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कहते हैं परिवार के केंद्र में परमात्मा होना चाहिए और परिधि पर संसार रख देना चाहिए। जैसे परिवार के केंद्र में परमात्मा होना चाहिए ऐसे ही मनुष्य को जीवन के केंद्र मेें कुछ रिश्ते रखने पड़ते हैं। हमें जो रिश्ते निभाने हैं उनमें माता-पिता, जीवनसाथी और हमारे बच्चे होते हैं।
माता-पिता से सेवा के संबंध हों, जीवनसाथी के प्रति समर्पण का भाव हो और बच्चों को भरपूर सहयोग दीजिए, लेकिन केंद्र में जीवनसाथी होना चाहिए। समझदार माता-पिता और सुलझे हुए बच्चे भी यही चाहते हैं।
माता-पिता जानते हैं कि उनकी आयु अधिक नहीं है। बच्चे भी पढ़-लिखकर अपनी दुनिया में उतर जाएंगे। फिर आप और आपका जीवनसाथी रह जाएंगे। केंद्र में यदि जीवनसाथी है तो जीवन काटना कठिन नहीं होगा। इन रिश्तों को निभाते हुए कभी-कभी मनुष्य भूल जाता है।
पति-पत्नी के बीच जो तनाव और झगड़े होते हैं उसका एक बड़ा कारण यही है कि दायित्व का बंटवारा करते समय परिपक्वता और प्रेम नहीं रखा जाता। किसी-किसी घर में तो तीनों पीढ़ी एक साथ होती है। जिन माता-पिता ने योग्य बनाया, अब उनका अधिकार है और हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी भरपूर सेवा करें।
फिर बच्चों को भी इस योग्य बनाना है कि एक दिन वे हमारी सेवा कर सकें। जब माता-पिता और बच्चों से आप मुक्त हो जाएं तो सारा ध्यान जीवनसाथी पर लगाएं। आने वाले वक्त में दोनों को अधिकांश समय अकेले रहना है।
यदि उन्होंने अपना वक्त प्रेमपूर्ण नहीं बिताया तो एक नया तनाव और उलझन पैदा हो जाएगी, इसलिए प्रयास किया जाए कि माता-पिता की सेवा हो, जीवनसाथी केंद्र में हो समर्पण के साथ और बच्चों को भरपूर सहयोग दें, तब गृहस्थी अपने नए अर्थ लेकर हमारे जीवन से जुड़ेगी।
हमारा आचरण संयमित, सहज हो____
जीवन में सबसे बड़ी सफलता तो तब है, जिसमें जो मिले उसमें आंतरिक शांति भंग न हो। श्रीराम व लक्ष्मण ऐसे ही व्यक्तित्व थे जो संकटों से घिरने के बाद भी शांत और सहज थे।
किष्किंधा कांड में उनकी आपसी बातचीत संदेश बनती जा रही थी। छोटे भाई को समझाते हुए श्रीराम टिप्पणी करते हैं,
‘देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवहिं जिमि हरिजन हरि पाई।। मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएं कुल नासा।।
चकोरों के समुदाय चंद्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाए हैं जैसे भगवद भक्त भगवान को पाकर उनके (निर्निमेष नेत्रों से) दर्शन करते हैं।
मच्छर और डास जाड़े से इस प्रकार नष्ट हो गए जैसे ब्राह्मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है। यहां इशारा यह है कि क्या देखा जाए? देखने के मामले में हम लोग अत्यधिक लापरवाह होते जा रहे हैं।
जो दृश्य आंखों से देखे जाते हैं वेे अवचेतन मन पर असर करते हैं। इन्हें विचार और आचरण में उतरने में देर नहीं लगाते। पहले तो फिर भी जो दिख रहा था वह संयमित होता था। आज बहुत कम ढंका हुआ और मर्यादित होता है। इस खुले वातावरण में सारी सुरक्षा अपने ही नेत्रों से हमें ही करनी है।
ब्राह्मण से द्वेष लेने संबंधी श्रीराम के इस संवाद को कई लोग ठीक ढंग से नहीं ले पाते। यहां जाति नहीं आचरण की ओर इशारा है। जिनका आचरण ब्रह्म से जुड़ा हो वह ब्राह्मण होना चाहिए और ऐसा व्यक्ति सबके लिए हितकारी है, उससे वैर न लिया जाए।
हमें भी ऐसा ही व्यक्तित्व अपनाना चाहिए, इसलिए अवश्य आचरण में कुछ न कुछ अनुशासन उतारें। यह अनुशासन हमको श्रीराम जैसा संयमित-सहज और लक्ष्मणजी जैसा संयमित बना देगा।
छोटी-छोटी बातों से तनाव मुक्ति____
