Monday 6 June 2016

अहिल्याबाई :-



रानी अहिल्या बाई होल्कर एक ऐसा नाम है जिसे आज भी प्रत्येक भारत वासी बडी श्रद्धा से स्मरण करता है। वें एक महान शासक और मालवा की रानी थीं। इनका जन्म सन् 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को।

अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्य चकित करने वाला है। वें एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ी।

अपने जीवन काल में पति, पुत्र, पुत्री और दामाद सभी को अकाल मृत्यु का ग्रास बनते देखा। अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भी भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की।

उन्होंने काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं। कहा जाता है क़ि रानी अहिल्‍याबाई के स्‍वप्‍न में एक बार भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्‍त थीं और इसलिए उन्‍होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

इंदौर वासी आज भी उन्हें अपनी माँ के रुप मे ही याद करते हैं। माँ अहिल्याबाई आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। उस काल में ना तो न्याय में शक्ति रही थी और न विश्वास। उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-वह कल्पनातीत और चिरस्मरणीय है।

इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव बडी धूमधाम से मनाया जाता है.

अहिल्याबाई द्वारा गौ माता को न्याय प्रेरक प्रसंग –

एक बार की बात है इन्दौर नगर के किसी मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी, तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजीराव अपने रथ पर सवार होकर गुजरे ।

मालोजीराव बचपन से ही बेहद शरारती व चंचल प्रवृत्ति के थे । राह चलते लोगों को परेशान करने में उन्हें विशेष आंनद आता था । गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर उनके रथ के सामने आ गया । गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े के ऊपर से निकल चुका था । रथ अपने पहिये से बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया था ।

गाय बहुत देर तक अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक मनाती रही । तत्पश्चात उठकर देवी अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टंगे उस घण्टे के पा जा पहुँची, जिसे अहिल्याबाई ने प्राचीन राजपरम्परा के अनुसार त्वरित न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था, अर्थात्‌ जिसे भी न्याय की जरूरत होती,वह जाकर उस घन्टें को बजा देता था, जिसके बाद तुरन्त दरबार लगता था और तुरन्त न्याय मिलता।

घण्टे की आवाज सुनकर देवी अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य देखा कि एक गाय न्याय का घन्टा बजा रही है । देवी ने तुरन्त प्रहरी को आदेश दिया कि गाय के मालिक को दरबार में हाजिर किया जाये। कुछ देर बाद गाय का मालिक हाथ जोड़ कर दरबार में खड़ा था। देवी अहिल्याबाई ने उससे कहा कि ” आज तुम्हारी गाय ने स्वंय आकर न्याय की गुहार की है । जरूर तुम गौ माता को समय पर चारा पानी नही देते होगे। ”

उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा कि माते श्री ऐसी कोई बात नही है । गौ माता अन्याय की शिकार तो हुई है ,परन्तु उसका कारण मैं नही कोई ओर है, उनका नाम बताने में मुझे अपने प्राण का भय है ।”

देवी अहिल्या ने कहा कि अपराधी जो कोई भी है उसका नाम निडर होकर बताओं , तुम्हें हम अभय -दान देते हैं। ” तब उस व्यक्ति ने पूरी वस्तुस्थित कह सुनायी। अपने पुत्र को अपराधी जानकर देवी अहिल्याबाई तनिक भी विचलीत नही हुई और फिर गौ माता स्वयं उनके दरबार में न्याय की गुहार लगाने आयी थी। उन्होंने तुरन्त मालोजी की पत्नी मेनावाई को दरबार में बुलाया यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दे ,तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए ?

मालो जी की पत्नी ने कहा कि – जिस प्रकार से हत्या हुई, उसी प्रकार उसे भी प्राण-दण्ड मिलना चाहिए। देवी अहिल्या ने तुरन्त मालोजी राव का प्राण- दण्ड सुनाते हुए उन्हें उसी स्थान पर हाथ -पैर बाँधकर उसी अवस्था में मार्ग पर डाल दिया गया। रथ के सारथी को देवी ने आदेश दिया ,पर सारथी ने हाथ जोड़कर कहा ” मातेश्री ,मालोजी राजकुल के एकमात्र कुल दीपक है। आप चाहें तो मुझे प्राण -दण्ड दे दे,किन्तु मैं उनके प्राण नहीं ले सकता ।”

तब देवी अहिल्याबाई स्वंय रथ पर सवार हुई और मालोजी की ओर रथ को तेजी से दौड़ाया, तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई। रथ निकट आते ही फरियादी गौ माता रथ के निकट आ कर खड़ी हो गयी । गौ माता को हटाकर देवी ने फिर एक बार रथ दौड़ाया , लेकिन फिर से गौ माता रथ के सामने आ खड़ी हो गयी। सारा जन समुदाय गौ माता और उनके ममत्व की जय जयकार कर उठा।

देवी अहिल्या की आँखो से भी अश्रुधारा बह निकली। गौ माता ने स्वंय का पुत्र खोकर भी उसके हत्यारे के प्राण ममता के वशीभूत होकर बचाये। जिस स्थान पर गौ माता आड़ी खड़ी हुई थी, वही स्थान आज इन्दौर में ( राजबाड़ा के पास) ”आड़ा बाजार” के नाम से जाना जाता है।

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