Wednesday, 13 July 2016

आखिरकार भिखारी ही सच्चा साधु साबित हुआ

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      एक साधु छह वर्ष तक कठिन तप करते हुए एकांत गुफा में रहा और फिर प्रभु से प्रार्थना की: प्रभु, मुझे अपने आदर्श के समान ही ऐसा कोई उत्तम महापुरुष बताइए जिसका अनुकरण कर मैं अपने साधना पथ में आगे बढ़ सकूं।

        उसी रात्रि को एक देवदूत ने आकर साधु से कहा- यदि तेरी इच्छा सद्गुणी और पवित्रता में सभी का मुकुटमणि बनने की हो तो उस मस्त भिखारी का अनुकरण कर, जो कविता गाते हुए भीख मांगता फिरता है।

     देवदूत की बात सुनकर साधु भिखारी की खोज में चल पड़ा। जब वह मिला तो साधु ने उसके द्वारा किए सत्कर्म पूछे। भिखारी बोला- मुझसे मजाक मत कीजिए। मैंने न तो कोई सत्कर्म किया, न तपस्या की और न प्रार्थना।

           मैं तो कविता गाकर लोगों का मनोरंजन करता हूं और जो रूखी-सूखी मिलती है, खा लेता हूं। तब साधु ने पूछा- तू भिखारी कैसे बना, तूने फिजूलखर्ची में पैसे उड़ा दिए या र्दुव्‍यसन में?

        भिखारी ने कहा- नहीं, मुझे जब पता चला कि एक गरीब स्त्री के पति और पुत्र कर्ज के बदले गुलाम बनाकर बेच दिए गए तो मैंने अपनी सारी संपत्ति साहूकार को देकर उसके पति व पुत्र को छुड़वा लिया।

      मेरी सारी संपत्ति चली जाने से मैं भिखारी हो गया। आजीविका का कोई साधन न रहने से मैं कविता गाकर अपना पेट पालता हूं और प्रसन्न रहता हूं।

       भिखारी की कथा सुनकर साधु उससे बहुत प्रभावित हुआ और बोला- तू सचमुच आदर्श साधु है। वस्तुत: दूसरों के सुख व बेहतरी के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देने वाला ही श्रेष्ठ मानव है।

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