Saturday 16 July 2016

ब्रह्म और तन्त्र____2


अब हम द्वापर युग कि बात करते हैं। द्वापर युग में कंस, तन्त्र का सम्राट बना और उसी तन्त्र के बल पर उसने अपनी मृत्यु को टालना चाहा। जब उसे ज्ञात हुआ की, देवकी का 8वाँ पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा तो उस ने तन्त्र का दुरुपयोग प्रारम्भ कर दिया।
अपने तन्त्र के प्रयोग से कंस ने भगवान श्रीकृष्ण जी को मारने की भरसक कोशिश की, किन्तु होता वही है जो विधि के विधान में लिखा है। भगवान श्रीकृष्ण जी की ब्रह्म-विद्या के सामने कंस की तन्त्र विद्या हार गई और वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।
भगवान श्रीकृष्ण जी भी स्वयं एक सिद्ध तांत्रिक थे। अनेकों ही व्यक्ति इस बात को नहीं मानते। हम जो भी समझते हैं, इस सब के पीछे हमारी चेतना हमारी श्रद्धा, हमारा विश्वास और हमारी आत्म-ज्योति काम करती है।
आज जितने भी धर्म-ग्रन्थ हमारे पास है। वह सभी दो से तीन हजार वर्ष तक के है। जब भगवान राम या भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ उस वक्त का प्रमाणिक ग्रन्थ कोई भी नहीं है। समय के अनुसार जिस कि मन बुद्धि ने जो कहा उसने अपने समय के अनुसार फेर बदल कर दिया।
ग्रन्थों का अध्ययन करने के लिऐ हमें मन और श्रद्धा की नहीं, बल्कि विवेक-बुद्धि की आवश्यकता है। जब तक हम ग्रन्थों पर आँखें मूदँ कर विश्वास करते जायेंगे, तब तक हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
हमें आवश्यकता है, कि हम अपनी बुद्धि को हंस के समान बनाये, जो की पानी मिश्रित दूध में से, सिर्फ दूध को पी ले और पानी छोड़े दे। जब हमारी बुद्धि हंस के समान हो जायेगी और उसके पश्चात ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे तो हमें पता चलेगा की भगवान श्रीकृष्ण जी एक सिद्ध तांत्रिक थे।
सबसे बड़ा उदाहरण भगवान श्रीकृष्ण जी के द्वारा की गई रास लीला थी। इसी का बिगड़ा हुआ रूप भैरवी-साधना या भैरवी-चक्र है। भगवान श्रीकृष्ण जी द्वारा की गई लीला को सिर्फ लीला मात्र मानने से ब्रह्म की प्राप्ति नहीं होगी, बल्कि उस लीला के पीछे जो सार तत्त्व व सिद्धि का रहस्य छिपा हुआ है, उसे समझना होगा।
जैसे कि भगवान श्रीकृष्ण जी द्वारा इन्द्र की पूजा को रोकना एवं गोवर्धन पूजा करवाने के पीछे जो सार तत्त्व था, वह यही था कि देवताओं की प्रार्थना करने से हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा अपितु गोवर्धन पर्वत के ऊपर जो दुर्लभ जड़ी-बुटियाँ एवं पशुओं के लिऐ चारा है, उसके प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करना चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है, कि हमें जहाँ से जो भी मिले, तो देने वाले के प्रति, हमें आदर भाव रखना चाहिऐ।
भगवान श्रीकृष्ण जी गोवर्धन की तरफ सकेंत करते हुऐ, हम सब को यही समझाने का प्रयास कर रहें है। उस समय में भी उन्होने गोकुल वासियों को यही समझाया, की जिस गोर्वधन पर्वत से तुम्हारी दैनिक आवश्यकतायें पूरी होती है, उसके प्रति अपना आदर प्रकट करो।
लेकिन आज अनेकों ही व्यक्ति उस पुरानी परम्परा को न समझ कर, गोवर्धन की पूजा एवं परिक्रमा करते है और यही समझते हैं कि इस प्रकार हमें वैकुंठ या मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी। किसी के प्रति आदर भाव या श्रद्धा रखना अलग बात है और मोक्ष की प्राप्ति अलग बात है। तुम चाहें जितनी परिक्रमा कर लो और चाहे जितनी पत्थर पूजा। तुम्हारा मन करे तो 56 भोग लगा लो, किन्तु इससे ब्रह्म-ज्ञान या मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी।
इसलिऐ भगवान श्रीकृष्ण जी ने भी गीता में कहा है, कि जो मुझ परमात्मा तत्त्व को (बल्कि मुझ कृष्ण को नहीं) पूजेगा, उसे ही परमात्मा की प्राप्ति होगी।
हमें तन्त्र और ब्रह्म में भेद समझना होगा। गीता के अन्दर जो उद्-घोष है या यूँ कहे की सम्पूर्ण गीता ब्रह्म-ज्ञान है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण जी के अलावा अनेकों ही और भी तान्त्रिक हुए, जिनमें बर्बरीक का नाम भी इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा है।
बर्बरीक- माँ कामाख्या देवी का परम उपासक एवं सिद्ध तान्त्रिक था। उसके पास ऐसे बाण थे, की वह चाहता तो एक बाण चला कर ही सम्पूर्ण कौरव सेना को समाप्त कर सकता था, किन्तु विधि के विधान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण जी ने उसे ऐसा करने से मना किया और कलियुग में वही ‘बर्बरीक’- ‘खाटू श्याम बाबा’ के नाम से जाना जाता है।
इसी प्रकार कलियुग में भी अनेकों ही सिद्ध तान्त्रिक पैदा हुए जो कि ब्रह्म को मानने वाले थे, जैसे की 9 नाथ 84 सिद्ध। लगभग 2,500 वर्ष पूर्व माहात्मा बुद्ध हुए, जो की एक सिद्ध तान्त्रिक के साथ-साथ ब्रह्म-ज्ञानी भी थे।
बौद्ध धर्म की दो शाखाऐं बनी, एक महायान और दूसरी हीनयान। बौद्ध धर्म में नील-तारा तन्त्र की देवी है। अनेकों ही बौद्ध भिक्षु आज भी माहात्मा बुद्ध के साथ-साथ तन्त्र की देवी नील-तारा की उपासना करते है। माहात्मा बुद्ध के समय में ही जैन धर्म प्रकाश में आया।
आज भी हजारों जैनी, जैन धर्म में स्थित तन्त्र की देवी पद्मावती, चक्रेश्वरी एवं क्षेत्रपाल देवता की पूजा करते है। जैन धर्म में स्वप्न सिद्धि के लिऐ या भूत, भविष्य, वर्तमान जानने के लिए, जैन धर्म में स्थित तन्त्र की देवी चक्रेश्वरी देवी की साधना होती है।

No comments:

Post a Comment