पूर्वकाल में आबू पर्वत के समीप एक आहुक नामक भील रहता था । उसकी पत्नी का नाम आहुजा था । वह बड़ी पतिव्रता तथा धर्मशीला थी । वे दंपत्ति बड़े शिवभक्त एवं अतिथि सेवक थे । एक बार भगवान शंकर ने इनकी परीक्षा लेने का विचार किया । वे एक यतिका रूप धारण करके संध्या समय आहुक के दरवाजे पर जाकर कहने लगे - ‘भील ! तुम्हारा कल्याण हो, मैं आज रातभर यहीं रहना चाहता हूं, तुम दया करके एक रात मुझे रहने के लिए स्थान दे दो ।’
इस पर भील ने कहा - ‘स्वामिन ! मेरे पास स्थान बहुत थोड़ा है, उसमें आप कैसे रह सकते हैं ?’ यह सुनकर यति चलने को ही थे कि पत्नी ने पति से कहा - ‘स्वामिन ! यति को लौटाइए नहीं, गृहस्थधर्म का विचार कीजिए, इसलिए आप दोनों तो घर के भीतर रहें, मैं अपनी रक्षा के लिए कुछ बड़े शस्त्रों को लेकर दरवाजे पर बैठी रह जाऊंगी ।’
भील ने सोचा कि यह बात तो ठीक नहीं, क्योंकि यह अबला है । अतएव उसने यति तथा अपनी पत्नी को घर के भीतर रखा और स्वयं शस्त्र धारण कर बाहर बैठा रहा । रात बीतने पर हिंस्त्र पशुओं ने उस पर आक्रमण किया और उसे मार डाला । प्रात: होने पर जब यति और उसकी पत्नी बाहर आये तो उसे मरा देखा । यह देखकर यति बहुत दु:खी हुए । पर भीलनी ने कहा - ‘महाराज ! इसमें शोक तथा चिंता की क्या बात है ? ऐसी मृत्यु तो बड़े भाग्य से ही प्राप्त होती है । अब मैं भी इनके साथ सती हो जाऊंगी । इसमें तो हम दोनों का परम कल्याण हो गया ।’ यों कहकर चिता पर अपने पति को रखकर वह भी उसी अग्नि में प्रविष्ट हो गयी ।
तब भगवान शंकर डमरु - त्रिशूल आदि आयुधों के साथ प्रकट हो गये । उन्होंने बार - बार उस भीलनी से वर मांगने को कहा, पर वह कुछ न बोलकर सर्वथा ध्यानमग्न हो गयी । तब भगवान ने उसे वरदान दिया कि ‘अगले जन्म में तुम्हारा पति निषध देश में राजा बीरसेन का पुत्र नल होगा और तुम्हारा जन्म विदर्भदेश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के रूप में होगा । यह यति भी हंस होगा और यहीं तुम दोनों का संयोग करायेगा । वहां तुम लोग अनंत राजसुखों का उपभोग करके अंत में दुर्लभ मोक्षपद को प्राप्त करोगे ।’
यों कहकर वे प्रभु शंकर वहीं अचलेश्वर लिंग के रूप में स्थित हो गये और कालांतर में ये दोनों भील दंपत्ति नल दंपत्ति के रूप में अवतीर्ण हुए ।
No comments:
Post a Comment