Wednesday 6 July 2016

:: श्री सीता राम जी के चरण चिन्ह

::::: :::::::
“ध्वज वजांकुश पादा, धरणीसुत सहमोदा ।
जनक सुता प्रतिपाला, जय जय संसम्ति लीला ।”
– नारायणस्तोत्र, आद्यशंकराचार्य
ध्वजा, वज्र तथा अंकुश के चिन्हों से युक्त चरणों वाले सीताजी के साथ आनंद करने वाले, हे भगवान नारायण आपकी जय हो ।
“अंकुश अंबर कुलिश कमलय यब ध्वजा देनुपद ।
शंख चक्र स्वास्तिक जंबुफल कलखा सुधाहृद ।।
अर्धचन्द्र षट्कोण मीन बिनेदु ऊरधरेषा ।
आष्टकोण रु त्रिकोण इंद्रधनु, पुरुष विशेषा ।।
सीतापति पद नित बसत एतै मंगलदायका ।
चरण-चिन्ह रघुबीर के संतन सदा सहायका ।।”
– श्रीभक्तमाल – 6.
महात्मा श्रीनाभादासजी ने श्रीभक्तमाल – 6 में उपरोक्तानुसार रघुकुलशिरोमणि श्री सीतापति श्रीरामचन्द्र जी के केवल बाईस चरण-चिन्हों का उल्लेख किया है जिनके मन-मंदिर में ये चरण-चिन्ह सदा-सर्वदा मंगलदायक होते हैं ।
“अंकुस-कुलीस-कमल-धुज सुंदर भँवर तरंग-बिलासा ।
मज्जहिं सुर-सज्ज, मुनिजन-मन मुदित मनोहर बासा ।”
– गीतावली – 7/15/3.
तलुओं में जो अंकुश, वज्र, कमल और ध्वजा के चिन्ह हैं, वे ही सुन्दर भँवर और तरंगावली हैं । उनमें देवता और साधुजन स्नान करतेहैं तथा वे मुनियों केसुप्रसन्न चित्तों के मनोहर निवास स्थान हैं ।
“रेख कुलिस ध्वज अंकुस सोहे ।”
– मानस – 1/199/2.
श्रीरामचन्द्रजी के दाहिने चरण के तलवे में ऊर्ध्व रेखा – चरण की वह जो अँगूठे या पार की अँगुली से प्रारंभ होकर एड़ी तक पहुँचती है, जिनके चरण यह रेखा होती है वे अंशावतारी समझे जाते हैं – वज्र, ध्वजा, अंकुश इत्यादि चिन्ह शोभित हैं ।
“ध्वज, वज्र कुलिस अंकुस कंज जुत बन फिरत कंटक किन लहे ।
पद कंज द्वंद मुकुन्द राम रमेस नित्य बजामहे ।”
– मानस – 7/13/4.
ध्वज, वज्र,अंकुश, कमल इत्यादि चिन्हों से युक्त जिन चरणों में वन में फिरते समय काँटे चुभने के चिन्ह भी पड़ गए हैं, उन्हीं दोनों चरण कमलों को हे मुकुन्द ! हे रमापति ! हम नित्य भजते रहते हैं ।
श्रीयामुनाचार्यकृत ‘आलवन्दारस्तोत्र’में शंख, चक्र, कपव्पवृक्ष, धवजा, कमल, अंकुश और वज्र – इन सात चरण-चिन्हों का ही वर्णन मिलता है। महर्षि अगस्त्य विरचित ‘श्रीरघुनाथ चरणचिन्हस्तोत्र’ में अम्बुज, अंकुश, यव, ध्वजा, चक्र ऊर्ध्वरेखा, स्व्स्तिक, अष्टकोण, वज्र, बिनेदु, त्रिकोण, धनुष, अंशुक-वस्तर, मत्स्य, शंख, अर्धचन्द्र, गोपद और घट – इन अठारह चरण चिन्हों का ही वर्णन मिलता है।
इन सबके अतिरिक्त पद्मपुराणादि अन्य अनेक पुराण साहित्य में, महारामायण, लाला भगवानदीनजी प्रणीत ‘रामचरणचिन्ह’ इत्यादि में 4 से 48 तक चरण चिन्हों का वर्णन मिलता है । सभी 48 चरण चिन्हों का ध्यान अत्यन्त कठिन अथवा लगभग असंभव होने के कारण न्यूनाधिक रूप से विशेष महत्वपूर्ण चिन्हों ही वर्णन विभिन्न महर्षियों में किया है ।
वैसे श्रईरामचन्द्रजी के कुल चरणचिन्हों की संख्या 48 बताई गई है । 24 चिन्ह दक्षिण पद में और 24 चिन्ह वाम पद में हैं और जो उनके वामपद में हैं वे माता सीता के दक्षिण पद में हैं . अपनी-अपनी उपासना पद्धति के अनुसार सभी उपासक भगवान के चरण-चिन्हों का ध्यान कर श्रीराम-भक्ति का रसास्वादन करतेहैं ।
इन चिन्हों के ध्यान से मन और हृदय और हृदय पवित्र होतेहैं तथा संसारजनित क्लेश, पीड़ा और भयका नाश होता है। इन चरण चिन्हों के रूप, रंग, कार्य तथा महत्व का विशद् विवेचन निम्नानुसार है –
श्री राम जी के पद चिन्ह::::
श्रीरामजी के वाम और श्रीसीताजी के दक्षिण पद चिन्ह
क्र.
