जब भगवान श्रीराम अपने धाम को चले उस समय उनके साथ अयोध्या के सभी पशु - पक्षी, पेड़- पोधे मनुष्य भी उनके साथ चल पड़े।
उन मनुष्यो में श्रीसीताजी की निंदा करने वाला धोबी भी साथ में था , भगवान ने उस धोबी का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उनको
अपने साथ लिए चल रहे थे।
अपने साथ लिए चल रहे थे।
जिस - जिस ने भगवान को जाते देखा वे सब भगवान के साथ चल पड़े।
कहते है की वहां के पर्वत भी उनके साथ चल पड़े।
सभी पशु-पक्षी, पेड़-पोधे, पर्वत और मनुष्यों ने जब साकेत धाम में प्रवेश होना चाहा तब साकेत का द्वार खुल गया पर जैसे ही उस निंदनीय धोबी ने प्रवेश करना चाहा तो द्वार बंद हो गया।
साकेत द्वार ने भगवान से कहा महाराज ! आप भले ही इनका हाथ पकड़ले पर ये जगतजननी माता श्रीसीताजी की निंदा कर चूका है इसलिए ये इतना बड़ा पापी है की मेरे द्वार से साकेत में प्रवेश नही कर सकता।
जिस समय भगवान सब को लेकर साकेत जा रहे थे उस समय सभी देवी-देवता आकाश मार्ग से देख रहे थे, की सीता माताजी की निंदा करने वाले पापी धोबी को भगवान कहा भेजते है।
भगवान ने द्वार बन्द होते ही इधर-उधर देखा तो ब्रह्माजी ने सोचा की कही भगवान इस पापि को मेरे ब्रह्मलोक में न भेज दे , वे हाथ हिला-हिला कर कहने लगे , महाराज ! इस पापि के लिए मेरे ब्रह्मलोक में कोई स्थान नही है।
इन्द्र ने सोचा की कही मेरे इन्द्रलोक में न भेज दे , इंद्र भी घबराये, वे भी हाथ हिला-हिला कर कहने लगे , महाराज ! इस पापि को मेरे इन्द्रलोक में भी कोई जगह नही है।
ध्रुवजी ने सोचा की कही इस पापी को मेरे ध्रुवलोक में भेज दिया तो इसका पाप इतना बड़ा है की इसके पापके बोझ से मेरा ध्रुवलोक गिरकर निचे आ जायेगा, ऐसा विचार कर ध्रुवजी भी हाथ हिला-हिला कर कहने लगे महाराज ! आप इस पापि को मेरे पास भी मत भेजिएगा।
जिन-जिन देवताओं का एक अपना अलग से लोक बना हुआ था उन सभी देवताओं ने उस निंदनीय पापी धोबी को अपने लोक मे रखने से मना कर दिया।
भगवान खड़े - खड़े मुस्कुराते हुए सबका चेहरा देख रहे है पर कुछ बोलते नही।
उस देवताओ की भीड़ में यमराज भी खड़े थे , यमराज ने सोचा की ये किसी लोक में जाने का
अधिकारी नही है अब इस पापी को भगवान कहि मेरे यहाँ नही भेज दे और माता की निंदा करने वाले को में अपनी यमपुरी में नहीं रख सकता।
अधिकारी नही है अब इस पापी को भगवान कहि मेरे यहाँ नही भेज दे और माता की निंदा करने वाले को में अपनी यमपुरी में नहीं रख सकता।
यमराज जी घबराकर उतावली वाणी से बोले , महाराज ! महाराज ! ये इतना बड़ा पापी है की इसके लिए मेरी यमपुरी में भी कोई जगह नही है।
उस समय धोबी को घबराहट होने लगी की मेरी दुर्बुद्धी ने इतना निंदनीय कर्म करवा दिया की यमराज भी मुझे नही रख सकते।
भगवान ने धोबी की घबराहट देख कर धोबी की और संकेत से कहा तुम घबराओ मत ! मैं अभी तुम्हारे लिए एक नए साकेत का निर्माण करता हूँ, तब भगवान ने उस धोबी के लिए एक अलग साकेत धाम बनाया।
यहाँ एक चोपाई आती हैः-
सिय निँदक अघ ओघ नसाए,
लोक बिसोक बनाइ बसाए।
लोक बिसोक बनाइ बसाए।
ऐसा अनुभव होता है की आज भी वो धोबी अकेला ही उस साकेत में पड़ा है जहा न कोई देवी-देवता है न भगवान , न वो किसी को देख सकता है और न उसको कोई देख सकते है।
तात्पर्य यह है की भगवान अथवा किसी भी देवी-देवता की निंदा करने वालो के लिए कही कोई स्थान नही है।
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