Wednesday, 22 June 2016

*राम भक्त हनुमान *जय हनुमान*


एक बार माता सीता ने हनुमान जी से प्रसन्न होकर उन्हें हीरों का एक हार दिया, और बाकी सेवकों को भी उन्होंने भेंट स्वरुप मोतियों से जड़े रत्न दिए.. जब हनुमान जी ने हार को अपने हाथ में लिया तब उन्होंने प्रत्येक हीरे को माला से अलग कर दिया और उन्हें चबा-चबाकर जमीन पर फेंकने लगे.. यह देख माता सीता को क्रोध आ गया और वे बोलीं-“ अरे हनुमान! ये आप क्या कर रहे हैं , आपने इतना मूलयवान हार नोंच-खसोटकर नष्ट कर दिया.” यह सुनकर अश्रुपूरित नेत्रों से हनुमान जी बोले- “माते! मैं तो केवल इन रत्नों को खोलकर यह देखना चाहता था कि इनमे मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम और माँ सीता बसते हैं अथवा नहीं! आप दोनों के बिना इन पत्थरों का मेरे लिए क्या मोल ?
बाकी सेवक यह सारी घटना देख रहे थे, वे तुरंत ही हनुमान जी के पास आकर बोले- कि हनुमान यदि इन निर्जीव वस्तु में श्रीराम नहीं हैं तो श्रीराम कहाँ है?
प्रभु श्रीराम तो मेरे ह्रदय में बसते हैं, इतना कहकर उन्होंने अपनी छाती चीर डाली और माता सीता सहित सभी सेवकों को हनुमान जी के ह्रदय में श्रीराम जी के दर्शन हुए।

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