श्री कृष्ण का जन्म भागवत अनुसार मध्य रात्रि के घने अन्धकार में दासत्व के घोर कष्टों के बीच हुआ था जब चहुँ ओर कंस के अधर्म से मानवता त्राही-त्राही कर रही थी। यह दर्शाता है कि जब हम सब तरफ से निराश हो जाते हैं और सब कुछ नष्ट हुआ प्रतीत होता है तब कहीं से इक आशा की किरण झिलमिलाती है जो हमें नये सिरे से जीवन जीना सिखाती है, तब मान लेना चाहिये हमारे भीतर कृष्ण/ब्रह्म का जन्म हो गया है तब हम इसी संसार को नये नज़रिये से देखते हैं मानो कारागार के द्वार खुल गये हों और हम नई ऊर्जा से भरपूर जीवन में आगे बढ़ जाते हैं।
मनीष को बचपन पोलियो हो गया था जिसकी वजह से वह लंगड़ा कर चलता था। उसे सभी लंगू कह कर चिढ़ाते व उसकी चाल की नकल उतारते थे। अच्छी क्वालिफिकेशन के बाबजूद उसे विकलांग कोटे से नौकरी मिली। शादी के बाद एक दिन पत्नी व बच्चे के साथ शाम को घर लौट रहा था कि अचानक 5-6 आदमियों ने घेर लिया और उसका सब कुछ लूट और सभी को अधमरा कर भाग गये। मनीष आहत हो सोचने लगा उसका जीवन व्यर्थ है उसे जीने का कोई हक नहीं, वह परिवार की रक्षा तक कर नहीं सकता। उसे घोर अंधकार ने घेर लिया और वह अपने लंगड़ेपन की बेड़ियों से बंध बेबस हो गया। तब एक दिन विक्रम पहलवान मिला जिसने उसे बताया कि शारीरिक लंगड़ेपन को कमज़ोरी मत बनने दो, कसरत कर ताकतवर बनो। मानो मनीष को इक आशा की किरण दिखाई दी और उसने ठान लिया। मन से लंगड़ेपन के दुख को भुला चल दिया नई राह पर, मानो कारगार के दरवाजे खुल गये और आज का मनीष पूरी तरह से सक्षम है उसका परिवार उस पर गर्व करता है। अब किसी के लंगू कहने पर वह मुस्कुरा रह जाता है क्योंकि भीतर ब्रह्म का जन्म हो चुका है उसे मालूम है कि वह अब 7-8 पर भारी है।
मित्रों अपनी समस्यों के लिये खुद को मत कोसें क्योंकि जहां समस्या है वहां हल भी जरूर है। अपने भीतर कालिख को हटा कृष्ण के जन्म का मार्ग ढूँढें।
जय श्री कृष्ण
मनीष को बचपन पोलियो हो गया था जिसकी वजह से वह लंगड़ा कर चलता था। उसे सभी लंगू कह कर चिढ़ाते व उसकी चाल की नकल उतारते थे। अच्छी क्वालिफिकेशन के बाबजूद उसे विकलांग कोटे से नौकरी मिली। शादी के बाद एक दिन पत्नी व बच्चे के साथ शाम को घर लौट रहा था कि अचानक 5-6 आदमियों ने घेर लिया और उसका सब कुछ लूट और सभी को अधमरा कर भाग गये। मनीष आहत हो सोचने लगा उसका जीवन व्यर्थ है उसे जीने का कोई हक नहीं, वह परिवार की रक्षा तक कर नहीं सकता। उसे घोर अंधकार ने घेर लिया और वह अपने लंगड़ेपन की बेड़ियों से बंध बेबस हो गया। तब एक दिन विक्रम पहलवान मिला जिसने उसे बताया कि शारीरिक लंगड़ेपन को कमज़ोरी मत बनने दो, कसरत कर ताकतवर बनो। मानो मनीष को इक आशा की किरण दिखाई दी और उसने ठान लिया। मन से लंगड़ेपन के दुख को भुला चल दिया नई राह पर, मानो कारगार के दरवाजे खुल गये और आज का मनीष पूरी तरह से सक्षम है उसका परिवार उस पर गर्व करता है। अब किसी के लंगू कहने पर वह मुस्कुरा रह जाता है क्योंकि भीतर ब्रह्म का जन्म हो चुका है उसे मालूम है कि वह अब 7-8 पर भारी है।
मित्रों अपनी समस्यों के लिये खुद को मत कोसें क्योंकि जहां समस्या है वहां हल भी जरूर है। अपने भीतर कालिख को हटा कृष्ण के जन्म का मार्ग ढूँढें।
जय श्री कृष्ण
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