Wednesday 21 September 2016

अपराध एक नहीं दो


बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारा द्वारकापुरी बसायी जा रही थी। एक दिन यदुवंशी बालक पानी की इच्छा से इधर-उधर धूम रहे थे। इतने में ही उन्हे एक कूप दिखाई पड़ा, जिसका ऊपरी भाग घास फूस और लताओं ढ़का हुआ था। बालक ने जब परिश्रम करके वहां से घास फूस हटाया तो उन्हें उसके भीतर एक गिरगिट बैठा दिखाई पड़ा। बालक हजारों की संख्या में थे, सब मिलकर उस गिरगिट को वहां से निकालने में लग गए। किंतु लड़के उस गिरगिट को निकाल नहीं पाए। हारकर सभी ने श्रीकृष्ण को यह वृतांत सुनाया।
यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने उस गिरगिट को कुएं से बाहर निकाला। श्रकृष्ण के पावन हाथों का स्पर्श पाकर उस गिरगिट की देह से एक दिव्य पुरुष निकल कर भगवान को प्रणाम करने लगा। बच्चे आश्चर्यचकित होकर गिरगिट और उस दिव्य पुरूष को देखने लगे। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर उसने पूर्वजन्म का वृतांत सुनाया-

पूर्व जन्म में मैं राजा नृग था। एक अग्निहोत्री ब्राह्मण के परदेस चले जाने पर उसकी एक गाय भाग कर मेरी गौओं के झुंड में आ मिली। मेरे ग्वालों ने दान के लिए मंगाई हुई एक हजार गौओं में उसकी भी गिनती करा दी और मैंने उस एक ब्राह्मण को दान कर दिया। परदेश से वापस आकर जब उस ब्राह्मण को अपनी गाय ढूंढते-ढूंढ़ते उस ब्राह्मण के घर मिली जिसे मैंने दान किया था तब उस गाय को लेकर उन दोनों में झगड़ा होने लगा और दोनों ही क्रोध में भर कर मेरे पास आए।
मैं धर्मसंकट में था, इस कारण मैंने दान लेने वाले ब्राह्मण से कहा, ‘‘भगवन्! मैं इस गाय के बदले आपको दस हजार गौएं देता हूं, आप इनकी गाय इन्हें वापस दे दीजिए।’’
उसने जवाब दिया, ‘‘महाराज! यह गाय सीधी-सादी, मीठा दूध देने वाली है। धन्य भाग, जो यह मेरे घर आई। यह अपने दूध से प्रतिदिन मेरे मातृहीन दुर्बल बच्चे का पालन करती है मैं इसे कदापि नहीं दे सकता।’’
यह कह कर वह वहां से चल दिया। तब मैंने दूसरे ब्राह्मण से प्रार्थना की, ‘‘भगवन! आप उसके बदले में एक लाख गौएं और ले लीजिए।’’
वह बोला, ‘‘मैं राजाओं का दान नहीं लेता, मैं अपने लिए धन का उपार्जन करने में समर्थ हूं। मुझे तो शीघ्र मेरी वही गौ ला दीजिए।’’
मैंने उसे बहुत प्रलोभन दिया, परंतु वह उत्तम ब्राह्मण कुछ न लेकर तत्काल चुपचाप चला गया।
इसी बीच काल की प्रेरणा से मुझे शरीर त्यागना पड़ा और पितृलोक में पहुंच कर मैं यमराज से मिला। उन्होंने मेरा बहुत आदर-सत्कार करके दो पाप कर्मों का फल पहले या पीछे भोगने-हेतु पूछा। जब मैंने दो पाप कर्म सुन कर आश्चर्य किया, तब धर्मराज ने कहा, ‘‘आपने प्रजा के धन-जन की रक्षा के लिए प्रतिज्ञा की थी; किन्तु उस ब्राह्मण की गाय खो जाने के कारण वह प्रतिज्ञा झूठी हो गई। दूसरी बात यह है कि आपने ब्राह्मण के धन का भूल से अपहरण भी कर लिया था, इस तरह आपके द्वारा एक नहीं दो अपराध हुए हैं।’’
पाप कर्मों के फलस्वरूप मुझे गिरगिट की योनि मिली। गिरगिट का जन्म पाकर भी मेरी स्मरण शक्ति ने साथ नहीं छोड़ा था। भगवन! आपने मेरा उद्धार कर दिया, अब मुझे स्वर्गलोक जाने की आज्ञा दीजिए।
भगवान श्री कृष्ण ने राजा नृग को आज्ञा देकर कहा, ‘‘समझदार मनुष्य को ब्राह्मण के धन का अपहरण नहीं करना चाहिए, क्योंकि चुराया हुआ ब्राह्मण का धन चोर का ही नाश कर देता है।’’

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