक एक अणु में वर्तमान हैं। इस संसार में जितने भी प्राणी हैं, कृष्ण उन सबका भूत, भविष्य और वर्तमान जानते हैं। कृष्ण सर्वसमर्थ हैं। महाविष्णु रूप से उनके एक एक रोम कूप से असंख्य ब्रह्माण्ड बनते और बिगड़ते हैं। उनके एक रोमकूप में असंख्य ब्रह्माण्ड रमन करते हैं और फिर नष्ट हो जाते हैं, पर वो स्वयं न तो कभी उत्पन्न हुए हैं और न कभी नष्ट होंगे।
भगवान् की साक्षात् विभूतियों का भी अंत नहीं है। गीता में कृष्ण ने अपनी विभूतियों को प्रधानता से कहा था। जल में स्वाद, अग्नि में दृश्य, वायु में स्पर्श, पृथ्वी में गंध और आकाश में ध्वनि कृष्ण की प्रधान विभूतियां हैं।
भगवान् अनादि है, उसका ज्ञान अनादि है और उसका धर्म(सनातन धर्म) भी अनादि है।
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