इस समय सभी के जीवन में तनाव बहुत है और समय बहुत कम। मनुष्य ने जिन-जिन चीजों को इकट्ठा करना शुरू किया (धन, पद, नाम आदि, साथ में तनाव भी आता गया। कोई योग के शिविर, कोर्स करता है, कोई सत्संग करता है, कुछ लोग डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं।
सब अपने-अपने ढंग से तनावमुक्त होना चाहते हैं। फिर भी हाथ लगता है बढ़ा हुआ तनाव। ऐसे में दिनभर की जीवनचर्या में आने वाले अवसरों को छोटे-छोटे योग से जोड़ लें।
मेरा संपर्क ऐसे अनेक लोगों से है, जो कहते हैं सब कर सकते हैं पर समय नहीं है। उन्हें मेरा सुझाव है कि कितना ही व्यस्त व्यक्ति हो, वह छह काम तो अवश्य करता है- सोना, उठना, खाना, पीना, बोलना और सुनना। इन्हें योग से जोड़ लिया जाए।
सोने का एक विशेष ढंग, एक अनुशासन है। सोते समय कुछ खास क्रियाएं की जाएं, खासतौर पर श्री हनुमानचालीसा से मेडिटेशन करके सोया जाए। उठते समय भी यही क्रिया दोहराई जा सकती है।
अचानक बिस्तर से कभी न उठें। दो या तीन मिनट के लिए अपने आप को शून्य करें। पानी पीते समय प्रत्येक घूंट के साथ महसूस करें कि यह पानी आपकी सांस में घुल गया और जो भी आपका मंत्र हो उसको पढ़ते हुए पानी पी लें। यही काम भोजन के साथ किया जा सकता है।
बोलते समय जागरूक रहें कि जो शब्द आप बोल रहे हैं वे कंठ से नहीं, नाभि से बोल रहे हैं। सुनते समय जब शब्द कान में आएं तो उन्हें पकड़कर हृदय तक लाएं।
ये छोटी-छोटी बातें आपको तनावमुक्त करेंगी। यह अभ्यास जितना बढ़ेगा, आप बिना अधिक समय दिए खुद को तनावमुक्त पाएंगे।
दैनिक क्रियाओं में योग एेसे जोड़ें____
हमारे पास मनुष्य का शरीर तो है, लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं जान पाते कि इसका उपयोग अनुशासन के साथ करना चाहिए। पिछले दिनों इसी स्तंभ में मैंने चर्चा की थी कि हम शरीर, मन और आत्मा तीनों से बने हैं और तीनों के अनुशासन के लिए योग अवश्य किया जाए।
यदि योग के लिए समय नहीं है तो दिनचर्या में छोटी-छोटी बातों को शामिल कर लिया जाए। इस बारे में बहुत सारे लोगों ने हमसे संपर्क किया है। चलिए इस पर बात करें। आने वाले दिनों में सोना, उठना, खाना, पीना, बोलना और सुनना इन छह कामों को कुछ ऐसी क्रियाओं से जोड़ दें जो योग का परिणाम दे देंगी।
जब हम सोने जाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि हमें शरीर को इस तरह से सुलाना है कि हमारा मन भी कंपन बंद कर दे और पूरी शांति के साथ सो जाए।
मन की सक्रिय रहने की आदत बिगड़ जाती है तो वह नींद में भी सक्रिय रहता है। जिसे साउंड स्लिप कहते हैं उसमें बाधा है मन। हमें लगता है कि जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घट गईं, जो सोने नहीं दे रहीं। यदि ठीक से सो लिए तो उठना भी ठीक से हो जाएगा। सोने से पहले छोटी सी क्रिया करें।
अपने शयन कक्ष में एकदम सीधे खड़े हो जाएं। पंजे चिपके रहें, घुटने चिपके रहें, हाथ छाती पर जोड़ लें, आंखें बंद कर लें और पूरे शरीर को एक कर दें। आप पाएंगे कि आपका शरीर हल्का-हल्का हिल रहा है। यह कंपन मन के कंपन से जुड़ा हुआ है।
सारा ध्यान नाभि पर या मेरूदंड के निचले हिस्से पर लगा लें और दो-तीन मिनट तक यही करें। हफ्ते-दस दिन में कंपन कम होगा तथा धीरे-धीरे आप शरीर और मन को अनुमति देंगे कि वे शैय्या तक जा सकें। क्योंकि जो ठीक से सो लिया वह अच्छे से जरूर उठेगा।
नींद को लेकर अनुशासन अपनाएं____
नींद ऐसी क्रिया है जो अधिक आए तो भी बीमारी और कम आए तो भी अस्वस्थ होने के लक्षण दे जाती है। इसलिए नींद को लेकर अनुशासन जरूरी है। जैसे ही शयन कक्ष में जाएं, शरीर को एक कर भीतर से कम्पन मिटाया जाए। शरीर बाहर से हिल रहा है तो उसे कैसे रोका जाए?
