Sunday, 3 July 2016

धन का मोह



एक नदी के किनारे एक महात्मा रहते थे। उनके पास दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने आते थे। एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला- महाराज! मैं लंबे समय से ईश्वर की भक्ति कर रहा हूं, फिर भी मुझे ईश्वर के दर्शन नहीं होते। कृपया मुझे उनके दर्शन कराइए।
महात्मा बोले- तुम्हें इस संसार में कौन सी चीजें सबसे अधिक प्रिय हैं?
व्यक्ति बोला- महाराज! मुझे इस संसार में सबसे अधिक प्रिय अपना परिवार है और उसके बाद धन-दौलत।
महात्मा ने पूछा- क्या इस समय भी तुम्हारे पास कोई प्रिय वस्तु है?
व्यक्ति बोला- मेरे पास एक सोने का सिक्का ही प्रिय वस्तु है।
महात्मा ने एक कागज पर कुछ लिखकर दिया और उससे पढ़ने को कहा। कागज देखकर व्यक्ति बोला- “महाराज! इस पर तो ईश्वर लिखा है।
महात्मा ने कहा- अब अपना सोने का सिक्का इस कागज के ऊपर लिखे ''ईश्वर'' शब्द पर रख दो।
व्यक्ति ने ऐसा ही किया। फिर महात्मा बोले- अब तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?”
वह बोला- इस समय तो मुझे इस कागज पर केवल सोने का सिक्का रखा दिखाई दे रहा है।
महात्मा ने कहा- ईश्वर का भी यही हाल है। वह हमारे अंदर ही है, लेकिन मोह-माया के कारण हम उसके दर्शन नहीं कर पाते। जब हम उसे देखने की कोशिश करते हैं तो मोह-माया आगे आ जाती है। धन-संपत्ति, घर-परिवार के सामने ईश्वर को देखने का समय ही नहीं होता। यदि समय होता भी है तो उस समय जब विपदा होती है। ऐसे में ईश्वर के दर्शन कैसे होंगे?
महात्मा की बातें सुनकर व्यक्ति समझ गया कि उसे मोह-माया से निकलना है।

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