कीच से जैसे कमल उत्पन्न होता है, वैसे ही असुर- जाति में भी कुछ भत्त उत्पन्न हो जाते हैं। भक्तराज प्रह्लाद का नाम प्रसिद्ध है। गयासुर भी इसी कोटि का भक्त था। बचपन से ही गयका हृदय भगवान विष्णु के प्रेम में ओतप्रोत रहता था। उसके मुख से प्रतिक्षण भगवान के नाम का उच्चारण होता रहता था।
गयासुर बहुत विशाल था। उसने कोलाहल पर्वत पर घोर तप किया। हजारों वर्ष तक उसने सांस रोक ली जिससे सारा संसार क्षुब्ध हो गया। देवताओं ने ब्रह्मा से प्रार्थना की कि ‘आप गया सुर से हमारी रक्षा करें।‘ ब्रह्मा देवताओं के साथ भगवान शंकर के पास पहुँचे। पुनः सभी भगवान शंकर के साथ विष्णु के पास पहुँचे। भगवान विष्णु ने कहा – ‘आप सब देवता गयासुर के पास चलें, मैं भी आ रहा हूँ।‘गयासुर के पास पहुँच कर भगवान विष्णु ने पुछा – ‘तुम किसलिये तप कर रहे हो? हम सभी देवता तुम से संतुष्ट हैं, इसलिये तुम्हारे पास आये हुए हैं। वर माँगो।‘
गयासुर कहा- ‘मेरी इच्छा है कि मैं सभी देव, द्विज, यज्ञ, तीर्थ, ऋषि, मन्त्र और योगियों से बढ़कर पवित्र हो जाऊँ।‘ देवतओं ने प्रसन्नतापूर्वक गयासुर को वरदान दे दिया। फिर वे प्रेम से उसे देखकर और उसका स्पर्श कर अपने-अपने लोकों में चले गये। इस तरह भक्त राज गयने अपने शरीर को पवित्र बनाकर प्रायः सभी पापियों का उद्धार कर दिया। जो उसे देखता और जो उसका स्पर्श करता उसका पाप-ताप नष्ट हो जाता। इस तरह नरक का दरवाजा ही बंद हो गया।
भगवान विष्णु ने अपने भक्त के पवित्र शरीर का उपयोग सदा के लिये करना चाहा। किसी का शरीर तो अमर रह नहीं सकता। गय के उस पवित्र शरीर के पात के बाद प्राणियों को उसके शरीर से वह लाभ नहीं मिलता, अतः भगवान ने ब्रह्मा को भेज कर उसके शरीर को मंगवा लिया। गया सुर अतिथि के रूप में आये हुए ब्रह्मा को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपने जन्म और तपस्या को सफल माना। ब्रह्मा ने कहा- ‘मुझे यज्ञ करना है। इसके लिये मैंने सारे तीर्थों को ढूँढ़ डाला, परंतु मुझे ऐसा कोई तीर्थ नहीं प्राप्त हुआ जो तुम्हारे शरीर से बढ़कर पवित्र हो, अतः यज्ञ के लिये तुम अपना शरीर दे दो।‘ यह सुनकर गया सुर बहुत प्रसन्न हुआ और वह कोलाहल पर्वत पर लेट गया।
ब्रह्मा यज्ञ की सामग्री के साथ वहाँ पधारे। प्रायः सभी देवता और ऋषि भी वहाँ उपस्थित हुए। गयासुर के शरीर पर बुहत बड़ा यज्ञ हुआ। ब्रह्मा ने पूर्णाहुति देकर अवभृथ-स्नान किया। यज्ञ का यूप(स्तम्भ) भी गाड़ा गया।
भक्तराज गयासुर चाहते थे कि उसके शरीर पर सभी देवताओं का वास हो। भगवान विष्णु का निवास गयासुर को अधिक अभीष्ट था, इसलिये उसका शरीर हिलने लगा। जब सभी देवता उसपर बस गये और भगवान विष्णु गदाधर के रुप में वहाँ स्थित हो गये, तब भक्तराज गयासुर ने हिलना बंद कर दिया। तब से गयासुर सबका उद्धार करता आ रहा है। यह एक भक्त का विश्व के कल्याण के लिये अद्भुत अवदान है।
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