शिव का जीवात्मा रूप रुद्र कहलाता है। सृष्टि के आरंभ और विनाश के समय रुद्र ही शेष रहते हैं। सृष्टि और प्रलय, प्रलय और सृष्टि के मध्य नृत्य करते हैं। जब सूर्य डूब जाता है, प्रकाश समाप्त हो जाता है, छाया मिट जाती है और जल नीरव हो जाता है उस समय यह नृत्य आरंभ होता है।
तब अंधकार समाप्त हो जाता है और ऐसा माना जाता है कि उस नृत्य से जो आनंद उत्पन्न होता है वही ईश्वरीय आनंद है। शिव,महेश्वर, रुद्र, पितामह, विष्णु, संसार वैद्य, सर्वज्ञ और परमात्मा उनके मुख्य आठ नाम हैं। तेईस तत्वों से बाहर प्रकृति,प्रकृति से बाहर पुरुष और पुरुष से बाहर होने से वह महेश्वर हैं।
प्रकृति और पुरुष शिव के वशीभूत हैं। दु:ख तथा दु:ख के कारणों को दूर करने के कारण वह रुद्र कहलाते हैं। जगत के मूर्तिमान पितर होने के कारण वह पितामह, सर्वव्यापी होने के कारण विष्णु, मानव के भव रोग दूर करने के कारण संसार वैद्य और संसार के समस्त कार्य जानने के कारण सर्वज्ञ हैं। अपने से अलग किसी अन्य आत्मा के अभाव के कारण वह परमात्मा हैं।
कहा जाता है कि सृष्टि के आदि में महाशिवरात्रि को मध्य रात्रि में शिव का ब्रह्म से रुद्र रूप में अवतरण हुआ, इसी दिन प्रलय के समय प्रदोष स्थिति में शिव ने ताण्डव नृत्य करते हुए संपूर्ण ब्रह्माण्ड अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर दिया।
आचार्य शंकर जी सौन्दर्य लहरी में महासंहार की की उलेख करते हुवे य कहते है कि —
–
विरिंचिः पंचत्वं व्रजति हरिराप्नोति विरतिं
विनाशं कीनाशो भजति धनदो याति निधनम् ।
वितंद्री माहेंद्री विततिरपि संमीलित दृशा
महासंहारेऽस्मिन् विहरति सति त्वत्पतिरसौ
–
जब महासंहार की
होती उपस्थित प्रलय वेला
विधाता पंचत्व पाते विष्णु परम विरामग्राही
काल भी उस काल
हो जाता अचानक कालकवलित
प्राप्त कर लेते निधन को धनद
चिर निद्रा-विलीना इन्द्र आँखें
महाप्रलय कठोर क्रीड़ा संचरण में
किन्तु इस प्रलयंकरी सर्वस्वग्रासी खेल में भी
पति तुम्हारे
विहरते स्वाधीन शिव
साध्वी सती हे !
–
तंत्र के अनुसार सृष्टि-क्रम कुछ इस प्रकार है: पहले परर्पिंड यानी संयोग (शिव और शक्ति का मिलन, फिर त्रिगुणात्मक आदि-पिंड और तब नीले रंग का महाप्रकाश, धूम्र रंग का महावायु,,रक्तवर्ण का महातेज, श्वेत वर्ण, का महासलिल, पीतवर्ण की महापृथ्वी, पांच महातत्वों से उत्पत्ति, महासाकार पिंड, भैरव, श्रीकंठ , सदाशिव, ईश्वर, रुद्र, विष्णु, ब्रह्मा, नर-नारी, प्राकृतिक पिंड (नर-नारी संयोग) और पुरुष तथा नारी का जन्म.
–
इस प्रकार अग्नि, सूर्य और सोम मिलकर सृजन का त्रिभुज यानी योनि बनाते हैं. और यूं शून्य तथा अंधकार से सृजन की कहानी शुरू होती है. शिव से पृथ्वी तक ३६ तत्त्व हैं जो आत्मा से जुड़ कर सजीव और निर्जीव जगत का निर्माण करते हैं.
–
प्रलय काल में पृथ्वी जल में, जल अग्नि में, अग्नि वायु में और वायु आकाश में लीन होकर पुनः बिंदु रूप में आ जाती है. यही संकोच और विस्तार प्रलय और सृजन है तथा प्राणि-मात्र में जन्म और मृत्यु है.
–
बिंदु रूप ब्रह्म वामाशक्ति है क्योंकि वही विश्व का वमन (यानी उत्पन्न) करती है-
ब्रह्म बिंदुर महेशानि वामा शक्तिर्निगते
–
प्रलय चार प्रकार है :-
1.नित्य प्रलय : वेंदांत के अनुसार जीवों की नित्य होती रहने वाली मृत्यु को नित्य प्रलय कहते हैं। जो जन्म लेते हैं उनकी प्रति दिन की मृत्यु अर्थात प्रतिपल सृष्टी में जन्म और मृत्य का चक्र चलता रहता है।
–
2.आत्यन्तिक प्रलय : आत्यन्तिक प्रलय योगीजनों के ज्ञान के द्वारा ब्रह्म में लीन हो जाने को कहते हैं। अर्थात मोक्ष प्राप्त कर उत्पत्ति और प्रलय चक्र से बाहर निकल जाना ही आत्यन्तिक प्रलय है।
–
3.नैमित्तिक प्रलय : वेदांत के अनुसार प्रत्येक कल्प के अंत में होने वाला तीनों लोकों का क्षय या पूर्ण विनाश हो जाना नैमित्तिक प्रलय कहलाता है। पुराणों अनुसार जब ब्रह्मा का एक दिन समाप्त होता है, तब विश्व का नाश हो जाता है। चार हजार युगों का एक कल्प होता है। ये ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है। इसी प्रलय में धरती या अन्य ग्रहों से जीवन नष्ट हो जाता है।
नैमत्तिक प्रलयकाल के दौरान कल्प के अंत में आकाश से सूर्य की आग बरसती है। इनकी भयंकर तपन से सम्पूर्ण जलराशि सूख जाती है। समस्त जगत जलकर नष्ट हो जाता है। इसके बाद संवर्तक नाम का मेघ अन्य मेघों के साथ सौ वर्षों तक बरसता है। वायु अत्यन्त तेज गति से सौ वर्ष तक चलती है।
–
4.प्राकृत प्रलय : ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना प्राकृत प्रलय कहलाता है। वेदांत के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था (लिंग)में हो जाता है। न जल होता है, न वायु, न अग्नि होती है और न आकाश और ना अन्य कुछ।
–
No comments:
Post a Comment