ऋषि, महर्षि, संत एवं भक्तों ने ज्ञान - प्राप्ति के लिए अनेक साधन बताए हैं । सभी साधनों का लक्ष्य ब्रह्म की प्राप्ति और अज्ञान की निवृत्ति है । भारतवर्ष में सर्वत्र व्याप्त हनुमत - साधना भी उन्हीं में से एक है ।
श्रीहनुमान जी की उपासना मुख्यत: तीन प्रकार की होती है - एकमुखी हनुमान की, पंचमुखी हनुमान की और एकादशमुखी हनुमान की । इनके मंत्र, स्तोत्र, कवच आदि भिन्न - भिन्न हैं, जिनको योग्य गुरू से अधिकार प्राप्त करके साधना करनी चाहिए ।
साधना - शास्त्र में जो स्थान परमात्मा - तत्व का है, वहीं स्थान गुरू - तत्व का है । बहुत से साधकों ने गुरू - तत्व को साधक के लिए परमात्मा से भी अधिक हितकर बताया है । श्रीहनुमान जी को 'रामरहस्योपनिषद्' में गुरू रूप में स्वीकार किया गया है । सनक - सनंदन - सनातन - सनत्कुमार एवं शाण्डिल्य, मुद्गल आदि महर्षियों ने श्री हनुमान जी के श्रीराम - तत्व का ज्ञान प्राप्त किया है, जिसका अनेक प्रकार से वर्णन प्राप्त होता है तथा श्रीराम मंत्र के अनेक प्रकार इस उपनिषद् में बताए गए हैं । 'रामोत्तरतापनीयोपनिषद' में माण्डूक्योपनिषद् के सभी मंत्रों का तात्पर्य शिवत्व में बताया गया है और वहीं श्रीराम - तत्व की साधना अद्वैत सिद्धांत के अनुसार मानी गयी है । जिस प्रकार अद्वैत वेदांत में 'अहं ब्रह्मास्मि' महावाक्यका अर्थ किया गया है, उसी प्रकार इस उपनिषद में 'रामोऽहम' महावाक्य का अर्थ किया गया है, जो इस प्रकार है -
सदा रामोऽहमस्मीति तत्वत: प्रवदंति ये ।
न ते संसारिणो नूनं राम एव न संशय: ।।
वर्तमान समय में प्रचलित श्रीरामानुज के विशिष्टाद्वैत - संप्रदाय और श्रीरामानंदीय संप्रदाय में श्रीराम को परमात्मा रूप में मान्य किया गया है, उपर्युक्त मत में भेद सहित अद्वैत है और जीव परमात्मा का अंशस्वरूप माना गया है । श्री हनुमान जी के अवतार स्वरूप मध्वाचार्य ने द्वैतवाद का प्रतिपादन किया है ।
कबीर, दादू, नानक आदि संतों ने भी श्रीराम - नाम के द्वारा निराकार - निर्गुण - अद्वैत उपासना की है, जिसका समन्वय भी उक्त प्रकार से ही है ।
इस प्रकार ये नाम - साधना की व्यापकता है और इसके उपदेष्टा गुरू - तत्व के रूप में श्री हनुमान जी ही हैं, इसलिए अद्वैत ब्रह्म का बोधक ही हनुमत - साधना है । श्री हनुमान जी की साधना से लौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं, जिस (साधना) का जगत के उपकार के लिए महात्मा लोग उपयोग करते हैं । कहा भी गया है - अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ।।
इसी का अनुसरण करके महात्मा तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की । समर्थ गुरू श्रीराम दास जी ने भी महाराज शिवा जी को हनुमत - शक्ति प्रदान कर हिंदू - धर्म की रक्षा की थी । वैष्णव धर्म में जो चतुर्व्युह - तत्व माना गया है, इसका विस्तार से निरूपण महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में किया है ।
यहां संक्षिप्त रूप में श्री हनुमान - साधना का स्वरूप लिखा गया है । परब्रह्म स्वरूप श्रीराम - तत्व का बोध श्री हनुमान जी द्वारा ही होता है । इसलिए श्रीराम - भक्तों को भी श्री हनुमत - साधना करना अत्यंत आवश्यक है ।
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