Friday, 25 March 2016

भारत में धर्म का विस्तार :-


आज से तीन हजार वर्ष पहले तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अफगानिस्तान की हिन्दू कुश पर्वतमाला से लेकर बांग्लादेश की खाड़ी और बर्मा तक भारत में सिर्फ हिन्दू धर्म था, जिसे वैदिक धर्म या आर्यो का धर्म माना जाता था। इस धर्म को 3000 हजार ईसा पूर्व सर्वप्रथम संगठित रूप दिया भगवान कृष्ण ने, लेकिन कालक्रम में यह पुन: बिखर कर भिन्न-भिन्न जातियों में बदल कर असं‍गठित हो गया।
इस असंगिठित हिन्दू धर्म के साथ ही जैन धर्म की एक परंपरा शुरुआत से ही जुड़ी हुई चली आ रही थी जिसे सबसे पहले एक सुगठित सामाजिक रूप मिला पार्श्वनाथ के काल में। इससे पूर्व इस परंपरा को विदेहियों की परंपरा कहा जाता था। राजा जनक उसी परंपरा से थे।
बाद में भगवान महावीर ने मुनियों और विदेहियों की इस जिन परंपरा को स्पष्ट रूप से गठित कर एक सरल मार्ग के रूप में बदला। इसके कारण क्रमश: इस परंपरा ने जैन धर्म के रूप में आकार ले लिया। उसी दौर में गौतम बुद्ध की प्रसिद्धि हो गई थी। गौतम बुद्ध के ज्ञान का इतना व्यापक असर हुआ कि 500 ईस्वी पूर्व एक नया धर्म अस्तित्व में आ गया जिसे ‘बौद्ध धर्म’ कहा जाने लगा।
बौद्ध काल और गुप्त काल को भारत का स्वर्ण काल माना जाता है। उसी दौर में ईसा से 3000 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए यहूदी धर्म का एक ‍कबीला कश्मीर में आकर रहने लगा और धीरे-धीरे वह हिन्दू तथा बौद्ध संस्कृति में घुलमिल गया।
इसी तरह बौद्ध काल में ही शक, हूण, कुषाण, पारथीयन, ग्रीक और मंगोल आक्रमणकारी आए और उनके कुछ समूह यहां की संस्कृति और धर्म में मिलकर खो गए और ज्यादातर अपने देश लौट गए।
भारत में कुछ समूह व्यापारी बनकर आया और बाद में सत्ताधारी बन गया। कुछ समूह लुटने आया और लुटकर चला गया और कुछ ने आक्रमण कर यहां के भू-भाग पर कब्जा कर लिया। आइये जानते हैं कि किस तरह भारत बहुधर्मी देश बन गया।
यहूदी धर्म : आज से 2985 वर्ष पूर्व अर्थात 973 ईसा पूर्व में यहूदियों ने केरल के मालाबार तट पर प्रवेश किया। यहूदियों के पैगंबर थे मूसा, लेकिन उस दौर में उनका प्रमुख राजा था सोलोमन, जिसे सुलेमान भी कहते हैं।
नरेश सोलोमन का व्‍यापारी बेड़ा, मसालों और प्रसिद्ध खजाने के लिए आया। आतिथ्य प्रिय हिंदू राजा ने यहूदी नेता जोसेफ रब्‍बन को उपाधि और जागीर प्रदान की। यहूदी कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य में बस गए। विद्वानों के अनुसार, 586 ईसा पूर्व में जूडिया की बेबीलोन विजय के तत्‍काल पश्‍चात कुछ यहूदी सर्वप्रथम क्रेंगनोर में बसे।
जैन धर्म : ईसा पूर्व छठी शताब्‍दी में महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया जिसके कारण बहुत से क्षत्रिय और ब्राह्मण जैन होते गए। चाणक्य का नाम कौन नहीं जानता। वे खुद जैन धर्म से प्रभावित होकर जैन हो गए थे। महावीर ने तप, संयम और अहिंसा का संदेश दिया।
बौद्ध धर्म : लगभग इसी दौर में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। गौतम बुद्ध एक क्षत्रिय राजकुमार थे। बुद्ध से प्रभावित होकर दलितों और ब्राह्मणों में भिक्षु होने की होड़ लग गई थी। बुद्ध के उपदेशों का चीन और कुछ अन्‍य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी प्रचार हुआ। बुद्ध पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने धर्म को एक व्यवस्था थी और ज्ञान को श्रे‍णीबद्ध किया। बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर ही बाद केईसाई धर्म में बहुत-सी बातें शामिल की गई।
ईसाई धर्म : व्यापक रूप से हुए एक शोध अनुसार ईसा मसीह ने कश्मीर में एक बौद्ध मठ में शिक्षा और दीक्षा ग्रहण की। ईसा मसीह के 12 शिष्यों में से एक शिष्य थे जिनका नाम था सेंट थॉमस। थॉमस ने ही सर्वप्रथम केरल के एक स्थान से ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया।
दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई चर्च, सेंट थॉमस के आगमन का संकेत देती है। इसके बाद सन 1542 में सेंट फ्रेंसिस जेवियर के आगमन के साथ भारत में रोमन कैथोलिक धर्म की स्‍थापना हुई जिन्होंने भारत के गरीब हिंदू और आदिवासी इलाकों में जाकर लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर सेवा के नाम पर ईसाई बनाने का कार्य शुरू किया। इसके बाद भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान इस कार्य को और गति मिली। फिर भारत की आजादी के बाद ‘मदर टेरेसा’ ने व्यापक रूप से लोगों को ईसाई बनाया।
इस्‍लाम : सर्वप्रथम अरब व्‍यापारियों के माध्‍यम से इस्‍लाम धर्म 7वीं शताब्‍दी में दक्षिण भारत में आया। केरल और बंगाल दो उनके प्रमुख केंद्र थे, जबकि पश्चिम भारत में अफगानिस्तान।
इसके बाद 7वीं में ही मोहम्मद बिन कासिम ने बड़े पैमाने पर कत्लेआम कर भारत के बहुत बढ़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया जहां से हिन्दू जनता को पलायन करना पड़ा।
जो हिन्दू पलायन नहीं कर सके वह मुसलमान बन गए या मारे गए। जिस भू भाग पर कब्जा किया था वह आज का आधा पाकिस्तान है, जो पहले मगध था।
इनके पश्‍चात् अफगानी, ईरानी और मुगल साम्राज्य के दौर में भारत में इस्‍लाम धर्म दो तरीके से फला और फैला पहला सुफी संतों के प्रचार-प्रसार से तथा दूसरा मुस्लिम शासकों द्वारा किए गए दमन चक्र से।
जो अफगा‍नी, ईरानी, मुगल थे उनकी नस्ल का कहीं अता-पता नहीं चलता और कुछ गुलाम वंश के शासक भी अंग्रेजों के काल में अपने-अपने देश लौट गए रह गए तो वह भारतीय हिन्दू जो अब मुसलमान हो चुके थे।
पारसी धर्म : पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म है। ईरान के बाहर मिथरेज्‍म के रूप में रोमन साम्राज्‍य और ब्रिटेन के विशाल क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हुआ। इसे आर्यों की एक शाखा माना जाता है।
ईरान पर इस्‍लामी विजय के पश्‍चात पारसियों को इस्लाम कबूल करना पड़ा तो कुछ पारसी धर्म के लोगों ने अपना गृहदेश छोड़कर भारत में शरण ली। कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से तस्त्र होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईसा पूर्व दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए।
अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवत: 100000 से अधिक नहीं है। ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं।
सिख धर्म : 15वीं शताब्‍दी में सिख धर्म के संस्‍थापक गुरुनानक ने एकेश्‍वर और भाईचारे पर बल दिया। भारत के पंजाब में इस धर्म की उत्पत्ति हिन्दू और मुसलमान के बीच बढ़ रहे वैमनस्य के चलते हुई।
बाद में इस्लामिक अत्याचार से कश्मीरी पंडितों और देश के अन्य भागों से भाग रहे हिन्दुओं को बचाने के लिए ‘खालसा पंथ’ की स्थापना हुई। गुरु गोविंद सिंह और महाराजा रणजीत सिंह के काल में लोगों ने स्वयं को सुरक्षित महसूस किया।
इसके अलावा भारत में ऐसे बहुत से संत हुए हैं जिन्होंने अपना एक अलग संप्रदाय चलाया और अपने तरीके से एक नए धर्म को गढ़ने का प्रयास किया, लेकिन वह महज एक संप्रदाय में ही सिमटकर रह गए। ऐसे सैकड़ों संप्रदाय है जिनके कारण हिन्दू आपस में बंटा हुआ है।
अंतत: भारत एक ऐसा विशाल देश है जहां सर्वाधिक विविधता का मिश्रण है। इसके बावजूद सभी भारतीय है, क्योंकि सभी के पूर्वज आर्य या द्रविड़ थे और आज के शब्द में कहें तो हिन्दू ही थे। हम सभी ऋषि, मुनि, मनु और कष्यप ऋषि की संतानें हैं।
भारत में लगभग 15 प्रमुख भाषाएं हैं और 844 बोलियां हैं। आर्यों की संस्‍कृत भाषा के पूर्व द्रविड़ भाषा में विलय से भारत में कई नई भाषाओं की उत्‍पत्‍ति हुई। हिंदी, भारत की राष्‍ट्रीय भाषा है और हम सब भारतीय हैं। तीन से पांच हजार वर्ष पहले, गुजराती, मराठी, पंजाबी, तमिल या बंगाली भाषा नहीं थी। सभी जगह स्थानीय बोलियां थी और सभी संस्कृत के माध्यम से संपर्क में रहते थे।

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