Sunday, 10 July 2016

पंचभूत स्थल : पांच तत्वों की शुद्धि के लिए पांच मंदिर



पांच भूतों से बने इस शरीर को शुद्ध करने के लिए दक्षिण भारत के योगियों ने पांच मंदिर बनाये थे – एक मंदिर हर तत्व के लिए।  आइये जानते हैं कौन-से मंदिर हैं ये…

हर आध्यात्मिक प्रक्रिया का आधार इस स्थूल शरीर से परे जाना है। स्थूल शरीर से परे जाने का मतलब है जीवन के पांच तत्वों से परे जाना। आप जो भी अनुभव करते हैं, उस पर इन पांच तत्वों की जबर्दस्त पकड़ होती है।

इनके परे जाने के लिए जो मौलिक योग किया जाता है उसे भूत शुद्धि कहा जाता है। भूत शुद्धि के अभ्यास के लिए पांच अलग-अलग लिंगों की रचना की गई। विशालकाय शानदार मंदिरों का निर्माण किया गया, जहां जाकर आप साधना कर सकते हैं।

दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप आध्यात्मिकता के विशिष्ट और शक्तिशाली रूप का गढ़ है। दक्षिण भारत की आकर्षक और शानदार संस्कृति में इसका प्रभाव साफ तौर से देखा जा सकता है। इस क्षेत्र के योगियों और आध्यात्मिक गुरुओं ने ऐसे कई तरीके खोजे हैं जिनके माध्यम से एक आम इंसान अपनी परम प्रकृति को हासिल कर सकता है। शायद इनमें सबसे मशहूर है मंदिरों और पवित्र स्थानों का एक जटिल सा तंत्र।

पंचभूत स्थल दक्षिण भारत में पांच शानदार प्राचीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण मानव चेतना को विकसित करने के एक माध्यम के रूप में किया गया। हर मंदिर का निर्माण पांच तत्वों में से एक तत्व के लिए किया गया।

श्रीकलाहस्ति में मंदिर वायु तत्व के लिए है।

इसी तरह कांचीपुरम में पृथ्वी तत्व के लिए,

तिरुवन्नामलाई में अग्नि तत्व के लिए,

चिदंबरम में आकाश तत्व के लिए और

तिरुवनाईकवल में जल तत्व के लिए मंदिर निर्माण किया गया।

पांचों मंदिरों का निर्माण योगिक विज्ञान के अनुसार किया गया। ये मंदिर एक दूसरे के साथ एक खास किस्म के भौगोलिक संरेखण में हैं, जिससे कि उनके द्वारा पैदा की जाने वाली अपार संभावनाओं का असर पूरे क्षेत्र पर हो सके।

उस स्थान की ऊर्जा और ढांचे की वास्तुशिल्पीय आभा के मामले में हर मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं है। इन मंदिरों का स्तर और मकसद हर इंसान की कल्पना को हैरान करता है। मंदिरों का निर्माण करने में हजारों पुरुषों और महिलाओं ने हिस्सा लिया। ये लोग मजदूर और कामगार नहीं थे। वे भक्त थे।

उनके प्रेम और समर्पण ने पर्वतों को हटाकर सैकड़ों टन के पत्थरों के बड़े-बड़े खंड खड़े कर दिए। यह वह समय था, जब आजकल की तरह निर्माण कार्यों में प्रयोग होने वाली शक्तिशाली मशीनें न थीं।  पत्थरों के गगनचुंबी स्तंभ, हजारों खंभों वाले कक्ष, नाजुक तरीके से नक्काशी की गई दीवारें एक ऐसी संस्कृति की प्रतिभा और दूरदर्शिता को दिखाती हैं, जिसमें इंसान के परम कल्याण को सबसे ऊपर रखा गया।

इनमें शामिल हैं: श्रीकलाहस्ति मंदिर, कांचीपुरम का एकंबरेश्वर मंदिर, तिरुवन्नामलाई स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर, चिदंबरम का तिलई नटराज मंदिर, तिरुवनईकवल का जंबूकेश्वर मंदिर।

श्रीकलाहस्ति मंदिर:

इस मंदिर के देवता कलाहस्तिश्वर की प्राण प्रतिष्ठा वायु तत्व के लिए की गई थी। श्रीकलाहस्ति का निर्माण स्वर्णमुखी नदी के किनारे एक पहाड़ी के सिरे को काटकर किया गया है। मंदिर का संबंध कई शैव संतों से रहा है। इनमें एक महान भक्त कनप्पा नयनार भी हुए थे, जिन्होंने लिंग की आंख की जगह लगाने के लिए अपनी खुद की आंख निकाल ली थी। श्रीकलाहस्ति में श्री का मतलब है मकड़ी, कला का अर्थ है सांप और हस्ति यानी हाथी। कहा जाता है कि इन तीन जानवरों ने यहां पूजा अर्चना की थी और बाद में उन्हें मुक्ति मिल गई।

