Saturday, 12 March 2016

ईश्वर

वह तेजस्वियों का तेज, 
बलियों का बल, 
ज्ञानियों का ज्ञान, 
मुनियों का तप, 
कवियों का रस, 
ऋषियों का गाम्भीर्य 
और बालक की हंसी में विराजमान है। 
ऋषि के मन्त्र गान 
और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। 
वह शब्द नहीं भाव पढता है, 
होंठ नहीं हृदय देखता है, 
वह मंदिर में नहीं,
मस्जिद में नहीं, 
प्रेम करने वाले के हृदय में रहता है।
बुद्धिमानों की बुद्धियों के लिए वह पहेली है 
पर एक निष्कपट मासूम को वह सदा उपलब्ध है। 
वह कुछ अलग ही है। 
पैसे से वह मिलता नहीं 
और प्रेम रखने वालों को कभी छोड़ता नहीं। 
उसे डरने वाले पसंद नहीं, प्रेम करने वाले पसंद हैं। 
वह ईश्वर है, सबसे अलग पर सबमें रहता है।

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