Friday, 8 July 2016

स्वर्ग नरक

महाराज जनक के जीवन में कोई भूल हो गई थी। मरने पर उन्हें यमलोक जाना पड़ा।
वहां उससे कहा गया- नरक चलो। महाराज जनक तो ब्रह्मज्ञानी थे। उन्हें क्या स्वर्ग, क्या नरक।
वे प्रसन्नतापूर्वक चले गए। नरक में पहुंचे तो चारों ओर से पुकार आने लगी- 'महाराज जनक जी! तनिक यहीं ठहर जाइए।'
महाराज जनक ने पूछा- 'यह कैसा शब्द है?'
यमदूतों ने कहा-'नरक के प्राणी चिल्ला रहे हैं।'
जनक ने पूछा-'क्या कह रहे हैं ये?'
यमदूत बाले-'ये आपको रोकना चाहते हैं।'
जनक ने आश्चर्य से पूछा-'ये मुझे यहां क्यों रोकना चाहते हैं?'
यमदूत बोले- 'ये पापी प्राणी अपने-अपने पापों के अनुसार यहां दारुण यातना भोग रहे हैं।
इन्हें बहुत पीड़ा थी। अब आपके शरीर को स्पर्श करके पुण्य वायु इन तक पहुंची तो इनकी पीड़ा दूर हो गई। इन्हें इससे बड़ी शांति मिली।'
जनक जी बोले-'हमारे यहां रहने से इन सबको शांति मिलती है, इनका कष्ट घटता है तो हम यहीं रहेंगे।'
तात्पर्य यह है कि भला मनुष्य नरक में पहुंचेगा तो नरक भी स्वर्ग हो जाएगा और बुरा मनुष्य स्वर्ग में पहुंच जाए तो स्वर्ग को भी नरक बना डालेगा।
अतः देखना चाहिए कि हम अपने चित्त में नरक भरकर चलते हैं या स्वर्ग लेकर।
जब हमें लगता है कि समस्त विश्व मेरी आत्मा में है, तब रोग-द्वेष, संघर्ष-हिंसा के लिए स्थान कहां रह जाता है ?

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