कई बार विचार आता है कि अगर परमात्मा सारे ब्रह्माडं का संचालक है तो वह क्यों नहीं बुराई को जड़ से समाप्त नहीं कर देता, क्यों वह बुरे लोगों का संरक्षण कर उन्हें रावण, कंस या हैवान बन जाने देता है, जिनकी वजह से अनेकाऐक निर्दोष जीव कष्ट झेल मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
परमात्मा अपनी प्रकृति से इस अनुभवगम्य संसार का सृजन करता है तथा प्रत्येक प्राणी में निवास करता है। वह हर ओर से इस गतिशील ब्रह्माडं की प्रत्येक क्रिया को नियंत्रित करता है, लेकिन वह जीव के द्वारा किये गये किसी भी कर्म का भागीदार नहीं होता।
संसार में जितनी भी आत्माएँ हैं वह सब स्वत्रंत है, वह अपने कर्मों का चुनाव स्वंय करते हैं और इसीलिये बुराई सम्भव और सम्भाव्य है। सभी अपने कर्मोंनुसार ही बुद्धि पाते हैं और जीवन जीते हैं।
यदि बुराई,करूपता या असत्यता को मिटा दिया जाये तो सभी को ऐक जैसा सोचना होगा, ऐक जैसा कर्म करना होगा व ऐक जैसा जीवन जीना होगा यानी प्रत्येक आत्मा बंधित होगी और यह तभी संभव है जब प्रत्येक आत्मा नियंत्रण में हो। हमारा पिता परमात्मा कौई तानाशाह नहीं है वह हमें हर पल सचेत कर बुरे कर्म करने से रोकता है।
प्रत्येक आत्मा का क्या अच्छा है क्या बुरा पता होता है इसके बाबजूद वह बुराई की ओर अपनी इंद्रियों के वशीभूत हो अग्रसर होता है।
मित्रों अंधकार का गम्भीर समुद्र उतना ही विशाल है जितना प्रकाश का आकाश किसी का भी न आदि है न अंत और दोनों के बीच कोई दूरी नहीं। गर हम अच्छाई की ओर अग्रसर होते हुये भी कुछ गलती कर जाते हैं तो प्रकाश का छत्तर बिखर जाता है और चहुँ ओर अंधकार छा जाता है।
इसलिये अपने दुःख व कष्टों के लिये परमात्मा या अन्य किसी भी को दोषी न बना अच्छे कर्म करने की कोशिश करें ताकी उस प्रकाश में प्रवेश कर सकें जहाँ अंधकार का प्रवेश निषेद्ध है।
जय श्री राम जय श्री कृष्ण
परमात्मा अपनी प्रकृति से इस अनुभवगम्य संसार का सृजन करता है तथा प्रत्येक प्राणी में निवास करता है। वह हर ओर से इस गतिशील ब्रह्माडं की प्रत्येक क्रिया को नियंत्रित करता है, लेकिन वह जीव के द्वारा किये गये किसी भी कर्म का भागीदार नहीं होता।
संसार में जितनी भी आत्माएँ हैं वह सब स्वत्रंत है, वह अपने कर्मों का चुनाव स्वंय करते हैं और इसीलिये बुराई सम्भव और सम्भाव्य है। सभी अपने कर्मोंनुसार ही बुद्धि पाते हैं और जीवन जीते हैं।
यदि बुराई,करूपता या असत्यता को मिटा दिया जाये तो सभी को ऐक जैसा सोचना होगा, ऐक जैसा कर्म करना होगा व ऐक जैसा जीवन जीना होगा यानी प्रत्येक आत्मा बंधित होगी और यह तभी संभव है जब प्रत्येक आत्मा नियंत्रण में हो। हमारा पिता परमात्मा कौई तानाशाह नहीं है वह हमें हर पल सचेत कर बुरे कर्म करने से रोकता है।
प्रत्येक आत्मा का क्या अच्छा है क्या बुरा पता होता है इसके बाबजूद वह बुराई की ओर अपनी इंद्रियों के वशीभूत हो अग्रसर होता है।
मित्रों अंधकार का गम्भीर समुद्र उतना ही विशाल है जितना प्रकाश का आकाश किसी का भी न आदि है न अंत और दोनों के बीच कोई दूरी नहीं। गर हम अच्छाई की ओर अग्रसर होते हुये भी कुछ गलती कर जाते हैं तो प्रकाश का छत्तर बिखर जाता है और चहुँ ओर अंधकार छा जाता है।
इसलिये अपने दुःख व कष्टों के लिये परमात्मा या अन्य किसी भी को दोषी न बना अच्छे कर्म करने की कोशिश करें ताकी उस प्रकाश में प्रवेश कर सकें जहाँ अंधकार का प्रवेश निषेद्ध है।
जय श्री राम जय श्री कृष्ण
No comments:
Post a Comment