Tuesday, 26 July 2016

प्राचीन काल मे आयुर्वेद को जानने वाले Genes व क्रोमोसोम को जानते थे।


चित्र मे भरद्वाज ने प्रश्न किया है कि लँगड़े,अंधे व अन्य विकृति वालों की सन्तान विकृत क्यों नहीं होती।
यहाँ पर महर्षि पुनर्वसु आत्रेय उत्तर देते हैं कि बीजभाग अवयव का जो अंश उतप्त (आंशिक विकृत) होता है वही अंग सन्तान में विकृत होता है।
बीज = स्पर्म, Ovum,
बीजभाग - न्यूक्लियस
बीजभाग अवयव - क्रोमोसोम
जिस अंग का बीज भाग अवयव उतप्त होता है उसी अंग में विकृति उत्पन्न होती है।
यदि गर्भाश्य बनाने वाला बीजभाग अवयव विकृत होता है तो बंध्या सन्तान उत्पन्न होती है (शायद XO या XXX)
यदि बीजभाग अवयव का गर्भाश्य के स्थान पर कोई अन्य भाग विकृत होता है तो पूति प्रजा उत्पन्न होती है। यद्यपि पूति का अर्थ सड़ा हुआ होता है परंतु मेरे अनुमान से यहाँ जेनेटिकल क्रोमोसोम से संबन्धित विकृत सन्तान (जैसे हीमोफीलिया, कलर ब्लाईंडनेस) आदि
आगे की पंक्ति तो और अधिक महत्वपूर्ण है__
बीजभाग अवयव के एक देश (क्रोमोसोम का एक अंश) कारण शरीर का स्त्रीकरण होता है यदि उसमे दोष आ जाता है तब स्त्री आकृति वाली सन्तान उत्पन्न होती है जो केवल कहने मे स्त्री होती है।
ये ऊपर वाला सारा अंश OVUM मे जेनेटिक क्रोमोसोम की विकृति से संबन्धित है।
आगे स्पर्म की विकृति मे भी यही कहा है।
1 बंध्या उत्पति
2 पूति प्रजा उत्पत्ति
ये दोनों स्त्री सन्तान के दोष है।
पुरुष सन्तान के दोष__
3 विकृत केवल पुरुषाकृति होता है (शायद XXY)

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