एकाम्बरेश्वर मंदिर:

कांचीपुरम के एकाम्बरेश्वर मंदिर का निर्माण पृथ्वी तत्व के लिए किया गया। एकंबरेश्वर मंदिर वह स्थान माना जाता है, जहां पार्वती ने रेत से बने लिंग के रूप में शिव की आराधना की थी। एकंबरेश्वर का मतलब है आम के पेड़ के देवता। यहां लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थापित है। कहा जाता है कि यह आम का पेड़ 3500 साल पुराना है। यह वृक्ष चार वेदों का प्रतीक है और माना जाता है कि यह चार अलग-अलग स्वाद वाले आम देता है।

हजारों साल पहले समंदर के किनारे चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिरों के लिए मशहूर महाबलीपुरम में भी कुछ समय व्यतीत किया जाएगा। महाबलीपुरम यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल है। यहां हजारों मूर्तियां, अखंड मंदिर और ग्रेनाइट की उभरी हुई विशालकाय नक्काशी हैं, जिनमें सबसे विशाल नक्काशी 100 फुट चौड़ी और 45 फुट ऊंची है।

अरुणाचलेश्वर मंदिर:

तिरुवन्नामलाई के अरुणाचलेश्वर मंदिर का निर्माण अग्नि तत्व के लिए किया गया था। तिरुवन्नामलाई अन्नामलाई पहाडिय़ों की तराई में स्थित है। इस पहाड़ी को अपने आप में एक पवित्र लिंग माना जाता है। अरुणाचलेश्वर से संबंधित शिव की कई दंतकथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में एक दंतकथा बताती है कि कैसे शिव ने यहां खुद को धरती और स्वर्ग को स्पर्श करते हुए अग्नि स्तंभ के रूप में परिवर्तित कर लिया था। तीर्थयात्रियों को स्कंदाश्रम और विरूपाक्षी मलाई गुफाओं में भी ले जाया जाएगा, जहां रमन महर्षि ने ध्यान की अवस्था में करीब 13 साल गुजारे थे।

तिलई नटराज मंदिर:

चिदंबरम स्थित तिलई नटराज मंदिर का निर्माण आकाश तत्व के लिए किया गया था। यह मंदिर महान नर्तक नटराज के रूप में भगवना शिव को समर्पित है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य में नृत्य की 108 मुद्राओं का सबसे प्राचीन चित्रण चिदंबरम में ही पाया जाता है। इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा आधुनिक योग विज्ञान के जनक पतंजलि ने की थी। सदगुरु कहते हैं, ‘‘चिदंबरम मंदिर की इमारत ही 35 एकड़ जगह में बनी है। यह शानदार मंदिर पत्थरों से बनाया गया है। इस स्थान की यात्रा करना बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्राण प्रतिष्ठा खुद पतंजलि ने की थी। असाधारण स्थान है यह।’’

जंबूकेश्वर मंदिर:

तिरुवनाईकवल का जंबूकेश्वर मंदिर जल तत्व के लिए बनाया गया था। मंदिर में एक भूमिगत झरना गर्भ-गृह को भर देता है, जहां लिंग बना हुआ है। यह अपने आप में विशिष्ट बात है कि यहां के पुजारी दोपहर बाद की धार्मिक रस्मों को करने से पहले महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर तैयार होते हैं। इसके पीछे कहानी यह बताई जाती है कि इस स्थान पर पार्वती ने तपस्या की थी और पास की कावेरी नदी के जल से लिंग का निर्माण किया था।

यात्रा का अंतिम पड़ाव है, त्रिची स्थित सद्गुरु श्रीब्रह्मा का आश्रम। इस स्थान पर सदगुरु श्रीब्रह्मा ने ध्यान किया था और कुछ खास समय के लिए वह समाधि की अवस्था में थे। आज भी यह स्थान एक ऐसी ऊर्जा से गुंजायमान है, जिससे साधक लाभ उठा सकते है।

इन मंदिरों से जबरदस्त शक्ति का अनुभव कर सकते हैं और इस तरह जीवन की शक्तियों और अपनी खुद की परम क्षमता को हासिल कर सकते हैं।

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