पूर्वकाल में जब सारा जगत एकार्णव के जल में निमग्न हो गया था। समस्त प्राणी नष्ट हो गये थे, उस समय देवाधिदेव सनातन परमात्मा ब्रह्माजी अविनाशी परब्रह्म का जप करने लगे थे। ब्रह्मा का जप करते-करते उनके आगे श्वास निकला। साथ ही भगवान दर्शन के अनुरागवश उनके नेत्रों से जल निकल आया। प्रेम के आसुओं से परिपूर्ण वह जल की बूंद पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसी से आंवले का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ, जिससे बहुत सी शाखाएं और उपशाखाएं निकली थीं। वह फलों के भार से लदा हुआ था। सब वृक्षों में पहले आंवला ही प्रकट हुआ, इसलिए उसे "आदिरोह" कहा गया। ब्रह्माजी ने पहले आंवले को उत्पन्न किया। उसके बाद समस्त प्रजा की सृष्टि की। उसी समय आकाशवाणी हुई- यह आंवले का वृक्ष सभी वृक्षों में श्रेष्ठ है, क्योंकि यह भगवान विष्णु को प्रिय है।
महत्त्व
आंवले का वृक्ष सभी वृक्षों में श्रेष्ठ माना गया है। इसके दर्शन से दुगुना और फल खाने से तिगुना पुण्य होता है। पुराणों में समस्त कामनाओं की सिद्धि के लिए आंवले के वृक्ष का पूजन करना उचित बताया गया है। आंवले की पूजा के साथ दान-पुण्य करने से सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से मनोकामनाएं भी पूरी होती है। मान्यता है कि आंवला के पेड़ में नौ दिनों तक भगवान विष्णु का वास होता है इसलिए भी आंवले के वृक्ष की पूजा होती है।
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