Monday, 14 March 2016

नामजप

मंत्र या नामजप -मंत्र के विषय से बहुत लोग आकर्षित होते हैं तथा बहुत बार नामजप और मंत्रजप को एक ही समझ लिया जाता है । नामजप और मंत्रजप दोनों में ही किसी अक्षर, शब्द, मंत्र अथवा वाक्य को बार बार दोहराया जाता है, इसलिए दोनो में अंतर करना कठिन हो सकता है । परंतु अध्यात्मशास्त्र के दृष्टिकोण से, दोनों में कई प्रकार से अंतर है और प्रस्तुत लेख में हमने नामजप एवं मंत्रजप में तुलनात्मक अंतर बताया है ।
मंत्र शब्द की विभिन्न परिभाषाएं हैं, जो उसके आध्यात्मिक सूक्ष्म भेदों को समझाती हैं । सामान्यत: मंत्र का अर्थ है अक्षर, नाद, शब्द अथवा शब्दों का समूह; जो आत्मज्ञान अथवा ईश्‍वरीय स्वरूप का प्रतीक है । मंत्रजप से स्व-रक्षा अथवा विशिष्ट उद्देश्य साध्य करना संभव होता है । मंत्र को दोहराते समय विधि, निषेध तथा नियमों का विशेष पालन करना आवश्यक होता है । यह मंत्र तथा मंत्र साधना (मंत्रयोग) का महत्त्वपूर्ण अंग है । मंत्रों के सही उच्चारण व अर्थ का पूर्ण ज्ञान भी होना आवश्यक है।
नामजप अर्थात किसी भी देवता अथवा ईश्वर के किसी भी रूप के नाम को बार-बार दोहराना । मंत्रजप की भांति नामजप पर किसी प्रकार से विधि, निषेध अथवा नियमों का बंधन नहीं रहता । इसे कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं । नामजप साधना का मुख्य उद्देश्य है देवता के नाम में जो चैतन्य है वह ग्रहण कर आध्यात्मिक उन्नति करना । इसके साथ ही, जो अनिष्ट शक्तियां हमारी साधना में बाधा निर्माण करती हैं उनसे रक्षा करने के लिए नामजप एक शक्तिशाली उपाय है । नामजप में बस ईश्वर के केवल ऐक ही स्वरूप/नाम का ध्यान व जप करना चाहिये। यदि राम नामजप रहें तो केवल राम-राम ही जपें उसमें अन्य कोई भी शब्द या अलंकार न जोड़ें यदि कृष्ण-कृष्ण जप रहे हैं तो केवल कृष्ण कहें तभी नामजप की शक्ति का पूर्ण फल मिलता है। नामजप एक स्थान पर बैठ कर ईश्वर के उस रूप का ध्यान करते हुये शांत चित से करना चाहिये, उच्च स्वर में या किसी वाहन पर सवार इधर उधर चलते फिरते नामजप करने से कोई लाभ नहीं मिलता।
जय श्री राम जय श्री कृष्ण

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