Monday, 14 March 2016

अर्धनारीश्वर क्यों बने शिव?


शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई। उसमें आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है। और आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह भी छिपा है। और जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आप में ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है। और फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना ही आनंद बढ़ता जाता है।
हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है। शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की- यह अनूठी घटना है। जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा। और देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं। उसके कुछ कारण हैं। उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं।
अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि जिस दिन परमसंभोग घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है। आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है। और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता।
अगर आप बायोलॉजिस्ट से पूछें आज, वे कहते हैं- हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है। होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधे-आधे आप होना ही चाहिए। अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते। सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते। लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है। आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं- आप अर्धनारीश्वर हैं।
बायोलॉजी ने तो अब खोजा है, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में आज से पचास हजार साल पहले इस धारणा को स्थापित कर दिया। यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर। क्योंकि जब योगी अपने भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं। और मुझमें दोनों मिल रहे हैं। मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है। और उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; एक वर्तुल पूरा हो गया है। मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है। और अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है। उन दोनों में एक मिलन चल रहा है।
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अर्धनारीश्वर स्तोत्रम्
चाम्पेयगौरार्धशरीरकाये कर्पूरगौरार्धशरीरकाय
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
चम्पाके पुष्प समान गौर अर्ध शरीरवाले पार्वतीजीको एवम कर्पूर समान गौर अर्ध शरीरवाले शिवजीको, मोती और फूलोसे सुशोभित केशवाले [धम्मिल्लकायै] शिवाको एवम जटावाले शिवजीको प्रणाम
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजःपुंजविचर्चिताय
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
कस्तुरी और कुमकुमसे लिपटे हुए पार्वतीजीको एवम चिताकी राखके ढेरसे लिपटे हुए शिवजीको, कामदेवको जगानेवाले शिवाको एवम कामदेवका नाश करनेवाले शिवजीको प्रणाम.
चलत्क्रणत्कंकणनूपुरायै पादब्जराजत्फणिनूपुराय
हेमांगदायै भुजगांगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिनके हाथमें खनकते हुए कंगन और पैरमें नूपुर है एवम जिनके चरणकमलमें सर्परूपी नूपुर हैऔर जिनकी भूजा पर सोनेके बाजुबंद [अंगद] लिपटे हुए है ऐसे शिवाको एवम जिनकी भूज पर सर्पोके बाजुबंद लिपटे हुए है ऐसे शिवजीको प्रणाम
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय
प्रसन्न नीलक्मल समान नेत्रवालेको एवम संपूर्ण तरहसे विकसित कमल समान नेत्रवालेको, दो नेत्रवाले शिवाको और त्रिनेत्रवाले शिवजीको प्रणाम
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिनके घुंघराले बाल मंदार पुष्पोकी मालासे सुशोभित है एवम जिनकी गरदन खोपडीओंकी मालासे सुशोभित है, जिसने दिव्य वस्त्र धारण किये हो एवम जिसने दिशाओंके वस्त्र धारण किये याने निःवस्त्र हो ऐसे शिवा शिवको प्रणाम
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिनके श्यामल केश जलसे भरे बादल [अम्भोधर] समान है एवम जिनकी ताम्रवर्णीय जटा चमकीली बीजली समान है, जो हंमेशा स्वतंत्र है यानी जिनके कोई ईश्वर नहीं है एवम जो सर्व लोकके स्वामी है ऐसे शिवा शिवको प्रणाम
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय
जो विश्वप्रपंचके सर्जनके अनुकूल नृत्य करनेवालेको एवम समस्त विश्वप्रपंचका संहार करनेवाला तांडव नृत्य करनेवालेको, विश्वमाताको एवम विश्वपिताको अर्थात शिवा शिवको प्रणाम
प्रदीप्तरत्नोज्जवलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय
जिन्होंने अति झगमगते रत्नोके उज्जवल कुंडल पहने है एवम जिन्होंने अति भयानक सर्पोंके आभुषण पहने है, जो शिवजीसे समन्वित हुए हो एवम जो शिवासे शिवा [पार्वतीजी]से समन्वित हुए हो ऐसे शिवा शिवको प्रणाम
एतत्पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात्सदा तस्य समस्तसिद्धिः
जो मनुष्य यह ईष्ट वस्तुका प्रदान करनेवाला अष्टकका भक्तिपूर्वक पाठ करता है वह संसारमें सन्मानित होता है, दीर्घायु होता है, अनंत काल तक वह सौभाग्य प्राप्त करता है एवम उसको हम्मेश समस्त सिद्धि प्राप्त होती है

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