Wednesday 21 September 2016

पैरों के निशान


एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण पर जा रहे थे। रास्ते में कहीं भी पेड़ नहीं थे। चारों तरफ सिर्फ रेत ही रेत थी। रेत पर चलने के कारण सभी के पैरों के निशान बनते जा रहे थे।
ये निशान सुंदर थे। तभी अचानक शिष्यों को दूर एक पेड़ दिखाई दिया। सभी ने वहां विश्राम किया। तथागत् और सभी शिष्य उस पेड़ की छांव के नीचे आराम करने लगे। तभी वहां एक ज्योतिषी आए वो उसी रास्ते से अपने घर जा रहे थे।
उन्होंने रेत पर बुद्ध के पैरों के निशान देखे। उन्होंने अपने जीवन में ऐसे पदचिन्ह नहीं देखे थे। ज्योतिषी ने सोचा शायद यह पदचिन्ह किसी चक्रवर्ती सम्राट के हो सकते हैं। लेकिन सामने जब उसने बुद्ध को देखा तो उसे यकीन नहीं हुआ। क्योंकि यह पद चिन्ह एक संन्यासी व्यक्ति के थे।
बुद्ध के चेहरे पर एक चमकती कांति थी। ज्योआतिषी ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि आपके पैरों में जो पद्म है, वह अति दुर्लभ है, हजारों साल में कभी किसी भाग्यशाली में देखने को मिलता है। हमारी ज्यो तिष विद्या कहती है कि आपको चक्रवर्ती सम्राट होना चाहिए, परंतु आप तो…?
भगवान बुद्ध हंसे और कहा, 'आपका यह ज्यो तिष सही था पर अब मैं सब बंधनों से मुक्तल हो गया हूं।'
सार- जब आप सारे बंधनों से मुक्त हो जाते हैं तो न कोई ज्योतिष और न कोई ओर विद्या काम करती है। बस रहता है तो ईश्वर का परमतत्व ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का रास्ता। बुद्ध का यह प्रसंग इसी बात को दर्शाता है।

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