नाम/रूप
रंग
अवतार
महत्ता/सुलभता/प्राप्ति/उपलब्धि
1.
सरयू
श्वेत
विरजा-गंगा
कलिमूल (कलह, क्लेश, लड़ाई-झगड़ा,पाप) का नाश होता है।
2.
गोपद
श्वेत-लाल
कामधेनु
यह पुण्यप्रद है । प्राणी भवसागर से पार हो जाता है ।
3.
भूमि-पृथ्वी
पीला-लाल
कमठ
इसका ध्यान करने से मन में क्षमा भाव बढ़ता है ।
4.
कलश
सुनहरा5
अमृत
इसका ध्यान भक्ति, जीवनमुक्ति तथा अमरता प्रदान करता है ।
5.
पताका/ध्वज
विचित्र
-
मन पवित्र होता है कलि का भय नष्ट होता है ।
6.
जम्बू फल
श्याम
गरुड़
पुरुषार्थ की प्राप्ति और मनोकामना पूर्ण होती है ।
7.
अर्ध चन्द्र
उज्ज्वल
श्रीवामन
मन के दोष नष्ट होते हैं । ताप त्रय का नाश होता है ।
8.
शंख
अरुण-श्वेत
वेद-हंस-शंख
ध्यानी दंभ-कपट के माया-जाल से छूट जाता है । बुद्धि बढ़ती है ।
9.
षट्कोण1
श्वेत-लाल
श्रीकार्तिकेय
इसका ध्यान करने से षड्विकार, षट्सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।
10.
त्रिकोण2
लाल
परशुराम-हयग्रीव
इसके ध्यान से योग की प्राप्ति होती है।
11.
गदा
श्याम
महाकाली-गदा
यह दुष्टों का नाश करके ध्यानी को जय दिलाताहै ।
12.
जीवात्मा
प्रकाशमय
जीव
इसके ध्यान से शुद्धता बढ़ती है ।
13.
बिन्दु
पीला
सूर्य-माया
समस्त पुरुषार्थों की सिद्धि होता है । पाप नष्ट होता है ।
14.
शक्ति
लाल6
मूल प्रकृति-माँ
इससे श्री, शोभा और सम्पत्ति की उपलब्धि होती है ।
15.
सुधाकुण्ड
श्वेत-लाल
-
इसके ध्यान से अमृत-अमरता की प्राप्ति होती है ।
16.
त्रिवली4
त्रिवेणी रंग7
श्री वामन
ध्यानी कर्म, उपासना और ज्ञान से सम्पन्न होता है ।
17.
मीन-ध्वजा
रुपहला8
-
कामदेव की ध्वजा है। वशीकरण है। भगवद्प्रेम की प्राप्ति होती है।
18.
पूर्ण चन्द्र
पूर्ण धवल
चन्द्रमा
यह मोह रूपी तम को हरकर तीनों तापों का नाश करता है ।
19.
वीणा
पीला9
नारद
राग-रागिनी में निपुणाता । भगवद् यशोगान करता है ।
20.
वंशी-वेणु
चित्र-विचित्र
महानाद
मधुर शब्द से मनमोहित । मुनि मन भी बस में नहीं रहता ।
21.
धनुष
हरा-पीला-लाल
पिनाक-शांर्ग
शत्रु का नाश और मृत्यु भय का निवारणहोता है।
22.
तुणीर
चित्र-विचित्र
श्रीपरशुरामजी
भगवद् प्रति संख्य रस वृद्धि । सप्तभूमि ज्ञान बढ़ाता है ।
23.
हंस
श्वेत-गुलाबी
हंसावतार
विवेक-ज्ञान वृद्धि । हंस का ध्यान संतों के लिए सुखद ।
24.
