भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि बातों का अर्थ न समझ कर विवेक रहित और तरह-तरह के ज्ञान से भ्रम में फंसे लोगों का नष्ट हो जाना तय है। कमी निकालने वाले नजरिए की वजह से सभी में कमी निकालना एक स्वभाव सा बन जाता है। फिर व्यक्ति कुछ भी बुरा होने का दोष भगवान पर मढ़ देता है। वह कहता है कि मैंने भगवान का इतना पूजा-पाठ किया और बदले में उन्होंने मुझे ये परेशानियां दीं। लेकिन इसके विपरीत जब कुछ अच्छा होता है, तब वह खुद को ही शाबाशी देता है। यह हमेशा कमी निकालने वाला नजरिया हमारे अहंकार को बढ़ाए रहता है।यह अहंकार सही और गलत में फर्क करने की हमारी क्षमता को खत्म कर देता है। ऐसे में व्यक्ति सच और झूठ में अंतर नहीं कर पाता और ऐसी हालत में फंसे व्यक्ति का ज्ञान नष्ट हो जाता है। ऐसा होते ही बुद्धि भ्रमित होने लगती है और भ्रमित बुद्धि व्यक्ति का नाश कर देती है। इसलिए अगर हमारे अंदर हर परेशानी पर किसी न किसी को दोष देने की आदत है तो उसे बदलने में ही हमारा हित है। किसी पर भी दोष लगाना बंद कर दीजिए। ऐसा करने से हमारे अंदर का गुस्सा खत्म होगा और सबके लिए प्रेम उपजने लगेगा।
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