जब हम हाथ जोड़कर खड़े रहेंगे, पंजे नीचे से जुड़े रहेंगे तो शरीर पेंडुलम की तरह हल्का-हल्का हिलेगा। यही इस बात का प्रमाण है कि दिनभर हमारे आंतरिक व्यक्तित्व ने इतना वाइब्रेशन किया। कम्पन को मिटाकर ही शैया पर बैठें।
लेटने के पहले या तो पलंग पर या किसी अन्य स्थान पर कमर सीधी करके बैठ जाएं। कुछ समय कमर सीधी करके बैठें और सारा ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा लें।
वैसे तो जितना अधिक किया जाए लाभकारी है, लेकिन यहां अभी तीन चरण। पहले चरण में शरीर को सीधा करके कम्पन मिटा लिया।
दूसरे चरण में कमर सीधी रख बैठ जाएं और सारा ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा लें। जैसे ही ध्यान दोनों भौहों के बीच आए, सवाल यह खड़ा होगा कि क्या सोचा जाए? कोई भी एकदम से विचारशून्य नहीं हो सकता। जितना प्रयास करेंगे, विचारों के आक्रमण उतने ही बढ़ जाएंगे, इसलिए बहुत अधिक प्रयास न करें।
परमात्मा के जिस भी स्वरूप में रुचि हो और नहीं तो माता-पिता या गुरु का एक चित्र, उनकी आकृति दोनों भौहों के बीच में लाएं और सिर्फ उसे देखें। जितनी गहराई से उसे देखेंगे उतने ही तेजी से विचार रुकेंगे।
यह दूसरा चरण आपको सोने के लिए तैयार कर रहा है। ध्यान रखिएगा, जीवन में सोना एक ऐसी क्रिया है कि बहादुर से बहादुर, संयमित से संयमित व्यक्ति को भी इससे गुजरना होता है। जिस क्रिया का सम्मान करना है उसे ठीक से किया जाए।
कहते हैं परिवार के केंद्र में परमात्मा होना चाहिए और परिधि पर संसार रख देना चाहिए। जैसे परिवार के केंद्र में परमात्मा होना चाहिए ऐसे ही मनुष्य को जीवन के केंद्र मेें कुछ रिश्ते रखने पड़ते हैं। हमें जो रिश्ते निभाने हैं उनमें माता-पिता, जीवनसाथी और हमारे बच्चे होते हैं।
माता-पिता से सेवा के संबंध हों, जीवनसाथी के प्रति समर्पण का भाव हो और बच्चों को भरपूर सहयोग दीजिए, लेकिन केंद्र में जीवनसाथी होना चाहिए। समझदार माता-पिता और सुलझे हुए बच्चे भी यही चाहते हैं।
माता-पिता जानते हैं कि उनकी आयु अधिक नहीं है। बच्चे भी पढ़-लिखकर अपनी दुनिया में उतर जाएंगे। फिर आप और आपका जीवनसाथी रह जाएंगे। केंद्र में यदि जीवनसाथी है तो जीवन काटना कठिन नहीं होगा। इन रिश्तों को निभाते हुए कभी-कभी मनुष्य भूल जाता है।
पति-पत्नी के बीच जो तनाव और झगड़े होते हैं उसका एक बड़ा कारण यही है कि दायित्व का बंटवारा करते समय परिपक्वता और प्रेम नहीं रखा जाता। किसी-किसी घर में तो तीनों पीढ़ी एक साथ होती है। जिन माता-पिता ने योग्य बनाया, अब उनका अधिकार है और हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी भरपूर सेवा करें।
फिर बच्चों को भी इस योग्य बनाना है कि एक दिन वे हमारी सेवा कर सकें। जब माता-पिता और बच्चों से आप मुक्त हो जाएं तो सारा ध्यान जीवनसाथी पर लगाएं। आने वाले वक्त में दोनों को अधिकांश समय अकेले रहना है।
यदि उन्होंने अपना वक्त प्रेमपूर्ण नहीं बिताया तो एक नया तनाव और उलझन पैदा हो जाएगी, इसलिए प्रयास किया जाए कि माता-पिता की सेवा हो, जीवनसाथी केंद्र में हो समर्पण के साथ और बच्चों को भरपूर सहयोग दें, तब गृहस्थी अपने नए अर्थ लेकर हमारे जीवन से जुड़ेगी।
हमारा आचरण संयमित, सहज हो____
जीवन में सबसे बड़ी सफलता तो तब है, जिसमें जो मिले उसमें आंतरिक शांति भंग न हो। श्रीराम व लक्ष्मण ऐसे ही व्यक्तित्व थे जो संकटों से घिरने के बाद भी शांत और सहज थे।
