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सुश्रुत संहिता में वर्षा जल के दो प्रकार बताये है जिन्हें - गांग और सामुद्र जल से विभाजित किया है | सामुद्र जल को ही आज कल अम्लीय जल वर्षा कहते है ,आचार्य धन्वन्तरी ने गांग जल को ही पीने योग्य बताया है और इसके परिक्षण की विधि भी लिखी है -
"तत्रान्तरिक्ष चतुर्विधम| तद्यथा -धारम ,कार,तौषारं,हैममिति | तेषां धारं प्रधान,लघुत्वात,तत गांग माश्र्वयुजे मासि प्रायशो वर्षति| तयोर्द्व्योरपि परीक्षण कुर्वीत ,शाल्योदनपिण्डमकुथितमविदग्ध रजतभाजनोपहित वर्षति देवे बहिश्कूर्वीत,स यदि मुहूर्ते स्थिति स्वाद्द्श एव भवति तदा गांग पतीत्य व्गन्त्व्य ,वर्णोंन्यत्वे सिक्थप्रक्लेदे च सामुद्रमिति विद्यात तन्नोपादेयम |
सामुद्रमप्याश्र्वयुजे मासि गृहीते गांग भवति | गांग पुन प्रधान तदुपाद -दीताश्र्वयुजे मासि | शुचिशुक्लविततपतैक देश्च्युत अथवा हमर्यतलपरिभ्रष्टम्नर्येर्वा शुचिभिर्भाजनैगृहीत सौवर्ण ,राजते ,मणयेते वा पात्रे निदध्यात |
- सुश्रुतसंहिता (सूत्र स्थान ,अध्याय ४५ श्लोक ६ )
अन्तरिक्ष जल चार प्रकार का होता है -
(१)धार -जो धारा से वर्षा हो कर गिरे वह जल
(२) कारं -ओले गिरे वह जल
(३) तौषारं -औष की बूंद से उत्त्पन जल
(४) हिममिति -पिघले बर्फ का जल ... इन चारो में हल्का होने के कारण मेघ धारा जल प्रधान है | फिर वो दो प्रकार का होता है -
(१) गांग
(२) सामुद्र |
इनमे गांग जल प्राय आश्विन के महीनों में बरसता है | फिर भी इन दोनों की परीक्षा करनी चाहिए | जो न सडा हो ,न ही जिसका वर्ण बदला हुआ हो , ऐसे पकाए हुए शालि चावलों का पिंड बनाकर चांदी के पात्र में रखकर मेघ बरसते समय बाहर रख दे |
एक मुर्हुत (लगभग ४८ मिनट ) बरसते पानी में वैसा ही रहे तो जानना चाहिए कि गांग जल बरस रहा है | और यदि वर्ण बदल जाए या पिण्ड में कौथ पैदा हो जाए तो समझना चाहिए कि सामुद्र जल बरस रहा है |वह ग्रहण करने योग्य नही है | गांग जल को स्वर्ण ,रजत ओर मिट्टी आदि के पात्रो में संग्रह करना चाहिए |
सुश्रुत संहिता में वर्षा जल के दो प्रकार बताये है जिन्हें - गांग और सामुद्र जल से विभाजित किया है | सामुद्र जल को ही आज कल अम्लीय जल वर्षा कहते है ,आचार्य धन्वन्तरी ने गांग जल को ही पीने योग्य बताया है और इसके परिक्षण की विधि भी लिखी है -
"तत्रान्तरिक्ष चतुर्विधम| तद्यथा -धारम ,कार,तौषारं,हैममिति | तेषां धारं प्रधान,लघुत्वात,तत गांग माश्र्वयुजे मासि प्रायशो वर्षति| तयोर्द्व्योरपि परीक्षण कुर्वीत ,शाल्योदनपिण्डमकुथितमविदग्ध रजतभाजनोपहित वर्षति देवे बहिश्कूर्वीत,स यदि मुहूर्ते स्थिति स्वाद्द्श एव भवति तदा गांग पतीत्य व्गन्त्व्य ,वर्णोंन्यत्वे सिक्थप्रक्लेदे च सामुद्रमिति विद्यात तन्नोपादेयम |
सामुद्रमप्याश्र्वयुजे मासि गृहीते गांग भवति | गांग पुन प्रधान तदुपाद -दीताश्र्वयुजे मासि | शुचिशुक्लविततपतैक देश्च्युत अथवा हमर्यतलपरिभ्रष्टम्नर्येर्वा शुचिभिर्भाजनैगृहीत सौवर्ण ,राजते ,मणयेते वा पात्रे निदध्यात |
- सुश्रुतसंहिता (सूत्र स्थान ,अध्याय ४५ श्लोक ६ )
अन्तरिक्ष जल चार प्रकार का होता है -
(१)धार -जो धारा से वर्षा हो कर गिरे वह जल
(२) कारं -ओले गिरे वह जल
(३) तौषारं -औष की बूंद से उत्त्पन जल
(४) हिममिति -पिघले बर्फ का जल ... इन चारो में हल्का होने के कारण मेघ धारा जल प्रधान है | फिर वो दो प्रकार का होता है -
(१) गांग
(२) सामुद्र |
इनमे गांग जल प्राय आश्विन के महीनों में बरसता है | फिर भी इन दोनों की परीक्षा करनी चाहिए | जो न सडा हो ,न ही जिसका वर्ण बदला हुआ हो , ऐसे पकाए हुए शालि चावलों का पिंड बनाकर चांदी के पात्र में रखकर मेघ बरसते समय बाहर रख दे |
एक मुर्हुत (लगभग ४८ मिनट ) बरसते पानी में वैसा ही रहे तो जानना चाहिए कि गांग जल बरस रहा है | और यदि वर्ण बदल जाए या पिण्ड में कौथ पैदा हो जाए तो समझना चाहिए कि सामुद्र जल बरस रहा है |वह ग्रहण करने योग्य नही है | गांग जल को स्वर्ण ,रजत ओर मिट्टी आदि के पात्रो में संग्रह करना चाहिए |
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