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रक्षण, गति,कान्ति, प्रीति , तृप्ति , अवगम , प्रवेश , श्रवण , स्वामी , अर्थयाचन , क्रिया, इच्छा , दीप्ति , अवाप्ति , आलिंगन , हिसा , दान , भाग, वृद्धि इन उन्नीस अर्थ वाले " अव " धातु से मन् प्रत्यय करने पर 'ओम्' शब्द सिद्ध होता है।
अव - उपदेशेSजनुनासिक इत्। अव के व के अ की इत् संज्ञा हुई। तस्य लोपः इस सूत्र से व के अ का लोप हो गया। लोप क्या है ?
अदर्शनम् लोपः। अब 'अव् ' शेष रहा।
अव् - भूवादयो धातवः। इस सूत्र से अव् की धातु संज्ञा हुई। धातु संज्ञा होने से धातु का अधिकार चला।
अव् - धातोः। इस धातोः सूत्र के अधिकार क्षेत्र में " उणादयो बहुलम् " सूत्र है।
अतः -
अव् - उणादयो बहुलम्। इसका अर्थ है धातु से उणादि प्रत्यय बहुल करके होते हैं। अतः उणादि कोष के प्रथम पाद के सूत्र संख्या 142 वां "अवतेष्टिलोपश्च " से मन् प्रत्यय और मन् के टि भाग अर्थात अन् का लोप हो जाता है।
अतः -
अव् - धातोः , उणादयो बहुलम्, अवतेष्टिलोपश्च, प्रत्ययः , परश्च।
अव् + मन् , अन् का लोप
अव् + म् - इस स्थिति में " ज्वरत्वरस्रिव्यविमवामुपधायाश्च " इस अष्टाध्यायी के 6/4/20 वां सूत्र से अ और व् को ऊठ् आदेश हो जाता है।
अतः-
ऊठ् ऊठ् + म् - ठ् की इत् संज्ञा " हलन्त्यम् " सूत्र से तथा " तस्य लोपः " इससे ठ् का लोप।
ऊ ऊ + म् दोनों ऊ के स्थान पर " अकः सवर्णे दीर्घः " - 6/ 1/ 97 वां सूत्र से दीर्घ हो गया है।
अब -
ऊ + म् - इस म् के कारण ऊ की " यस्मात् प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेSङ्गम् " 1/4/13 वां सूत्र से अङ्ग संज्ञा।
ऊ + म् - अङ्गस्य - 6/4/1 इस सूत्र के अधिकार में " सार्वधातुकार्धधातुकयोः " 7/3/84 इस सूत्र से ऊ को गुण हो गया।
गुण क्या है ?
अदेङ् गुणः - 1/1/2 इस सूत्र से अ ए और ओ का नाम गुण है। अतः ऊ के स्थान पर " स्थानेन्तरतमः" 1/1/49 इस परिभाषा से ऊ के स्थान पर ओ हो गया।
अब -
ओम् शब्द सिद्ध हो गया।
अब -" ओमभ्यादाने " -8/2/87 इस सूत्र से वैदिक मन्त्रों के आरम्भ में इस सूत्र से ओम् शब्द को प्लुत और उदात्त होता है इसीलिए ओ के आगे त्रिमात्रिक प्लुत का चिन्ह है।
ओ३म् यह शब्द निष्पन्न हो गया।
रक्षण, गति,कान्ति, प्रीति , तृप्ति , अवगम , प्रवेश , श्रवण , स्वामी , अर्थयाचन , क्रिया, इच्छा , दीप्ति , अवाप्ति , आलिंगन , हिसा , दान , भाग, वृद्धि इन उन्नीस अर्थ वाले " अव " धातु से मन् प्रत्यय करने पर 'ओम्' शब्द सिद्ध होता है।
अव - उपदेशेSजनुनासिक इत्। अव के व के अ की इत् संज्ञा हुई। तस्य लोपः इस सूत्र से व के अ का लोप हो गया। लोप क्या है ?
अदर्शनम् लोपः। अब 'अव् ' शेष रहा।
अव् - भूवादयो धातवः। इस सूत्र से अव् की धातु संज्ञा हुई। धातु संज्ञा होने से धातु का अधिकार चला।
अव् - धातोः। इस धातोः सूत्र के अधिकार क्षेत्र में " उणादयो बहुलम् " सूत्र है।
अतः -
अव् - उणादयो बहुलम्। इसका अर्थ है धातु से उणादि प्रत्यय बहुल करके होते हैं। अतः उणादि कोष के प्रथम पाद के सूत्र संख्या 142 वां "अवतेष्टिलोपश्च " से मन् प्रत्यय और मन् के टि भाग अर्थात अन् का लोप हो जाता है।
अतः -
अव् - धातोः , उणादयो बहुलम्, अवतेष्टिलोपश्च, प्रत्ययः , परश्च।
अव् + मन् , अन् का लोप
अव् + म् - इस स्थिति में " ज्वरत्वरस्रिव्यविमवामुपधायाश्च " इस अष्टाध्यायी के 6/4/20 वां सूत्र से अ और व् को ऊठ् आदेश हो जाता है।
अतः-
ऊठ् ऊठ् + म् - ठ् की इत् संज्ञा " हलन्त्यम् " सूत्र से तथा " तस्य लोपः " इससे ठ् का लोप।
ऊ ऊ + म् दोनों ऊ के स्थान पर " अकः सवर्णे दीर्घः " - 6/ 1/ 97 वां सूत्र से दीर्घ हो गया है।
अब -
ऊ + म् - इस म् के कारण ऊ की " यस्मात् प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेSङ्गम् " 1/4/13 वां सूत्र से अङ्ग संज्ञा।
ऊ + म् - अङ्गस्य - 6/4/1 इस सूत्र के अधिकार में " सार्वधातुकार्धधातुकयोः " 7/3/84 इस सूत्र से ऊ को गुण हो गया।
गुण क्या है ?
अदेङ् गुणः - 1/1/2 इस सूत्र से अ ए और ओ का नाम गुण है। अतः ऊ के स्थान पर " स्थानेन्तरतमः" 1/1/49 इस परिभाषा से ऊ के स्थान पर ओ हो गया।
अब -
ओम् शब्द सिद्ध हो गया।
अब -" ओमभ्यादाने " -8/2/87 इस सूत्र से वैदिक मन्त्रों के आरम्भ में इस सूत्र से ओम् शब्द को प्लुत और उदात्त होता है इसीलिए ओ के आगे त्रिमात्रिक प्लुत का चिन्ह है।
ओ३म् यह शब्द निष्पन्न हो गया।
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