Sunday 19 June 2016

मानव शारीर एक अपार खजाना है, नर चाहे तो नारायण बन सकता है।

एक नौजवान आलस्य के कारण अपनी गरीबी से तंग आकर अपने भाग्य को कोसने लगा।
गरीबी दूर हो इसके लिये आसान उपाय की खोज में वो एक संत से मिला और अपनी सारी व्यथा बतलाई।
महात्मा जी ने उसकी पूरी बात सुनी और बोले:- बेटे में एक व्यपारी को पहचानता हूँ, वो मनुष्य के अंग खरीद कर अच्छे पैसे देता है।
तुम अपनी दोनों आँखे बेच दो, वह तुमको पच्चास हजार रुपये देगा।
युवक बोला:- आप कैसी बात करते है महाराज जी, पच्चास हजार लेकर मैं क्या करूँगा, बिना आँखों के अँधा ना हो जाऊंगा।
तब संत जी ने कहा:- तो ठीक है अपने दोनों हाथ बेच दो, तीस हजार रूपये मिल जायेंगे।
युवक बोला:- अरे महाराज, दो हाँथ बेचकर तीस हजार मिल भी गए तो किस काम आयेंगे, मुझे अपाहिज नही बनना।
फिर संत बोले:- तो ऐसा करो अपनी दोनों टांगे उसे बेच दो, बीस हजार रुपये मिल जायेंगे, अच्छा दोनों ना सही ऐसा करो एक ही बेच दो दस हजार क्या बुरे है?
नौजवान बोला:- वाह महाराज वाह, क्या रास्ता बताया है धन कमाने का, मैं लंगड़ा नही हो जायुंगा क्या?
संत बोले:- फिर ठीक है पूरा शरीर एक लाख में बेच दो।
नौजवान बोला:- एक लाख तो क्या अगर कोई एक करोड़ भी देगा तो भी में अपना शरीर नही बेचूंगा।
संत बोले:- बेटा में यही समझाना चाहता हुँ तुम्हे, भगवान ने जब करोडों नही अरबों-खरबों की कीमत का ये शरीर दिया तो भला तुम खुद को गरीब क्यों मानते हो।
वह नौजवान संत के चरणों में गिरकर बोला:- महात्मा जी आप ने मेरी आँखें खोल दी, आज्ञा दीजिये मुझे क्या करना चाहिए?
संत बोले:- वत्स मानव शारीर एक अपार खजाना है, नर चाहे तो नारायण बन सकता है।
अपने हर अंग से काम लो, इस शरीर के रोम-रोम में, शक्तिरूपी परमात्मा को अपने मन मंदिर में बसाकर सत्कर्म करो।
ईश्वर को साक्षी मानकर किये हुए सत्कर्मो से इस लोक का खजाना तो भरता ही है, परलोक भी सुखमय हो जाता है......।

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