Sunday 19 June 2016

उद्धार

जैतवन में विशाल धर्म-सम्मेलन चल रहा था ! उस दिन भगवान बुद्ध ' आत्मोद्वार ' पर प्रवचन करने वाले थे ! नारियों का समूह एक ओर , पुरुषों का दूसरी ओर शान्त मुद्रा में बैठा था ! उस दिन भारी संख्या में बौद्ध भिक्षु भी प्रवचन प्रांगण में उपस्थित थे !
तथागत की गम्भीर वाणी प्रस्फुटित हुई ! स्वर की उर्ध्वता बढ़ती गई ! भगवान का भावना-प्रवाह उमड़ रहा था , वे कह रहे थे - मुमुक्षो ! दूसरों के विचार पढ़ने , संकल्प जानने और भावनाओं की थाह लेना तुम्हारे लिए कठिन है पर अपनी परख सब आसानी से कर सकते हो ! दूसरों को सुधारने की अपेक्षा जो अपने सुधार का प्रयत्न करता है , वह मोक्ष का सच्चा अधिकारी है !
जिस तरह दर्पण में अपने चेहरे की मलीनता स्पष्ट हो जाती है और देखने वाला उसे ठीक कर लेता है , अपना मुख सुन्दर बना लेता है , उसी प्रकार भिक्षुओं ! अपनी चेतना के दर्पण में मन की मलीनताओं को देखो ! तुम्हारे विचार निर्मल हैं या नहीं ? तुम कहीं इन्द्रियों के आकर्षण में तो नहीं पड़े ! क्या लोभ और मोह तुम्हें परेशान कर हर है ? क्या दुर्व्यसन तुम्हारे पीछे पड़े हैं ?
यदि उत्तर हाँ में मिले तो तत्काल अपनी दुर्बलताओं को मिटाने में जुट जाओ ! देर और आलस्य न करो , आज जो गया तो फिर कल न आयेगा ! आत्म-परिक्षण और आत्मसुधार के इस क्रम में विलम्ब न करोगे , तो मोक्ष के अधिकारी बनोगे याद रखो ! तुम औरों का नहीं अपना उद्धार आप कर सकते हो , उसी प्रयत्न में आज से अभी से जुट जाओ !
" एक भी भ्रम शेष न रहे , तभी निर्वाण होगा 

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