Wednesday, 16 March 2016

वारों के निर्माता शिव -


सृष्टि के आरंभ में सर्वज्ञ, दयालु और सर्वसमर्थ महादेव जी ने सभी लोकों के उपकार के लिए वारों की कल्पना की । वे भगवान शिव संसार रूपी रोगों को दूर करने के लिए वैद्य हैं । सबके ज्ञाता और सभी औषधों के औषध भी है । देवों के देव महादेव ने सर्वप्रथम अपने वार की कल्पना की , जो आरोग्य प्रदान करने वाला है । जन्मकाल में दुर्गतिग्रस्त बालक की रक्षा के लिए उन्होंने कुमार के वार की कल्पना की । तत्पश्चात भगवान शिव ने आलस्य और पाप की निवृत्ति तथा समस्त लोकों का हित करने की इच्छा से लोकरक्षक भगवान विष्णु का वार बनाया । इसके बाद सबके स्वामी भगवान शिव ने पुष्टि और रक्षा के लिए आयुकर्ता ब्रह्मा का आयुष्कारक वार बनाया, जिससे संपूर्ण जगत के आयुष की सिद्धि हो सके । तीनों लोकों के लिए पहले पुण्य पाप की रचना हो जाने पर उनके करनेवाले लोगों को शुभा शुभ फल देने के लिए भगवान शंकर ने इंद्र और यम के वारों का निर्माण किया । ये दोनों वार क्रमश: भोग देने वाले और लोगों के मृत्यु भय को दूर करनेवाले हैं । इसके बाद सूर्य आदि सात ग्रहों को, जो अपने ही स्वरूप और प्राणियों के सुख दुख का सूचक हैं, भगवान शिव ने उपर्युक्त सात वारों का स्वामी निश्चित किया । वे सब के सब ग्रह - नक्षत्रों के ज्योतिर्मय मण्डल में प्रतिष्ठित हैं। शिव के वार और दिन के स्वामी सूर्य है , शक्ति संबंधी वार के स्वामी सोम है । कुमार संबंधी दिन के अधिपति मंगल है । विष्णु वार के स्वामी बुध है । ब्रह्मा जी के वार के अधिपति बृहस्पति हैं । इंद्र वार के स्वामी शुक्र है और यम वार के स्वामी शनैश्चर है । अपने अपने वार में की गई उक्त देवताओं की पूजा अत्यंत फलदायी है । सूर्य आरोग्य और चंद्रमा संपत्ति के दाता हैं । मंगल व्याधियों का निवारण करते है, बुध पुष्टि देते है । बृहस्पति आयु की वृद्धि देते है, शुक्र भोग देते है और शनैश्चर मृत्यु का निवारण करते हैं । ये सात वारों के फल बताए गए हैं, जो उन - उन देवताओं की प्रीति से प्राप्त होते है ।
सप्ताह में सात दिन होते हैं । ये सात वार हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं । यदि सकारात्मक रूप से देखें तो हमको इन सात वारों से सुंदर शिक्षा मिलती हैं.. आइए जानते है :-
1. रविवार - रवि (सूर्य) का दिन है । सूर्य स्वयं तप कर सारे संसार को पआकाश देता है । अत: जो स्वयं कष्ट (तप कर) सहकर दूसरे को रोशनी दे उस के जीवन में शांति आती है । उसी का जीवन सार्थक है ।
2. सोमवार - सोम (चंद्रमा) अर्थात शीतल । परोपकारी को शांति मिलती है ।
3. मंगल - शांति से मंगल (शुभ) होता है ।
4. बुध - बुध मतलब ज्ञान अर्थात ज्ञानी । जीवन में मंगल होने पर बोध (ज्ञान) होता है ।
5. बृहस्पति - गुरू का वार है। ज्ञानी होने पर गुरू कहलाता है। गुरू मन और स्वभाव को सुधारते हैं। जिसकी प्रत्येक क्रिया ज्ञानमय हो वह उत्तम गुरू है।
6. शुक्र - गुरू बनने के बाद जीवन में शुक्र यानी संयम आता है । संयम आने से व्यक्ति स्वत: ही पराक्रमी बन जाता है । शुक्र का मतलब पराक्रमी भी होता है ।
7. शनि - संयमी, पराक्रमी व्यक्ति शनि को भी वश में कर सकता है अर्थात काल पर भी विजय प्राप्त कर लेता है ।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सात दिनों में प्रत्येक दिन किसी ना किसी भगवान की पूजा की जाती है । सप्ताह के पहले दिन अर्थात सोमवार को भगवान शिव की पूजा की जाती है ...आइए जानते है कि क्यों करते है सोमवार को भगवान शिव की पूजा ?
पौराणिक मान्यता है कि सोमवार के दिन रखे जाने वाले व्रत को सोमेश्वर व्रत के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा की पूजा भी की जाती है । हमारे धर्मग्रंथों में सोमेश्वर शब्द के दो अर्थ होते हैं । पहला अर्थ है – सोम यानी चन्द्रमा । चन्द्रमा को ईश्वर मानकर उनकी पूजा और व्रत करना । सोमेश्वर शब्द का दूसरा अर्थ है- वह देव, जिसे सोमदेव ने भी अपना भगवान माना है और वह देवता हैं – भगवान शिव । ऐसा माना जाता है कि सोमदेव ने भगवान शिव की आराधना की जिससे सोमदेव निरोगी हुए और उन्होंने फिर से अपने सौंदर्य को प्राप्त किया । भगवान शंकर ने भी प्रसन्न होकर दूज यानी द्वितीया तिथि के चन्द्रमा को अपनी जटाओं में मुकुट की तरह धारण किया । परंपरा के अनुसार सोमवार व्रत पर लोग भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते आ रहे हैं क्योंकि ये चंद्र उपासना से ज्यादा भगवान शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध हो गया है । भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा कर सुख और कामनापूर्ति होती है ।

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