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एक गांव में एक धनी व्यापारी रहता था। अपने नौकरों के प्रति वह बड़ी सहृदयता से पेश आता था और उनकी जरूरतों का भी ख्याल रखता था। एक दिन जब वह घर लौटा तो देखा कि घर में आग लगी हुई है। वह घबराकर दौड़ा, यह देखने कि परिवार के सभी सदस्य कहां हैं?
लेकिन उसे यह देखकर राहत महसूस हुई कि उसका पूरा परिवार घर से बाहर और सुरक्षित है। तभी व्यापारी का ध्यान नौकर रामू पर गया। वह दिखाई नहीं दे रहा था।
परिजनों ने बताया कि वह अंदर ही रह गया है। यह जानकर उस व्यापारी को बड़ा दुख हुआ और उसने उसी समय घोषणा की कि जो भी व्यक्ति नौकर को जलते घर से बाहर ले आएगा, वह उसे इनाम में एक हजार सोने के सिक्के देगा। किंतु इतनी भयावह आग में किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि अपनी जान जोखिम में डालकर उसके प्राण बचाए। तभी वहां एक साधु आया।
सारी बात पता लगते ही वह दौड़कर जलते हुए घर में घुसा और उस नौकर को अपने कंधे पर उठाकर सुरक्षित बाहर ले आया। लोगों ने देखा कि साधु के शरीर पर एक खरोंच तक नहीं आई थी। जब व्यापारी ने साधु को सोने के एक हजार सिक्के देना चाहे तो उसने मना करते हुए कहा - मुसीबत में फंसे लोगों की सहायता करना हमारा कर्तव्य है।
इसके लिए इनाम लेने का कोई औचित्य नहीं। साधु के ये विचार सुनकर लोग समझ गए कि उसके आग से सुरक्षित निकल आने का क्या कारण था। वस्तुत: उपकार तब सहस्र पुण्यों का सृजन कर देता है, जब वह दूसरों पर किया गया हो।
एक गांव में एक धनी व्यापारी रहता था। अपने नौकरों के प्रति वह बड़ी सहृदयता से पेश आता था और उनकी जरूरतों का भी ख्याल रखता था। एक दिन जब वह घर लौटा तो देखा कि घर में आग लगी हुई है। वह घबराकर दौड़ा, यह देखने कि परिवार के सभी सदस्य कहां हैं?
लेकिन उसे यह देखकर राहत महसूस हुई कि उसका पूरा परिवार घर से बाहर और सुरक्षित है। तभी व्यापारी का ध्यान नौकर रामू पर गया। वह दिखाई नहीं दे रहा था।
परिजनों ने बताया कि वह अंदर ही रह गया है। यह जानकर उस व्यापारी को बड़ा दुख हुआ और उसने उसी समय घोषणा की कि जो भी व्यक्ति नौकर को जलते घर से बाहर ले आएगा, वह उसे इनाम में एक हजार सोने के सिक्के देगा। किंतु इतनी भयावह आग में किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि अपनी जान जोखिम में डालकर उसके प्राण बचाए। तभी वहां एक साधु आया।
सारी बात पता लगते ही वह दौड़कर जलते हुए घर में घुसा और उस नौकर को अपने कंधे पर उठाकर सुरक्षित बाहर ले आया। लोगों ने देखा कि साधु के शरीर पर एक खरोंच तक नहीं आई थी। जब व्यापारी ने साधु को सोने के एक हजार सिक्के देना चाहे तो उसने मना करते हुए कहा - मुसीबत में फंसे लोगों की सहायता करना हमारा कर्तव्य है।
इसके लिए इनाम लेने का कोई औचित्य नहीं। साधु के ये विचार सुनकर लोग समझ गए कि उसके आग से सुरक्षित निकल आने का क्या कारण था। वस्तुत: उपकार तब सहस्र पुण्यों का सृजन कर देता है, जब वह दूसरों पर किया गया हो।
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