Saturday, 25 June 2016

भागीरथी गंगा


सगर पौत्र अंशुमन के द्वितीय पुत्र दिलीप हुए। दिलीप ने भी गंगावतरण के लिए खूब तप किया। परंतु तपस्या करते-करते वे काल- कवलित हो गए। दिलीप के भगीरथ नाम के पुत्र हुए। जिन्होंने करोड़ों वर्ष तपस्या की और गंगा पृथ्वी पर अवतरित होने को तैयार हो गई। ज्ञान गंगा भी तो कई जन्मों के बाद ही प्राप्त होती है। गंगा ने भगीरथ जी से कहा कि प्रथम तो " मेरे वेग को कौन संभालेगा?" यदि मेरे प्रबल वेग को कोई धारण नहीं करेंगा तो मै पाताल चली जाऊंगी। द्वितीय "संसारी लोग मुझमें स्नान करके अपने पाप तो धो लेगा परंतु मेरे पाप कौन धोएगा?" 
भगीरथ जी ने गंगा से कहा कि ज्ञानी, साधु- महात्माओं के स्नान से आपके सब पाप धुल जाएंगे।
भगीरथ जी ने शिवजी की तपस्या की और गंगा के वेग को सहने के लिए एक पैर पर खड़े होकर सहस्त्र वर्ष तक तपस्या की और गंगा के वेग को शिवजी ने अपनी जटाओं में संभाला।
इसका मतलब है कि  प्रथम गंगा शिवजी की जटाओं में अवतरित हुई थीं। शिवजी ने अपनी जटा को पृथ्वी पर छोड़ दिया जिससे कि गंगा का उद्धरण पृथ्वी पर हो गया। भगीरथ के प्रयत्न से गंगा धरती पर आई। इसीलिये गंगा "भागीरथी" के नाम से जानी गई।
भगीरथ जी इस धारा को कपिल मुनी के आश्रम में ले गए, जहां पर उनके पूर्वजों का उद्धार हुआ। कपिल मुनी का आश्रम गंगासागर संगम पर है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन शिवजी ने गंगा को धारण किया था। इसलिये आज भी यह दिन गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है।

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