चंद्रिका
सर्वरंगमय
-
इसके ध्यान स कीर्ति मिलती है ।
1. यंत्ररूप 2. यंत्ररूप 3. वशीकरण तिलक रूप 4. वेदरूप 5. श्याम-श्वेत, 6. गुलाबी, पीला, रक्त, श्याम, सितवर्ण 7. हरा-लाल-धवल 8. उज्ज्वल 9. लाल-उज्ज्वल ।
श्री राम जी के दक्षिण और माँ सीता जी के वाम पद चिन्ह::::
क्र.
नाम/रूप
रंग
अवतार
महत्ता/सुलभता/प्राप्ति/उपलब्धि
1.
ऊर्ध्व रेखा
अरुण-गुलाबी
सनक6
इस चिन्ह के ध्यान से महायोग की सिद्धि होती है ।
2.
स्वास्तिक
पीला
श्री नारदजी
यह मंगलकारक /कल्याणप्रद है ।
3.
अष्टकोण
लाल-श्वेत
श्री कपिलदेवजी
यह यंत्र है । इसके ध्यान से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
4.
श्रीलक्ष्मी जी
गेरुआ1
श्री लक्ष्मीजी
इसके ध्यान से ऐश्वर्य और समृद्धि मिलती है ।
5.
हल
श्वेत
श्री बलसामजी
यह विजयप्रद है । इससे विमल विज्ञान की उपलब्धि होती है ।
6.
मूसल
धूम्र
मूसल
इसके ध्यान से शत्रु का नाश होता है ।
7.
सर्प/शेष
श्वेत
शेषनाग
ध्यानी को भगवद् भक्ति और शांति की प्राप्ति होती है ।
8.
शर-बाण
श्वेत-पीत2
बाण
ध्यानी के शत्रु नष्ट होतेहैं ।
9.
अम्बर-वस्त्र
आसमानी3
श्री वराह
भय का नाश, दुख देने वाली जड़तारूपी शीत का हरण करता है।
10.
कमल
लाल-गुलाबी
विष्णु-कमल
ध्यानी का यश बढ़ाता है और मन प्रसन्न रखता है ।
11.
रथ
रंग-बिरंगी
पुष्पक विमान
ध्यानी विशेष पराक्रम से सम्पन्न रहता है ।
12.
ब्रज
विद्युत रंग
इन्द्र का वज्र
यह पाप नाशक तथा बलवर्धक है।
13.
यव
श्वेत
कुबेर
यह मोक्षप्राप्ति, यज्ञ, सिद्धि, विद्या, सुमति, संपत्ति प्रदाता है ।
14.
कल्पवृक्ष
हरा
कल्पवृक्ष
इससे पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं ।
15.
अंकुश
श्याम
अंकुश
मल नाशक, ज्ञान उत्पादक और मनोनिग्रह प्रदायक है ।
16.
ध्वजा
लाल/विचित्र वर्ण
ध्वजा
इससे विजय-कीर्ति की प्राप्ति होती है।
17.
मुकुट
सुनहरा
दिव्य भूषण
इसके ध्यान से परम पद मिलता है ।
18.
चक्र
स्वर्ण रंग
सुदर्शन चक्र
यह शत्रु का नाश करता है ।
19.
सिंहासन
सुनहरा
श्रीराम सिंहासन
यह विजयप्रद है । सम्मान प्रदान करता है ।
20.
यम दण्ड
काँसे का रंग
धर्मध्वज
यह यातना नाशक और निर्भयता प्रदायक है ।
21.
चामर
श्वेत
श्रीहयग्रीव
राज्य-ऐश्वर्यप्रदायक, त्रितापरक्षक, मन में दया भाव उत्पादक है।
22.
छत्र
शुल्क
कल्कि
23.
नर-पुरुष
उज्ज्वल4
दत्तात्रेय
परब्रह्म, बख्ति, शांति और सत्वगुण की प्राप्ति होती है।
24.
जयमाला
रंग-बिरंगी5
जयमाला
भगवद् विग्रह के श्रृंगार तथा उत्सव आदि में प्रीति बढ़ती है ।
1. अरुणोदय काल की लालिमा 2. पीत,अरुण-गुलाबी 3. नीला और बिजली रंग 4. गौर, सित-लोहित 5. बिजली, चित्र-विचित्र 6. सनंदन, सनत्कुमार और सनातन।
अतएव स्पष्ट है कि श्रीसीतारमाजी के चरण-चिन्ह समस्त विभूतियों, ऐश्वर्यों तथा भोग-भुक्ति और मुक्ति की अक्षय निधि हैं । जिन प्राणियों को श्रीसीतारामजी के चरण-चिन्हों का ध्यान और चिन्तन प्रिय है, उनका जीवन सफल और पुण्यमय है।

No comments:

Post a Comment