किष्किंधा कांड में उनकी आपसी बातचीत संदेश बनती जा रही थी। छोटे भाई को समझाते हुए श्रीराम टिप्पणी करते हैं,
‘देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवहिं जिमि हरिजन हरि पाई।। मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएं कुल नासा।।
चकोरों के समुदाय चंद्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाए हैं जैसे भगवद भक्त भगवान को पाकर उनके (निर्निमेष नेत्रों से) दर्शन करते हैं।
मच्छर और डास जाड़े से इस प्रकार नष्ट हो गए जैसे ब्राह्मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है। यहां इशारा यह है कि क्या देखा जाए? देखने के मामले में हम लोग अत्यधिक लापरवाह होते जा रहे हैं।
जो दृश्य आंखों से देखे जाते हैं वेे अवचेतन मन पर असर करते हैं। इन्हें विचार और आचरण में उतरने में देर नहीं लगाते। पहले तो फिर भी जो दिख रहा था वह संयमित होता था। आज बहुत कम ढंका हुआ और मर्यादित होता है। इस खुले वातावरण में सारी सुरक्षा अपने ही नेत्रों से हमें ही करनी है।
ब्राह्मण से द्वेष लेने संबंधी श्रीराम के इस संवाद को कई लोग ठीक ढंग से नहीं ले पाते। यहां जाति नहीं आचरण की ओर इशारा है। जिनका आचरण ब्रह्म से जुड़ा हो वह ब्राह्मण होना चाहिए और ऐसा व्यक्ति सबके लिए हितकारी है, उससे वैर न लिया जाए।
हमें भी ऐसा ही व्यक्तित्व अपनाना चाहिए, इसलिए अवश्य आचरण में कुछ न कुछ अनुशासन उतारें। यह अनुशासन हमको श्रीराम जैसा संयमित-सहज और लक्ष्मणजी जैसा संयमित बना देगा।
छोटी-छोटी बातों से तनाव मुक्ति____
इस समय सभी के जीवन में तनाव बहुत है और समय बहुत कम। मनुष्य ने जिन-जिन चीजों को इकट्ठा करना शुरू किया (धन, पद, नाम आदि, साथ में तनाव भी आता गया। कोई योग के शिविर, कोर्स करता है, कोई सत्संग करता है, कुछ लोग डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं।
सब अपने-अपने ढंग से तनावमुक्त होना चाहते हैं। फिर भी हाथ लगता है बढ़ा हुआ तनाव। ऐसे में दिनभर की जीवनचर्या में आने वाले अवसरों को छोटे-छोटे योग से जोड़ लें।
मेरा संपर्क ऐसे अनेक लोगों से है, जो कहते हैं सब कर सकते हैं पर समय नहीं है। उन्हें मेरा सुझाव है कि कितना ही व्यस्त व्यक्ति हो, वह छह काम तो अवश्य करता है- सोना, उठना, खाना, पीना, बोलना और सुनना। इन्हें योग से जोड़ लिया जाए।
सोने का एक विशेष ढंग, एक अनुशासन है। सोते समय कुछ खास क्रियाएं की जाएं, खासतौर पर श्री हनुमानचालीसा से मेडिटेशन करके सोया जाए। उठते समय भी यही क्रिया दोहराई जा सकती है।
अचानक बिस्तर से कभी न उठें। दो या तीन मिनट के लिए अपने आप को शून्य करें। पानी पीते समय प्रत्येक घूंट के साथ महसूस करें कि यह पानी आपकी सांस में घुल गया और जो भी आपका मंत्र हो उसको पढ़ते हुए पानी पी लें। यही काम भोजन के साथ किया जा सकता है।
बोलते समय जागरूक रहें कि जो शब्द आप बोल रहे हैं वे कंठ से नहीं, नाभि से बोल रहे हैं। सुनते समय जब शब्द कान में आएं तो उन्हें पकड़कर हृदय तक लाएं।
ये छोटी-छोटी बातें आपको तनावमुक्त करेंगी। यह अभ्यास जितना बढ़ेगा, आप बिना अधिक समय दिए खुद को तनावमुक्त पाएंगे।
दैनिक क्रियाओं में योग एेसे जोड़ें____
हमारे पास मनुष्य का शरीर तो है, लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं जान पाते कि इसका उपयोग अनुशासन के साथ करना चाहिए। पिछले दिनों इसी स्तंभ में मैंने चर्चा की थी कि हम शरीर, मन और आत्मा तीनों से बने हैं और तीनों के अनुशासन के लिए योग अवश्य किया जाए।
यदि योग के लिए समय नहीं है तो दिनचर्या में छोटी-छोटी बातों को शामिल कर लिया जाए। इस बारे में बहुत सारे लोगों ने हमसे संपर्क किया है। चलिए इस पर बात करें। आने वाले दिनों में सोना, उठना, खाना, पीना, बोलना और सुनना इन छह कामों को कुछ ऐसी क्रियाओं से जोड़ दें जो योग का परिणाम दे देंगी।
जब हम सोने जाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि हमें शरीर को इस तरह से सुलाना है कि हमारा मन भी कंपन बंद कर दे और पूरी शांति के साथ सो जाए।
मन की सक्रिय रहने की आदत बिगड़ जाती है तो वह नींद में भी सक्रिय रहता है। जिसे साउंड स्लिप कहते हैं उसमें बाधा है मन। हमें लगता है कि जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घट गईं, जो सोने नहीं दे रहीं। यदि ठीक से सो लिए तो उठना भी ठीक से हो जाएगा। सोने से पहले छोटी सी क्रिया करें।
अपने शयन कक्ष में एकदम सीधे खड़े हो जाएं। पंजे चिपके रहें, घुटने चिपके रहें, हाथ छाती पर जोड़ लें, आंखें बंद कर लें और पूरे शरीर को एक कर दें। आप पाएंगे कि आपका शरीर हल्का-हल्का हिल रहा है। यह कंपन मन के कंपन से जुड़ा हुआ है।
सारा ध्यान नाभि पर या मेरूदंड के निचले हिस्से पर लगा लें और दो-तीन मिनट तक यही करें। हफ्ते-दस दिन में कंपन कम होगा तथा धीरे-धीरे आप शरीर और मन को अनुमति देंगे कि वे शैय्या तक जा सकें। क्योंकि जो ठीक से सो लिया वह अच्छे से जरूर उठेगा।
नींद को लेकर अनुशासन अपनाएं____
नींद ऐसी क्रिया है जो अधिक आए तो भी बीमारी और कम आए तो भी अस्वस्थ होने के लक्षण दे जाती है। इसलिए नींद को लेकर अनुशासन जरूरी है। जैसे ही शयन कक्ष में जाएं, शरीर को एक कर भीतर से कम्पन मिटाया जाए। शरीर बाहर से हिल रहा है तो उसे कैसे रोका जाए?
जब हम हाथ जोड़कर खड़े रहेंगे, पंजे नीचे से जुड़े रहेंगे तो शरीर पेंडुलम की तरह हल्का-हल्का हिलेगा। यही इस बात का प्रमाण है कि दिनभर हमारे आंतरिक व्यक्तित्व ने इतना वाइब्रेशन किया। कम्पन को मिटाकर ही शैया पर बैठें।
लेटने के पहले या तो पलंग पर या किसी अन्य स्थान पर कमर सीधी करके बैठ जाएं। कुछ समय कमर सीधी करके बैठें और सारा ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा लें।
वैसे तो जितना अधिक किया जाए लाभकारी है, लेकिन यहां अभी तीन चरण। पहले चरण में शरीर को सीधा करके कम्पन मिटा लिया।
दूसरे चरण में कमर सीधी रख बैठ जाएं और सारा ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा लें। जैसे ही ध्यान दोनों भौहों के बीच आए, सवाल यह खड़ा होगा कि क्या सोचा जाए? कोई भी एकदम से विचारशून्य नहीं हो सकता। जितना प्रयास करेंगे, विचारों के आक्रमण उतने ही बढ़ जाएंगे, इसलिए बहुत अधिक प्रयास न करें।
परमात्मा के जिस भी स्वरूप में रुचि हो और नहीं तो माता-पिता या गुरु का एक चित्र, उनकी आकृति दोनों भौहों के बीच में लाएं और सिर्फ उसे देखें। जितनी गहराई से उसे देखेंगे उतने ही तेजी से विचार रुकेंगे।
यह दूसरा चरण आपको सोने के लिए तैयार कर रहा है। ध्यान रखिएगा, जीवन में सोना एक ऐसी क्रिया है कि बहादुर से बहादुर, संयमित से संयमित व्यक्ति को भी इससे गुजरना होता है। जिस क्रिया का सम्मान करना है उसे ठीक से किया जाए।
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